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Archana Pol
भेटीसाठी डोळी | ओथंबले घन | मनात श्रावण | पेरलेला ||१|| आतुरले मन | पाहताना वाट | भिजलेला काठ | मनाचा रे ||२|| श्वासांचा आवेग | उसासला जीव | लागे ना रे ठाव | काळजाचा ||३|| बरसल्या धारा | गंधाळली माती | शहारली पाती | चिंब ओली ||४|| गंधाळ गंधाळ | माळरान सारे | मखमली वारे | भोवताली ||५|| तरारली राने | चिंब ओली मने | रुजलेले गाणे | रानी वनी ||६|| अंकुरला कोंब | धरित्रीच्या पोटी | मोहरली सृष्टी | आनंदाने ||७|| पालव स्पर्शाने | आनंदी अंगण | नभाचे हे ऋण | कसे फेडू? ||८|| ©Archana Pol #ऋण
Shitanshu Rajat
वो पत्ते कर नहीं सके कुछ अपनी शाख के लिए, लगता है, शाख पर अपने वृक्ष का ऋण बाकी है। #2april2k17 #YQDidi #ऋण #YQBaba #3_generations #पीढ़ियाँ #पत्ते #शाख #वृक्ष.....
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read moreRakesh Jaiswal
तुम्हारी हर बेरुख़ी पे भी मुहब्बत ऐसे निभा रहा हूँ, जैसे सूद समेत कोई पुराना ऋण चुका रहा हूँ #ऋण #YQDidi
Dr Manju Juneja
जब तक आप संसार का ऋण(अपने कर्मो का ऋण) नही चुकाते, तब तक आप संसार से बंधन मुक्त नही होते । ©Dr Manju Juneja #जबतक #आप#संसार#ऋण#चुकाते#बंधनमुक्त #नहीहोते #thoguhtoftheday #philosophy #positivequotes
Pankaj Priyam
गुरु महिमा गुरु सी छाया दे सके, ऐसा वृक्ष न होय। परिभाषा जो गढ़ सके, ऐसा ग्रँथ न कोय।। गुरु कृपा अनमोल है, ये न हाट बिकाय। जो श्रद्धा से मिले, हृदय उसी बस जाय।। गुरु वाणी पारसमणि, जो सन्मुख में जाय। जग को रौशन जो करे, वो हीरा बन जाय।। गुरु बिना कहाँ ज्ञान है, बिना गुरु अज्ञान। शिक्षक तो ब्रह्मांड है, लो यह तुम अब जान।। माता-पिता तो जन्म दे, गुरु देता आकार। जो गुरु न पूजिये, जीवन वह धिक्कार।। मन मंदिर उज्ज्वल करे, मन का तिमिर मिटाय। बाहर भी रौशन करे, ऐसा दीप जलाय।। ज्ञान का सागर गुरु, सब रस यहीं समाय। गुरु अमृत का कलश, जो मन प्यास बुझाय।। पथ प्रकाश बनते गुरु, जो राह सही दिखाय। सब ऋण चुकता कर लिया, गुरु ऋण चुका न जाय।। ©पंकज भूषण पाठक "प्रियम" गिरिडीह, झारखंड। #guru
suraj chaubey
शान्ति कैसी, छा रही, वातावरण में अजब उदासी तृप्ति कैसी रो रही, सारी धरा ही आज प्यासी ध्यान तक विश्राम का , पथ पर महान अनर्थ होगा ऋण न युग का दे सका तो , जन्म लेना व्यर्थ होगा। इसलिए ही आज युग की आग , अपने राग में भर- गीत नूतन गा रहा हूँ पर पर तुम्हें भूला नहीं हूँ। Suraj Chaubey #ध्यान तक #विश्राम का #पथ पर #महान अनर्थ होगा #ऋण न #युग का दे सका तो #जन्म लेना व्यर्थ होगा।
Deepali Singh Chauhan
एकांत एक रात एकांत में बैठे, मैंने दुःख से कुछ प्रश्न किये, तुम इतना ठहरे हो जीवन में, आखिर आये हो किसके लिए। दुःख ने सिहरते लोचन से कहा, आओ लेन देन करते हैं कुछ, कुछ तुम मुझको देना पहले, फिर मैं तुमको देता हूँ कुछ। जो ऋण भ्राता सुख का है मेरे, उसको सूद समेत चुकाओ, होठों पर उन मधुकणों के बदले में, आँखों में आसु भर भर लाओ। मैंने ऋण चुकाएँ सब उसके, आँखो में आसू, हृदय में वेदना, फिर पीड़ा सहते मैंने बोला, शर्त के हिसाब से मैंने दिया अब तुमको है देना। दुःख ने बोला जब खुश था तू तो, बच्चे जैसा चहकता था, मैंने तुझको शांत किया। सबने भीड़ लागयी थी हर तरफ़, मेरे आते ही चले गए, देख मैंने तुझको एकांत दिया।
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