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Krishnadasi Sanatani

#Reality #Hindi #bahu #dehliz #shaadi #ijjat #ghar #grihasthi #tadap #Insaan वंदना .... Satyajeet Roy सचिन सारस्वत Anil Ray Divya Thakur

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Sarita Shreyasi

जब तुम्हारी खुशियाँ, गृहस्थी के दायरे से, बाहर चली जाती हैं, मेरी उपस्थिती तुम्हें, घर की सीमित मर्यादाएँ , याद दिला जाती हैं। #yqdidi#Woman#wife#grihasthi#Hindi#Quotes

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जब तुम्हारी खुशियाँ,
गृहस्थी के दायरे से,
बाहर चली जाती हैं,
मेरी उपस्थिती तुम्हें,
घर की सीमित मर्यादाएँ,
याद दिला जाती हैं। जब तुम्हारी खुशियाँ,
गृहस्थी के दायरे से,
बाहर चली जाती हैं,
मेरी उपस्थिती तुम्हें,
घर की सीमित मर्यादाएँ ,
याद दिला जाती हैं।
#yqdidi#woman#wife#grihasthi#hindi#quotes

Sarita Shreyasi

मेरी गृहस्थी, तुम्हारा आजीवन कारावास नहीं संगिनी संग संतान है, अनचाहा प्रेमपाश नहीं। तुम्हारे प्रति कुछ कर्तव्य हैं मेरे, तुम्हारी संवेदना पर मेरा अधिकार नहीं, अर्द्धांगिनी हूँ, सहचरी हूँ, तुम्हारी #Hindi #yqdidi #grihasthi

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मेरी गृहस्थी,तुम्हारा 
आजीवन कारावास नहीं
संगिनी संग संतान है,
अनचाहा प्रेमपाश नहीं।

                            तुम्हारे प्रति कुछ कर्तव्य हैं मेरे,
                            तुम्हारी संवेदना पर मेरा अधिकार नहीं,
                            अर्द्धांगिनी हूँ, सहचरी हूँ, तुम्हारी
                            कामनाओं की सख्त पहरेदार नहीं। 
मेरी गृहस्थी,
तुम्हारा आजीवन कारावास नहीं
संगिनी संग संतान है,
अनचाहा प्रेमपाश नहीं।
तुम्हारे प्रति कुछ कर्तव्य हैं मेरे,
तुम्हारी संवेदना पर मेरा अधिकार नहीं,
अर्द्धांगिनी हूँ, सहचरी हूँ, तुम्हारी

Sarita Shreyasi

एक अधूरी रात के बाद, नींद भरी मुसकान के साथ, जब कानों में फुसफुसाते हो, "ठीक से जाना,अच्छे से रहना", मन की खींची लक्ष्मण-रेखाएँ, बड़ी सुगमता से तोड़ जाते हो। मैं भी इतना ही कह पाती हूँ, #Hindi #yqdidi #grihasthi

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एक अधूरी रात के बाद,
नींद भरी मुसकान के साथ,
जब कानों में फुसफुसाते हो,
"ठीक से जाना,अच्छे से रहना",
मन की खींची लक्ष्मण-रेखाएँ,
बड़ी सुगमता से तोड़ जाते हो।
                                     मैं भी इतना ही कह पाती हूँ,
                                     ठीक से रहना,फिर आती हूँ,
                                     ये कह कर कुछ शिकायतें,
                                     अपने पीछे छोड़ जाती हूँ ।
                                     खारी-मीठी दो मुसकान लिए,
                                     प्यार से आगे बढ़ जाती हूँ। एक अधूरी रात के बाद,
नींद भरी मुसकान के साथ,
जब कानों में फुसफुसाते हो,
"ठीक से जाना,अच्छे से रहना",
मन की खींची लक्ष्मण-रेखाएँ,
बड़ी सुगमता से तोड़ जाते हो।

मैं भी इतना ही कह पाती हूँ,

Sarita Shreyasi

सूर्य-सम सत्य से,आँखें मूँदी नही जाती, किन्तु प्रत्यक्ष साक्षात्कार से डर जाती हूँ, इसलिए औरों के लिए नहीं, अपनी खातिर ही, अनचाहे सच को,कई बार, अनदेखा कर जाती हूँ। #yqdidilove#Truth#relation#grihasthi#Hindipoetry

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सूर्य-सम सत्य से,आँखें मूँदी नही जाती,
किन्तु प्रत्यक्ष साक्षात्कार से डर जाती हूँ,
इसलिए औरों के लिए नहीं,अपनी खातिर ही
अनचाहे सच को,
कई बार अनदेखा कर जाती हूँ।

                           श्रम-संयम से संभालती स्वयं को,
                           हर बार एक ही बात याद दिलाती हूँ,
                           कुछ मोहक सत्य,कुछ वांछनीय प्रपंच,
                           संसार और गृहस्थी हमारी,
                           है एकअद्भुत रंगमंच।

निभा रहे,भूमिका सब अपनी,
अभिनय के हैं विभिन्न रंग,
क्यूंकि जग का,जीवन का,
है यह अनिवार्य अभिन्न अंग।
 सूर्य-सम सत्य से,आँखें मूँदी नही जाती,
किन्तु प्रत्यक्ष साक्षात्कार से डर जाती हूँ,
इसलिए औरों के लिए नहीं,
अपनी खातिर ही,
अनचाहे सच को,कई बार,
अनदेखा कर जाती हूँ।
#yqdidi#love#truth#relation#grihasthi#hindi#poetry

Sarita Shreyasi

यूँ तो उद्भव और सृजन काल से ही व्यक्ति के जीवन में नारी की उपस्थिति होती है।नाल कटने से गृहस्थी बसने तक स्त्री के विविध रंग-रूप,जीवन और मानस पटल पर अंकित हो जाते हैं।एक नवयुवती अपना सब छोड़कर,बस कुछ उम्मीद लिए पुरूष के जीवन में, अपरिचित-सी प्रवेश करती है।जिस क्षण निराश होती है, कुछ प्रश्नात्मक,आलोचनात्मक विचार में कुछ क्षण अवश्य ही डूबती है।निश्चय ही यह आजीवन सत्य नहीं, फिर भी यह किसी एक क्षण हर अर्धांगिनी के मन की बात है,जो या तो वह कह नही पायी,या आप सुन नहीं पाए। .. चर्चा थोड़ी लंबी है, इसलिए #Hindi #yqdidi #grihasthi

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    तुमने अपनी यादें बातें,
    मन में कहीं छिपा रखीं है,
    मन की,मौजों की दुनिया,
    घर से बाहर ही बसा रखी है।

                    वह तुमको रंग पाये कैसे,
                    जब तुम पहले से ही रंगे हुये हो,
                    निज स्नेह का स्वाद लगाए कैसे,
                    चमकती चाशनी में सने हुये हो।
 यूँ तो उद्भव और सृजन काल से ही व्यक्ति के जीवन में नारी की उपस्थिति होती है।नाल कटने से गृहस्थी बसने तक स्त्री के विविध रंग-रूप,जीवन और मानस पटल पर अंकित हो जाते हैं।एक नवयुवती अपना सब छोड़कर,बस कुछ उम्मीद लिए पुरूष के जीवन में, अपरिचित-सी प्रवेश करती है।जिस क्षण निराश होती है, कुछ प्रश्नात्मक,आलोचनात्मक विचार में कुछ क्षण अवश्य ही डूबती है।निश्चय ही यह आजीवन सत्य नहीं,
फिर भी यह किसी एक क्षण हर अर्धांगिनी के मन की बात है,जो या तो वह कह नही पायी,या आप सुन नहीं पाए। .. चर्चा थोड़ी लंबी है, इसलिए


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