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ashutosh anjan

जंगल  के  जंगल  मकान  हुए  जाते  है,
एक एक करके शहर वीरान  हुए जाते है।

हम उनसे जख्मों का इज़हार कैसे करते,
जो मेरे तेज़ साँसों से परेशान हुए जाते है।

रेत की सीपियां  मिलने  लगी है  पानी में,
क्या दरिया भी अब रेगिस्तान हुए जाते है।

चलते  चलते  गाँव  से शहर  आ गए है हम,
रौशन बहुत है फिर भी बयाबान हुए जाते है।

तिश्नगी  फ़ैली  है  इस  कदर  ज़माने  में  अब,
आँखें बंद करके अंज़ाम से अंजान हुए जाते है। चलते चलते(ग़ज़ल)

#कोराकाग़ज़ 
#collabwithकोराकाग़ज़ 
#रमज़ान_कोराकाग़ज़ 
#kkr2021 
#kkचलतेचलते 
#yqdidi

अभिलाष सोनी

चलते-चलते (#kkचलतेचलते) 09 मई 2021 **************************** Pic Credit :- Pinterest जो तेरे नाम लिख दूँ, मेरी वो कहानी हो तुम। मेरी चाहत का रूप, मेरी जिंदगानी हो तुम।

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//चलते-चलते//
*************
जो तेरे नाम लिख दूँ, मेरी वो कहानी हो तुम।
मेरी चाहत का रूप, मेरी जिंदगानी हो तुम।

हिज़्र तक मैं तेरा, इंतज़ार नहीं कर सकता।
मैं ये भी जानता हूँ कि, मेरी दीवानी हो तुम।

बेशर्त मोहब्बत की है तुमसे, तुम ही मेरी आस हो।
मुंतज़र हूँ तेरी चाहत का, तुम ही मेरी प्यास हो।

इश्क़ का पैगाम लिखा है, जिसकी कहानी हो तुम।
लफ्ज़ मेरी चाहत के, मेरे प्यार की निशानी हो तुम।

सुहानी मोहब्बत के मैं अल्फ़ाज़ लिखकर जाता हूँ।
चलते चलते एक आख़िरी पैग़ाम लिखकर जाता हूँ।

सदियों पुरानी मेरी चाहत, मेरी ज़िंदगानी हो तुम।
मैं जिसे भूल नहीं सकता, वो हसीं कहानी हो तुम। चलते-चलते (#kkचलतेचलते) 09 मई 2021
****************************

Pic Credit :- Pinterest

जो तेरे नाम लिख दूँ, मेरी वो कहानी हो तुम।
मेरी चाहत का रूप, मेरी जिंदगानी हो तुम।

Writer1

दुनिया देखने की चाहत थी, आज वो मंज़र देखा आया, कहीं पर चीखे तो कहीं , आजाब का मंज़र है छाया। चलते चलते जाने कहां आ गए, हिद्धत ए ताब महसूस करना था, मैं ठंडी राख का दुआ सेंक आया, कहीं पर चीखे तो कहीं , आजाब का मंज़र है छाया।

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//चलते- चलते//
*****************
दुनिया देखने की चाहत थी,
आज वो मंज़र देख आया,
कहीं पर चीखे तो कहीं , आजाब का मंज़र है छाया।

चलते चलते जाने कहां आ गए, 
हिद्धत ए ताब महसूस करना था,
 मैं ठंडी राख का धुआं सेंक आया,
कहीं पर चीखे तो कहीं , आजाब का मंज़र है छाया।

वबा  ए‌   कोरोना का संकट भारी है,
ना जाने किसकी नजर लगी इस दहर पर,
मैं अपनी आंखों से श्मशान देख आया,
कहीं पर चीखे तो कहीं , आजाब का मंज़र है छाया।

खबर में देखा 3 दिन की बच्ची‌ और 6 महीने की बच्ची,
के मां-बाप को करोना ने मार गिराया,
सुनकर यह दर्दनाक खबर सबका दिल भर आया
कहीं पर चीखे तो कहीं , आजाब का मंज़र है छाया।

चलते- चलते उम्मीद का एक शफ़्क़ जला आया,
करके इमदाद बेसहारों की,
 84 के जिंदान से खुद को आज़ाद पाया,
कहीं पर चीखे तो कहीं , आजाब का मंज़र है छाया। दुनिया देखने की चाहत थी,
आज वो मंज़र देखा आया,
कहीं पर चीखे तो कहीं , आजाब का मंज़र है छाया।

चलते चलते जाने कहां आ गए,
हिद्धत ए ताब महसूस करना था,
 मैं ठंडी राख का दुआ सेंक आया,
कहीं पर चीखे तो कहीं , आजाब का मंज़र है छाया।

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