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Poonam Suyal
प्यारी बिंदिया (अनुशीर्षक में पढ़ें) प्यारी बिंदिया बिंदिया उसके माथे की, जगमगा रही है इतनी दिल को मेरे देती असीम सुख, चाँद की शीतल चाँदनी जितनी तेरे कानों के झुमके,
Nitesh Prajapati
"श्रृंगार रस" सजती संवरती हूंँ मे तेरे लिए ओ पिया, तेरे नाम का ही सिंदूर पूरती हूंँ ओ पिया। बालों में फूलों की माला तेरे ही लिए सजाती हूंँ, ताकि उसकी खुशबु से तु खींचे आए मेरे करीब ओ पिया। तेरे ही लिए तो सजा के रखती हूं घर का आँगन, एक बार आजा पिया मेरे आँगन को पवित्र करने। इस बारिश के मौसम में मोहे भीगना है तेरे संग, सुनकर मेरे अंतरात्मा की पुकार पूरी कर जा मेरी तमन्ना। तेरे मिलन की आस में पल-पल तड़पू में, लेकिन फिर भी बावरी होकर फिर से नयी आश बांधू मे। रचना क्रमांक :-1 #kkकाव्यमिलन #कोराकाग़ज़काव्यमिलन #काव्यमिलन_1 #विशेषप्रतियोगिता #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़
jagruti vagh
तुम्हें भूलाने भी न हो मयकशीं नशा तो तुम ही हो मेरे हम नशीं सावन चल रहा बुझी ना प्यास अधरों से बरसा मेघ भर दे साँस याद आए आलिंगन की गर्माहट मेरे बैचेनी को कैसे मिले राहत तन,मन पर हैं छपे तेरे निशान बेजान है शरीर भर दे मेरे प्राण कब होगा ये लुका छुपी का अंत विराहग्नि में जल बन जाऊ संत वियोग श्रृंगार रस Pata nhi kya likha hai viyog ras hai ya kuch aur hi🙄 #aggobai #कोराकाग़ज़ #kkकाव्यमिलन #कोराकाग़ज़काव्यमिलन
भाग्य श्री बैरागी
'शृंगार रस' 🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀 तुम से मुक्तक छिड़ते हैं, गज़लें रूठा करती हैं, शायर होकर, छोड़ा उन्हें तो, कविताऍं तुम से जलती हैं। 🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀 शृंगार छोड़ मैं काग़ज़ का, तेरी चोटी सजाता हूॅं, कलम ने मुॅंह फुलाया है, काव्य को रोज़ मनाता हूॅं। 🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀 ____शेष भाग अनुशीर्षक में पढ़ें____ तुम से मुक्तक छिड़ते हैं, गज़लें रूठा करती हैं, शायर होकर, छोड़ा उन्हें तो, कविताऍं तुम से जलती हैं। 🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀 शृंगार छोड़ मैं काग़ज़ का, तेरी चोटी सजाता हूॅं, कलम ने मुॅंह फुलाया है,
Divyanshu Pathak
पलकें बंद करूँ तो तेरा दीदार होता है। तुम मिल जाओ प्रतिक्षण इंतजार होता है। खुद से बातें कर लेता हूँ जो तुमसे करनी हैं! मिलके तुमसे समझ रहा हूँ क्या प्यार होता है? दुआ करता हूँ तेरी ख़ुशी के लिए आजकल! दुआ करते हुए भी दिल बेक़रार होता है। इश्क़ हवाओं में हुश्न की महक बहने लगी। ख़्वाहिशों की ज़द में दिल जार जार होता है। तुम ही तुम नज़र आते हो मुझे कुछ और नहीं। पंछी' हरियाली के अंधे को जैसे ऐतवार होता है। #kkकाव्यमिलन #कोराकाग़ज़काव्यमिलन #काव्यमिलन_1 #विशेषप्रतियोगिता #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़ #पाठकपुराण
नेहा उदय भान गुप्ता
कर लेना राघव आज मेरा वरण तुम, हर घड़ी ना लो परीक्षा तुम मेरी इतनी। विरह में तेरे व्याकुल मैं हूँ भटक रही, तुम मेरे, मैं भी हूँ तेरी अनमोल रतनी।। अपने नाम के पीछे तेरा नाम लगाऊँ, कहलाऊँ मैं तो बस तेरी ही दुल्हनियाँ। प्रेम का ऐसा पर्याय सिखा दो मुझको, मैं भटक रही बनकर तेरी जोगनिया।। प्रेम अनूठा, सच्चा व समर्पित अपना हो, मेरी माथे पर सजी वो सिन्दूर तुम्हारा हो, बना लो तुम मुझको अपना जीवन साथी, तेरे आँगन में बस तेरी नेह का बसेरा हो।। अपने राजा राघव की रानी बन जाऊँ मैं, मिल जाए मुझको तेरे प्रेम का आलिंगन, लाड़ लगा ले हम दोनों अपने उपवन में, प्राप्त होता रहे मुझे तेरे प्रेम का छुअन।। सांझ सवेरे बस तुझको ही निहारती रहूँ, बन जाऊँ तेरे अधरो की मधुर मुस्कान। गुलाबी तन को सींचू मैं तेरे श्रृंगार रस से, तुम हो रघुनन्दन मेरे यौवन की पहचान।। झूम रही है ये तो पवन अलबेरी बदलिया, मेरा चंचल रंगी चितवन भी मचल रहा है। प्यासे मेरे लबों को चूम लो आज तुम राम, तड़पती निगाहें व जिया मेरा धड़क रहा है।। काव्य मिलन —1 कर लेना राघव आज मेरा वरण तुम, हर घड़ी ना लो परीक्षा तुम मेरी इतनी। विरह में तेरे व्याकुल मैं हूँ भटक रही, तुम मेरे, मैं भी हूँ तेरी अनमोल रतनी।।
नेहा उदय भान गुप्ता😍🏹
कर लेना राघव आज मेरा वरण तुम, हर घड़ी ना लो परीक्षा तुम मेरी इतनी। विरह में तेरे व्याकुल मैं हूँ भटक रही, तुम मेरे, मैं भी हूँ तेरी अनमोल रतनी।। अपने नाम के पीछे तेरा नाम लगाऊँ, कहलाऊँ मैं तो बस तेरी ही दुल्हनियाँ। प्रेम का ऐसा पर्याय सिखा दो मुझको, मैं भटक रही बनकर तेरी जोगनिया।। प्रेम अनूठा, सच्चा व समर्पित अपना हो, मेरी माथे पर सजी वो सिन्दूर तुम्हारा हो, बना लो तुम मुझको अपना जीवन साथी, तेरे आँगन में बस तेरी नेह का बसेरा हो।। अपने राजा राघव की रानी बन जाऊँ मैं, मिल जाए मुझको तेरे प्रेम का आलिंगन, लाड़ लगा ले हम दोनों अपने उपवन में, प्राप्त होता रहे मुझे तेरे प्रेम का छुअन।। सांझ सवेरे बस तुझको ही निहारती रहूँ, बन जाऊँ तेरे अधरो की मधुर मुस्कान। गुलाबी तन को सींचू मैं तेरे श्रृंगार रस से, तुम हो रघुनन्दन मेरे यौवन की पहचान।। झूम रही है ये तो पवन अलबेरी बदलिया, मेरा चंचल रंगी चितवन भी मचल रहा है। प्यासे मेरे लबों को चूम लो आज तुम राम, तड़पती निगाहें व जिया मेरा धड़क रहा है।। काव्य मिलन —1 कर लेना राघव आज मेरा वरण तुम, हर घड़ी ना लो परीक्षा तुम मेरी इतनी। विरह में तेरे व्याकुल मैं हूँ भटक रही, तुम मेरे, मैं भी हूँ तेरी अनमोल रतनी।।
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श्याम का प्रेमभाव हे राधिके..! जितनी बार देखूँ सौंदर्य तुम्हारा मन बाँवरा भरता नहीं, किन शब्दों में करूँ मैं वर्णन तुम्ही में मेरा सारा संसार समाया है, तुम्हारे ये नयन मतवाले से जाने क्यों ये भ्रमित है मुझे कर देते, शब्द रस रूप सुगंध से निर्मित तुम्हारी कण कण को महकाती सी उज्ज्वलता के तेज से धरती सारी पर सुनहरी सी धूप बिखरा जाती है, शब्द भी शब्दहीन हो जाते कैसे करूँ मैं व्याख्यान प्रिये मैं दीपक सा तुम बाती सी ज्योति उसकी अटूट विश्वास प्रिये, मिसाल हमारे सच्चे प्रेम की आधारशिला ये प्राण प्रिये, राधा बिना श्याम अधूरा श्याम बिना राधा अधूरी कैसी गज़ब की जोड़ी हे मेरी राधे तुम प्राणों से भी प्यारी प्रिये, काव्य मिलन पहला चरण श्रृंगार रस श्याम का प्रेम भाव 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 प्रस्तुत पंक्ति में श्री श्याम जी श्रृंगार रस में अपनी भावनाओं को सुकुमारी राधा रानी से अपने शब्दों में ढ़ाल कर उनसे कहने का प्रयत्न कर रहे हैं
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