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Shashi Bhushan Mishra
White दबी राख में चिन्गारी है, जलने की फिर तैयारी है, धोखे में मत आना कोई, होशियार दुनिया सारी है, करता सबसे रायशुमारी, ख़ुश-फ़हमी की बीमारी है, रिश्ते अगर निभाने हैं तो, चुप रहना दुनियादारी है, गैरों संग बरताव देखकर, लगता कितनी बेचारी है, प्यासा पनघट से टकराया, गूँजा मन में किलकारी है, गुंजन मन आनंद समाया, प्रभु तेरी सब बलिहारी है, -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #दबी राख में चिन्गारी है#
insta@words from heart99
Simran Prasad
माना खामोश हैं ये रात चांद की रोशनी ठंड की कोहरे की हैं ये रात सड़क किनारे आग में हाथों को सेकते कुछ लोग शीत हवाओं से चल रही हैं ये रात बेचैन सासें कांपता शरीर माना थोड़ी सी ख़ामोश हैं ये रात ©Simran Prasad #रात #दबी #सिसकती #कागज #का #सा #ColdMoon
Lotus banana (Arvind kela)
🌷🌷#रात____में ख्वाहिशें कुछ यूँ #दबी सी रह गई🌷🌷 🌷🌷#ख्वाब में तुमको #ढूंढते_ढूंढते बस #सुबह हो गई😍💞💞.🌷🌷 🌷🌷सुप्रभात 🌷🌷 ©Lotus banana (Arvind kela) #freebird
Aryan Shivam Mishra
रात के अंधेरे में कैसी बात दबी है कौन क्या जाने कैसी जज़्बात दबी है कहीं खुशियां, कहीं प्यार तो कहीं चीखती हुई एक आवाज दबी है आखिर रात के अंधेरे में कैसी बात दबी है #Raat #nojoto#poem#poety#quote#sayri#status#aryanshivammishra
Aman Singh Pal
इस रात के अंधेरे में एक सुबह की आस दबी है, इस रात के अँधेरे में एक ख्वाब की आस दबी हैं, इस रात की क्या लिखें दासता इस रात के अँधरे में मोह्हबत के जजबात दबे है। मेरी अधूरी ख्वाहिश
Shilpi
जिंदगी ये ज़िंदगी नहीं आसां.... किताबों के पन्नो में उलझी हुई-सी, क़िस्मत के टुकड़ों में पलती हुई-सी, कभी इश्क के रंगों में रंगी हुई-सी, तो कभी भीगे पलकों में दबी हुई-सी, खुले आसमां में उडती हुई-सी, कभी बंद पिंजरे में दबी हुई-सी, सपनों के पीछे भागती हुई-सी, या हक़ीक़त को भी नकारती हुई-सी, परायो के लिए जीती हुई-सी, तो कभी अपनों के लिए मरती हुई-सी, ऐ जिंदगी,यही है तेरी दास्तां, तुझे जीना नहीं है आसां.....
Tr. Kajal Parmar
मध्यम वर्गीय परिवार ज़िन्दगी ये दबी-दबी जीते है, मध्यम वर्गीय परिवार कुछ यू पलते है, ख्वाब ज्यादा बड़े नही देखते ये, बस सुकून की रोटी से संतुष्ट हो लेते है, मशगूल रहते है, सिर्फ ये अपनी ज़िंदगी में, चन्द पैसे कमा कर ही खुश हो लेते है। #मध्यम #वर्गीय #परिवार
hardik Sharma
दबी हैं कई भूखों की आहें, दबी हैं कई आशिकों की चाहें, और दबी हैं कई पथिकों की राहें, इस रात के अंधेरे में #रात