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DR. SANJU TRIPATHI
जिनको कभी ना देखा वो पास आ गए, जिनको था दिल से चाहा वो दूर हो गए। जाते ना दूर कैसे जब रब ने लिख दिया, वो फर्ज से लाचार थे हम मजबूर हो गए। वह खुश रहे हमेशा मेरी दुआ है रब से, मैं जी रही अकेली तन्हाइयों में जाने कब से। अपनों से क्या छुपाऊंँ मैं राज जिंदगी का, गम में भी हंँसना अब मेरे दस्तूर से हो गए। मिलती है जब कभी भी उनसे मेरी नजर, कुछ सोच कर मैं थाम लेती हूंँ मेरा जिगर। इतना असर है उनकी उस एक निगाह में, लगता है अब तो बस सारे गम दूर हो गए। बरबादियों के शहर में अब सबसे बड़ी हूंँ मैं,सब कुछ लुटा करके इश्क में चल पड़ी हूंँ मैं। किसको सुनाऊंँ अपने इश्क की अधूरी दास्तांँ बिन कुछ कहे आशिकी में मशहूर हो गए। चाहते थे जिंदगी अपनी मनमर्जी से गुजारें, बनाकर प्यार को जिंदगी हम जिंदगी संँवारे। ख्वाब टूट गए, हमारी कहानी अधूरी रह गई, देते हैं अब वो दिलासा जो हमसे दूर हो गए। रविवार विशेष प्रतियोगिता विशेष पुरस्कार...02. में आप सभी का स्वागत है! अपने दिल से कोई भी दर्द भरी कविता लिखें! Done न लिखे अपनी रचना को ही कमेंट बॉक्स मे पेस्ट कर्रे शीर्षक और अपना नाम भी लिखे email भी दे ➡ रविवार विशेष प्रतियोगिता संख्या- 02 ➡ रचना 8 पंक्तियों में लिखें
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बचपन में ही मिट जाती है मासूमियत ना जाने कितनी मासूम जिंदगियों की रहम नहीं करती है जिंदगी भी इन पर इनकी मासूम सी मुस्कान मिटाने में। कभी उठाती मांँ बाप का साया सर से, कभी गरीबी के दलदल में फंँसा देती है। कभी कहीं कोई बच्ची मार दी जाती, कभी कहीं पैदा होने ही नहीं पाती है। बचपन का सुख नसीब में ही नहीं होता इनकी किस्मत जन्म से ही रूठ जाती है। ➡ प्रतियोगिता संख्या - 09 ➡ शीर्षक - मासूम जिंदगी ➡ सुन्दर शब्दों से आठ पंक्तियों मे रचना लिखें ➡ समय सीमा- आज रात 12 बजे तक।
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मेरी गुड़िया मेरी बहना तेरे प्यार से भरा है जिंदगी का हर कोना तू अनमोल है मेरे लिए तेरे सामने कुछ नहीं है चांदी और सोना। तेरे लड़ने झगड़ने से ही चहकता है मेरे घर का हर कोना कोना, जिंदगी में आए चाहे जितने उतार-चढ़ाव तू कभी दूर ना होना। तुझसे ही महकती है जिंदगी सारी खुशियां तुझ पर ही लुटाएंगे, तुझमें बसती है जान,तू लाडली है मेरी तू जिंदगी में कभी ना रोना। तू जिंदगी में जहाँ भी रहे हमेशा खुदा की रहमत तुझ पर बरसती रहे, हर बुलंदी को तू छू ले तेरा नाम रोशन हो तू कभी हिम्मत न हारना। ➡ प्रतियोगिता संख्या - 08 ➡ शीर्षक - मेरी गुड़िया मेरी बहना ➡ सुन्दर शब्दों से आठ पंक्तियों मे रचना लिखें ➡ समय सीमा- आज रात 12 बजे तक।
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जब से जोड़ा तेरे संग साँसों से साँसों का बंधन, महकने लगा मेरा जीवन जैसे महकता है चंदन। तूने अपनी साँसों से मेरी साँसो को जो छू लिया, मेरा जीवन तेरे प्यार में तप कर हो गया कुंदन। अपने प्यार से सींचते रहते हो ये चाहत की जमीं, हर पल जीते हो मुझमें करते हो दिए सा रोशन। दुनियाँ के लिए दो जिस्म है,पर एक जान है हम, जीवन भर निभाएंगे बाँधा जो तेरे संग गठबंधन। ➡ प्रतियोगिता संख्या - 07 ➡ शीर्षक - तेरे संग ➡ सुन्दर शब्दों से आठ पंक्तियों मे रचना लिखें ➡ समय सीमा- आज रात 12 बजे तक।
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व्यथित मन की पीड़ा, मन किसी को कैसे समझाए, कोई भी नहीं है अपना यहाँ, किस को अपना बताए। हर पल ही ये जिंदगी, नए-नए रुप हमको दिखा रही, समझ नहीं आ रहा हमें, हमसे क्या कहना चाह रही। सुकून की तलाश में, इधर-उधर ही भटकती फिर रही, किससे कहें, कि मन की पीड़ा हरपल बढ़ती ही जा रही। वक्त नहीं है किसी के पास, किसी को वक्त देने के लिए, खुद ही मरहम लगाना है हमें, अपने जख्म सीने के लिए। ➡ प्रतियोगिता संख्या - 06 ➡ शीर्षक - मन की पीड़ा ➡ सुन्दर शब्दों से आठ पंक्तियों मे रचना लिखें ➡ समय सीमा- आज रात 10 बजे तक।
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चार दिन की ज़िंदगी में दिल की ख्वाहिशें बेहिसाब है, पल पल बीत रही जिंदगी का ना कहीं कोई हिसाब है। कहने को तो दुनियाँ में सबकी ही जिंदगी बेहिजाब है, फिर भी सबके चेहरों पर पड़े यहाँ कई कई नकाब हैं। सभी की जिंदगी एक अनसुलझी पहेली और सवाल है जिंदगी की किताब में ही होता हर सवाल का जवाब है। जिंदगी की एक ख्वाहिश पूरी होती तो दूजी जाग जाती है, हर ख्वाहिश पूरी हो जाए तो जिंदगी बन जाती नायाब है। ➡ प्रतियोगिता संख्या- 05 ➡ शीर्षक:- ख्वाहिशें बेहिसाब ➡ कोई शब्द सीमा नहीं है। ➡ इस प्रतियोगिता में आप सभी को इस शीर्षक पर collab करना है।
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दिल में हो तुम,धड़कन में हो तुम,मेरे जीवन के हर कण-कण में तुम, हर आती जाती साँस में तुम, रग-रग में बहते हो लहू बन तुम ही तुम। मेरी नींदों में, मेरे ख्वाबों में तुम,मेरे जीवन का चैन-ओ-करार हो तुम, मेरी जिंदगी तुझमें ही समाई है, मेरे लिए मेरे सूरज,चाँद, तारे हो तुम। रोशन है दुनिया मेरी तेरी ही रोशनी से, मेरी जिंदगी के उजाले हो तुम, बेचैन दिल की धड़कन में धड़कते हो तुम, मेरी रुह की राहत हो तुम। तुम पर ही मरता है यह दिल, मेरी पहली और आखिरी चाहत हो तुम, मेरा दिल हो,मेरा जिगर हो, मेरी जान हो और मेरी जिंदगी हो बस तुम। खुदा से रात और दिन दुआ में मांगते थे जिसे, वह पूरी हुई मन्नत हो तुम, तुझसे ही मैं हूँ, मेरा वजूद है और मेरी जिंदगी के लिए मेरी जन्नत हो तुम। ➡ प्रतियोगिता संख्या- 04 ➡ शीर्षक:- दिल में हो तुम ➡ कोई शब्द सीमा नहीं है। ➡ इस प्रतियोगिता में आप सभी को इस शीर्षक पर collab करना है।
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जिंदगी की खूबसूरत सौगात है इश्क़, सच्चा हो तो कोहिनूर हीरा है ये इश्क़। मेरी साँसों में महकता है तेरा ही इश्क़, मेरे दिल में धड़कता है तेरा ही इश्क़। खुदा से मिलती है सूरत मेरे प्यार की, मेरी मोहब्बत संग इबादत हो जाती है। जमीं पर पड़ते नहीं है पाँव मेरे इश्क़ में, हमें जमीन आसमाँ एक नजर आता है। धोखे और फरेब से जुदा है ये मेरा इश्क़, वफा और विश्वास पर टिका है ये इश्क़। इश्क़ ही मेरे लिए दुआ और मेरी मन्नत है, इश्क़ ही मेरे लिए कलमा और आयत है। तुझसे ही जुड़ी है मेरी जिंदगी की खुशियाँ, तू ही है मेरी पूरी की पूरी प्यार की दुनियाँ। -"Ek Soch" ➡ रविवार विशेष प्रतियोगिता संख्या- 01 ➡ शीर्षक:- आप स्वंय सोचकर लिखे ➡ कोई शब्द सीमा नहीं है। ➡ इस प्रतियोगिता में आप सभी को इस शीर्षक पर collab करना है।
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कृष्ण के प्रेम में दीवानी है दोनों कहलाती एक मीरा और एक राधा, एक ही प्रेम की भाषा के लिए है दोनों की अलग-अलग है परिभाषा। मीरा का प्रेम भक्ति से भरा कृष्ण से शुरू और कृष्ण पर ही खत्म है, राधा का प्रेम प्रेम से भरा चाहे कृष्ण का भी मन हर पल राधा का संग। मीरा का प्रेम समर्पण है मीरा को कृष्ण के प्रेम की नहीं भक्ति की चाह है, राधा कृष्ण की दीवानी कृष्ण मन राधा और राधा मन कृष्ण में बसा है। मीरा के प्रेम की ना अवधि है ना कोई परिधि ना अशिष्ट ना विशिष्ट है, राधा के प्रेम में कृष्ण के साथ की विशिष्टता है एक-दूजे पर अवलंबित है। ➡ प्रतियोगिता संख्या- 03 ➡ शीर्षक:- एक मीरा और एक राधा ➡ कोई शब्द सीमा नहीं है। ➡ इस प्रतियोगिता में आप सभी को इस शीर्षक पर collab करना है।
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पिताजी की याद में ***************** आज अचानक याद वो मंजर आ गया, जब आपको दुनिया से रुख़्सत किया, हंसी-खुशी कट रही थी जिंदगी, अचानक आपने अलविदा कह दिया। तुझ से बिछड़ने के बाद ये जाना,मानो घर खाली हुआ,बस खंडर रह गया, तू नहीं था, तेरे साथ दुनिया का, रूठा रूठा सा एहसास रह गया। इंतजार जिसका था मेरा ख्याबां,आज मेरी बगिया खारज़ार कर गया, गोद में पली , दिल का टुकड़ा थी,आज ना जाने,अपनी रुखसती से,दिल के टुकड़े-टुकड़े कर गया। याद है मुझे बाबुल मेरे, हर बार तूने लाड लडाया है, अच्छा क्या हैं, बुरा क्या हैं, उसका पहचान कराया हैं। आज तो कह गया अलविदा, हमें अपने दिल के टुकड़ों को क़ैद-ए-हयात से तुम तो हो गए आज़ाद, बताओ हमें किसके भरोसे छोड़ आया था। Done न लिखे अपनी रचना को ही कमेंट बॉक्स मे पेस्ट कर्रे शीर्षक और अपना नाम भी लिखे email भी दे ➡ रविवार विशेष प्रतियोगिता संख्या- 02 ➡ रचना 8 पंक्तियों में लिखें ➡ शीर्षक:- आप स्वंय सोचकर लिखे जिंदगी से जुड़ी कोई दर्द भरी कविता
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