Find the Best उठने Shayari, Status, Quotes from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos aboutउठने के बाद, अमृतवेला उठने के फायदे, उठने का, उठने पर चक्कर आना,
Sarfaraj idrishi
हमे फ्नाह होता और गिरता देखना चाहते है हमारा ही सहारा लेकर उठने वाले लोग ☺️ ©Sarfaraj idrishi #Success हमे #फ्नाह होता और #गिरता #देखना चाहते है #सरफाराज #Sarfaraj_idrishi #हमारा ही #सहारा लेकर #उठने वाले #लोग 🤣🤣The Advisor Neeraj Upadhyay 9548637485 pinky masrani Rina Giri Ashis Das
Hitesh Girdhar
में गिरा मर मर कर जीने की कोशिश में मरा मुकद्दर को काबू करने की कोशिश में जुटा ये किसने कहा , ये किसने है किया ? कोशिश तो बहुत की पर हुआ क्या बता ? किस्मत पे किसी का ज़ोर है चला ? मंज़िल तो दूर है कोशिश की है ज़रा फासला ये बहुत था जो तैय किया है ज़रा! गिर गिरकर उठने की कोशिश की है ज़रा ! ©Hitesh Girdhar #गिर गिरकर #उठने की #कोशिश की है ज़रा #fall #NojotoWritingPrompt
Chaurasiya4386
लाइफ में गिरना बहुत जरूरी है क्योंकि गिरने के बाद ऊपर उठने के अलावा दूसरा कोई ऑप्शन नही बचता । ××{{{®•©}}}×× #लाइफ में गिरना #बहुत जरूरी है# क्योंकि गिरने #के बाद# ऊपर #उठने के अलावा #दूसरा कोई ऑप्शन #नही #बचता । #newplace
kavi lakshYA
आज 9 बजे भी बडी मुश्किल से उठने वाला कभी सुबह 6 बजे उठने की कोशिश करता था कोई तो था ........ जिसे मैं इकतरफा ही सही लेकिन बहुत प्यार करता था # kavi lakshYA
Chandrika Lodhi
जश्न मना रहे थे जश्न हम सब आजादी का आत्मा मेरी कहकर यह चीत्कार उठी आजाद कहा हूँ मैं? मैं विद्रोह करने को तैयार बैठी न खाने की आजादी न पहनने की न उठने की आजादी न बैठने तालीमो की खान हूँ मैं आज भी गुलाम हूँ अपना अनकहा गुस्सा दिखा रही थी मैं पास में बैठी एक अम्मा मेरी बातो से मुस्कुरा रही थी मैंने वेबाकी से कहा हुआ क्या जो इतरा रही हो आप अजीब सी हंसी क्यो हंसे जा रहे हो थोड़ा सौम्य और सहजता से वो बोली तू अभी नदान है इसलिए इन बातो को गुलामी बोली मेट्रिक पास मैं उस उम्र की हूँ मैं आज आजाद हूँ इसलिए गुलामी नही भूली वो बुरका मेरी अम्मी की पहचान थी वो घूघट मेरे ससुर की शान थी वो जड़ो में सब्जी खुद ही सुबह लाते थे परेशान न हूँ मैं इसलिए खुद बच्चो को स्कूल छोड़ आते थे उनकी दासी होना सौभाग्य समझती हूँ मैं आज भी इस आजादी में उनकी प्रेम कैद को तरसती हूँ अब्बा मेरे मुझे उठने बैठने के साथ तरीका भावनाओ का सीखाते थे मैं सुंदर लगी इसलिए माँ से गोटे वाली चुनर मगवाते थे उनकी लाड़ली बनकर मैं सबकी जान थी अगर बात मनना है गुलामी तो उस गुलामी के हम भी गुलाम थे माथे पर माँग टीका सजाकर जब सास मेरी दुआओ देकर मुस्कुराती थी उनकी दी वो साड़ी मेरी मान कहलाती थी वो राखी पर आये न आये पर ज्नमदिन पर तोहफा जूरूर लाते थे भाई मुझे गुलाम बनाकर ही इतराते थे वो सुनाने हर किस्सा मुझे दफ्तर का जब जल्दी घर आते थे यही सोचकर मेरे कदम चाय बनाने किचन तक अपने आप चले जाते थे उनके सपनो को इंसान बनाने मैं सपनो को क्या खुद को भी छोड़कर मुस्कुराती हूँ उनकी बच्चो की माँ बनकर मैंअफसर होने से ज्यादा धौक जमाती हूँ आज भी अपने पौधो की साख पर मुस्कुराती हूँ मैं गुलाम बनकल आज अपनी भावनाओं की ठगी सी रह जाती हूँ तामीजो और संस्कारो से गुलाम होना बड़प्पन है आजाद होना है खुदगर्जी से आजाद हो जाओ तुम ज्येठ के टिसु बन जाओ विद्रोह करना है तो अन्याय का करो भवनाओ का नही मचलते समाज की नींव वना सकती हो तुम इस गुलामी में जीकर बिना विद्रोह के क्रांति ला सकती हो जो आजाद होकर दिन भर तुम्हारे प्रेम की आह भरते है क्या वो चेहरे तुमको आजाद दीखते है #NojotoQuote
sc_ki_sines
मधुरम मधुरम जीवन की ज्योत जले दिन सूर्य चले और चंद्र उठे आकाश की रोशनी बेला में फिर नया सवेरा जाग उठे फिर शाम ढले और रात जले मधुरी जीवन की ज्योत जले दिन सूर्य चले फिर पार लगी जीवन की रोशनी बेला में फिर नया सवेरा जाग उठे फिर पाव उठे और चलने लगे मधुरम जीवन की ज्योति जले नन्हे पग उठ फिर गिरने लगे फिर उठने लगे और चलने लगे टिम टिम करते तारे जैसे जीवन की नई उमंग उठे तरंग बने और भी और बहने लगी है झर झर करती नदिया जैसी झूम रहे इठलाने लगी नटखट टोली बन उठने लगी उठने लगी मन की ज्योत जले उठने लगी तो चलने लगी समझ ना पाया मन समझा न सके सब मन मेरा ज्ञान को हम अपनाने लगे मधुरी में जीवन की ज्योत जले आप बिछड़े वह ऐसा आया जब दिल से दिल टकराया मन मन की मन ही मन मुस्कान ही ना कि आप प्रेम के गीत सुनाने लगे एक नई राह पर चलने को मन आतुर हो दिल धड़का आने लगी मधुरम जीवन की ज्योत जले दिन सूर्य चले फिर चंद्र उठे अब बात पुरानी उठने लगी लगी बचपन की याद सताने लगी फिर से वो बचपन आया संग झूम के दिल भर आया फिर वही पुरानी बात बने फिर उठने लगी चलने लगे मधुरम जीवन की ज्योत जले दिन सूर्य चले फिर चंद्र उठे अब अंतिम क्षण वो आया बचपन से पचपन बीत गए उम्मीद लगाए बैठे हैं फिर वह बचपन जाग उठे इस दुनिया को प्यारा बचपन बीत गया कहां चला गया गुमनाम हुआ अभी आज रात रह जाती है वह सात को तरसाती है अब अब सांस उठे और दबने लगे जीवन की ज्योति बुझने लगे मंत्र एम जीवन की ज्योत जले दिन सूर्य चले फिर चंद्र उठे #poetrymadhurim
Hiren. B. Brahmbhatt
उठने और गिरने के मिलते हैं , बहुत से नायाब पल, ज़िंदगी में नये सफ़र और अनोखी , मंज़िल के साथ, अपनी कोशिशों का मंजर, बना लेते है उठने वाले , गिरने वाले अपनी हरकतों का , बना लेते है केदखाना .... जिंदगी के नायाब पल ।
जिंदगी के नायाब पल ।
read moreNeha Mittal
बेटी से माँ का सफ़र (बहुत खूबसूरत पंक्तिया , सभी महिलाओ को समर्पित) बेटी से माँ का सफ़र बेफिक्री से फिकर का सफ़र रोने से चुप कराने का सफ़र उत्सुकत्ता से संयम का सफ़र
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