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Rashmi Hule

जखम होताच बोटाला कृष्णाच्या 
द्रौपदीने पदराची चिंधी बांधली... 
कृष्ण - द्रौपदीच्या निरपेक्ष प्रेमाची
अजरामर राखी झाली...
बंधू तु बहिणीला रक्षिण्याचे
वचन ही दिले
अडचणीत येता बहिणीला
अक्षयपात्र तुच दिले...
अपमानीत होता बहीण  
त्याच चिंधीचे अक्षय
वस्त्र झाले. 
   #निरपेक्ष प्रेम #भाऊबहिण #yqtaai #yqbaba #yqdidi #yqtales#bestyqmarathiquotes

Writer_Sonu

शिक्षा पंथ #निरपेक्ष #Thoughts

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Keshav Suryavanshi

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माझे मत-- माझे विचार                                                                         मित्रांनो, माणस माणसाच मन तथा त्याच्यामनोभावना कदापी ओळखू                                                                       शकत नाही. हे पूर्णत: सत्य नसून,                                                                        काही अंशी सत्य आहे. मानवी मन                                                                        हे अतीशय चंचल अस्थिर,संवेदन- ‌                                                                      शील असल्यामुळे ,क्षणात आपले                                                                       मनोभाव बदलत असतात. सबब                                                                       त्या मनोभावना ओळखण्यासाठी                                                                       आपल्यात स्थिर निरपेक्ष मनोभाव                                                                       असणे अगत्याचे आहे. आपल्याला                                                                       ते मनोभाव ओळखण्यासाठी आपले                                                               ‌ मनोभाव निर्भेद,निर्मल,निरपेक्ष तथा                                                                       प्रभावहीन असणे आवश्यक आहे.                                                                       अॅड. सूर्यवंशी

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 8 - असुर उपासक 'वत्स, आज हम अपने एक अद्भुत भक्त का साक्षात्कार करेंगे।' श्रीविदेह-नन्दिनी का जबसे किसी कौणप ने अपहरण किया, प्रभु प्रायः विक्षिप्त-सी अवस्था का नाट्य करते रहे हैं। उनके कमलदलायत लोचनों से मुक्ता की झड़ी विराम करना जानती ही नहीं थी। आज कई दिनों पर - ऐसे कई दिनों पर जो सौमित्र के लिए कल्प से भी बड़े प्रतीत हुए थे, प्रभु प्रकृतस्थ होकर बोल रहे थे - 'सावधान, तुम बहुत शीघ्र उत्तेजित हो उठते हो! कहीं कोई अनर्थ न कर बैठना! शान्त रह

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
8 - असुर उपासक

'वत्स, आज हम अपने एक अद्भुत भक्त का साक्षात्कार करेंगे।' श्रीविदेह-नन्दिनी का जबसे किसी कौणप ने अपहरण किया, प्रभु प्रायः विक्षिप्त-सी अवस्था का नाट्य करते रहे हैं। उनके कमलदलायत लोचनों से मुक्ता की झड़ी विराम करना जानती ही नहीं थी। आज कई दिनों पर - ऐसे कई दिनों पर जो सौमित्र के लिए कल्प से भी बड़े प्रतीत हुए थे, प्रभु प्रकृतस्थ होकर बोल रहे थे - 'सावधान, तुम बहुत शीघ्र उत्तेजित हो उठते हो! कहीं कोई अनर्थ न कर बैठना! शान्त रह


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