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VED PRAKASH 73

महीना खत्म होने वाला है किस्तें फिर मेरे बैंक के खाते से टकराएंगी घर अपना है पर अपना नहीं है कार जो नीचे खड़ी है परायी सी है किस्तें कुतर रही हैं तनख्वाह को मेरी ख्वाहिशों की चादर के सूराख दिखने लगे हैं कौन कहता है वक्त मरता नहीं हमने सालों को खत्म होते देखा दिसंबर में...
 -मिथिलेश बारिया

©VED PRAKASH 73 #गोल_चबूतरा

VED PRAKASH 73

करते हो शायरी मोहब्बत भी कभी तुम्हारा 
काम रहा होगा क्यों दफ्तर में खुद को जरा
जरा सा छोड़ आते हो घर आते हो तो घर 
पूरा आया करो... -मिथिलेश बारिया

©VED PRAKASH 73 #गोल_चबूतरा

VED PRAKASH 73

Unsplash उसकी फटी कमीज से ईमानदारी साफ नजर
 आती है आँसुओ से जब धूली ऑंखें वो शख्स
 साफ-साफ नजर आया थूकना कचरा फैंकना
 हम चाहते हैं सब गुनाह माफ हों फिर यह 
उम्मीद की सरकारी अस्पताल एकदम 
साफ हों... -मिथिलेश बारिया

©VED PRAKASH 73 #गोल_चबूतरा

VED PRAKASH 73

रात से दोस्ती है दिन से कोशिश जारी है 
वो जिस दिन में हारा था तुमसे वो जीत 
तुम्हारी भी तो नहीं थी... -मिथिलेश बारिया

©VED PRAKASH 73 #गोल_चबूतरा

VED PRAKASH 73

जगह तो सब मोहरों की बराबर बंटी थी 
जाने क्यों आपस में लड़ मरे कल में खुद 
अपने पास लौट आया ये बात और है 
तेरी तरफ बहुत दूर तक चला था... 
-मिथिलेश बारिया

©VED PRAKASH 73 #गोल_चबूतरा

VED PRAKASH 73

White किसी ने महजब किसी ने जात किसी ने भाषा अपनी  पहचान लिखा वो उम्र में बहुत छोटा
 था उसने सिर्फ हिंदुस्तान लिखा...
 -मिथिलेश बरिया

©VED PRAKASH 73 #गोल_चबूतरा

VED PRAKASH 73

Unsplash किसी ने महज़ब किसी ने जात किसी ने भाषा अपनी पहचान लिखा वो उम्र में बहुत छोटा था
 उसने सिर्फ हिंदुस्तान लिखा किस्से बन जाते हैं
 कहानियाँ हो जाता है एक उम्र के बाद आदमी
 आदमी नहीं रहता... -मिथिलेश बारिया

©VED PRAKASH 73 #गोल_चबूतरा

VED PRAKASH 73

White मेरे पास एक नदी थी एक पेड़ था एक छोटा 
पहाड़ था मैं खिलौनों की दुकान से वाकिफ
 नहीं था वो अधनंगा बच्चा ठीक उसी दुकान
 के बाहर खड़ा था चमचमाते नए कपड़े 
जहां पुतलों ने पहन रखे थे...
 -वेद प्रकाश

©VED PRAKASH 73 #गोल_चबूतरा

VED PRAKASH 73

वो जिसे ढूँढता रहा मैं कल रातभर आज 
सुबह आईने में मिला खोना नहीं चाहते 
उसे जिसे कभी हम पा नहीं सकते अंधेरों
 में छोड़ चला गया मुझे चाँद जिसे मैंने 
कहा था कभी... -मिथिलेश बारिया

©VED PRAKASH 73 #गोल_चबूतरा

VED PRAKASH 73

नज़ारा बहुत लजीज था लेकिन आँखों की 
आधी खुराक मोबाइल खा रहा था पत्ते सूख 
गए थे उस पेड़ के लेकिन छाँव वो पहले 
जैसी दे रहा था... -मिथिलेश बारिया

©VED PRAKASH 73 #गोल_चबूतरा
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