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Pratishtha Sharma
इतना मत सता ए जिन्दगी मेरा दिल लगना अभी बाकी है अब बस कर कितना रूलायेगी मेरा दिल से 'मुस्कुराना बाकी है' समय सीमा : 06.01.2021 9:00 pm पंक्ति सीमा : 4 काव्य-ॲंजुरी में आपका स्वागत है। आइए, मिलकर कुछ नया लिखते हैं,
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अनन्त से अनन्त की अनुभूति हृदय माही होती है, जब भी जवान की शहादत में कलम मेरी चलती है, ख़ुद ब खुद ही अक्षरोंयोक्ति भावों में हो बहती है, मेरे वीर जवानों की वाणी में यह कुछ कहती है, हृदय गदगद हो जाता एवरेस्ट पर तिरंगा लहराता है, मेरा हिंद भारत सर्वेश्वर हो यही तो महान कहलाता है, दी जी आहुति प्राणों की उनकी जवानी याद आती है, सरफरोशी की तमन्ना भर दिल मे वो सूली चढ़ जाती है। #12 जवानों की शहादत बीजापुर में नक्सलियों से मुठभेड़ में 22 जवानों की शहादत पर भावपूर्ण श्रद्धांजलि। भारत माता की जय विषय का रचना में होना अनिवार्य नहीं है। पंक्ति सीमा : 6-10 पंक्तियॉं
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देखा है हमनें भी उन बिलखते भूखे बच्चों को औऱ नेताओं की रोटी सिकती को, नित नित रैन भगत से ही दकोसलाबाजी करते,न सुनते मासूम की सिसकी को, वक़्त के साये में कुमलाहे है, मानो जमीं पर वो भी बिन बुलाये से मेहमान है, इनकी शेख़ से आज तक तुम बचे हो,दो समय फिर सुनो इनकी शेर सी भभकी को। काव्य-ॲंजुरी✍️ की साप्ताहिक प्रतियोगिता में आपका स्वागत है। विषय : देखा है हमने पंक्ति सीमा : 4 समय सीमा:25.02.2021 9:00pm विशेष : विषय का रचना में होना अनिवार्य नहीं है।
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चुपके..........से जिम्मेदारियों के बोझ से निकल गया ख़ामोश बचपन, चली गई अब कोमल हाथों की ये नर्मी,पीड़ा में अब उम्र हो गई पचपन, वो सर्द हवाओं सा बीता हर त्योहार,तनिक स्नेह मांगने को माँ-बाप लाचार, कैसा ये आधुनिकीकरण का दौर है,अब औलाद ने पहन ली विदेशी अचकन। समय सीमा : 21.01.2021 9:00 pm पंक्ति सीमा : 4 काव्य-ॲंजुरी में आपका स्वागत है। आइए, मिलकर कुछ नया लिखते हैं,
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उत्तरायण प्रतीक्षा *************** सूर्य देव आपको यह पावन पर्व समर्पित, हुये सक्रांति उत्तरायण में मन करूँ अर्पित, आई फिर झूम कर ढेरो खुशियों की बहार, नवोद्भिद सुमन पुष्प से चेहरे हुये पल्लवित, शरद ऋतु में आ तिल हम सब चटकाते, बना सक्रांति आज से दिन वृद्धि कर जाते, ठिठुरन को छोड़ आप शरद को ले जाते, खग छोड़ नीड़ आलस्य गगन में दूर उड़ जाते, कर दान पुण्य स्वर्गद्वार के लिए मिल जाये मोक्ष, आपसी स्नेहाभाव भी बाँट दो ,दुआ दो परोक्ष, बल बुद्धि विद्या का ज्ञान मिले नित शीश झुकाओ, करे जो मनभावन इस पावन हृदय चंदन बन जाओ, उत्तरायण में आये सूर्य से महामारी का विनाश हो, मन उल्लसित हो जाये ऐसा जीवन हमारा खास हो, न करना कभी बैरभाव किसी भी प्राणी तुल्य से, होगा जीवनसार जगत का ऐसी प्यार की मिठास हो। कर उत्तरायण प्रतीक्षा जीवन मे नव ऊर्जा का संचार हो, मिल जाता मोक्ष जो त्याग करे दुर्गुण न कभी दुराचार हो, समूल भारत मे अनन्य नामों से प्रसिद्ध यह त्योहार है, कहीं लोहड़ी, कही बिहू तो कही सक्रांति की बहार है। उत्तरायण प्रतीक्षा *************** सूर्य देव आपको यह पावन पर्व समर्पित, हुये सक्रांति उत्तरायण में मन करूँ अर्पित, आई फिर झूम कर ढेरो खुशियों की बहार, नवोद्भिद सुमन पुष्प से चेहरे हुये पल्लवित,
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कहाँ चला आज का मानव खो जीवन का परमार्थ? कर रहा विनष्ट जीवन का लक्ष्य और नेक भावार्थ, न सदाचार,न शिष्टाचार, समाप्त हुये सद्व्यवहार, कर आभास लौटा दो नेक नियती, यही है सत्यार्थ। समय सीमा : 14.01.2021 9:00 pm पंक्ति सीमा : 4 काव्य-ॲंजुरी में आपका स्वागत है। आइए, मिलकर कुछ नया लिखते हैं,
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उम्मीदों का कारवाँ अब निकल पड़ा है अधूरी मंजिल को पाने, चाहत मेरी सपनों को पूरा करूँ,चाहे हर प्रयास पड़े आजमाने, हार जाऊँ ये मेरी शिद्दत नहीं,जीतने को ही अब आदत बनाई है, मेरे हौसलों को बना जुनून,भर हुँकार लक्ष्य की सफलता पाई है। विशिष्ट प्रतियोगिता काव्य-ॲंजुरी✍️ विशिष्ट प्रतियोगिता में आपका स्वागत है। नियम :- 1. समय सीमा : 2 घंटे ( 9:00 pm - 11:00 pm ) 09.01.2021
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शालीनता संयमित्ता से चल क़दमों को अपने लक्ष्य तक के जाऊं, रोम रोम प्रश्नचित हो जाये मुस्कुराना बाकि है कुछ ऐसा कर जाऊं, मेरी अक्षरोंयोक्ति से हो सक्षम मैं ऐसा स्वर्णिम साहित्य रच जाऊं, हो अगर मेरे अपनो का साया मेरे सर पर मैं आसमां की थाह नाप जाऊं। समय सीमा : 06.01.2021 9:00 pm पंक्ति सीमा : 4 काव्य-ॲंजुरी में आपका स्वागत है। आइए, मिलकर कुछ नया लिखते हैं,
Anita Saini
बदलते वक़्त ने सब का रँग-ढंग मिज़ाज़ बदल दिया, गुज़रता था बचपन नानी-दादी के किस्से सुनते-सुनाते! परिवार टूटे प्यारे रिश्ते छूटे, छूटा वो चहकता बचपन, ख़ामोश बचपन के, गुज़रते नहीं दिन अब हँसते-हँसाते! समय सीमा : 21.01.2021 9:00 pm पंक्ति सीमा : 4 काव्य-ॲंजुरी में आपका स्वागत है। आइए, मिलकर कुछ नया लिखते हैं,
Neha Pathak
देखा है मैंने, बिन कुछ लिए कुदरत को देते हुए! देखा है काटों के बीच फूलों को हँसते हुए! देखा है जलते सूरज को संसार रौशन करते हुए! देखा है मैंने ओस की बूँदों पर पूरी पृथ्वी सजे हुए! काव्य-ॲंजुरी✍️ की साप्ताहिक प्रतियोगिता में आपका स्वागत है। विषय : देखा है हमने पंक्ति सीमा : 4 समय सीमा:25.02.2021 9:00pm विशेष : विषय का रचना में होना अनिवार्य नहीं है।