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NAZAR

mrstroller09

J P Lodhi.

Rumaisa

चलते चलते कट जाए रस्ते, 
जिंदगी यू ही चलती रहे.. ❤️

कभी कभार गीत संगीत सच्चाईयों को हूबहू उतार देता है. सच तो है, कि जिंदगी रुकती नहीं. लोग आते हैं, फिर वक़्त के साथ चल देते हैं. हम भी वातानुकूलित एनवायरनमेंट मे जीना सीख जाते हैं. ये सीखना आसान नहीं होता, 'ना जाने देना भी' . पर जो बात दिखाना पड़े समझाना पड़े, वो बात फिर बात नहीं रह जाता. जैसे साइंस का वाक्य है "energy can neither be created nor destroyed"  ठीक वैसे उपजी भावना खत्म नहीं होती. वो सैलाब बन, आपको अंदर से खोखला करता है. आप उसे उतारने को दौड़ते हो. कोई काग़ज़ कलम, कोई गीत, कोई ड्रामा कोई अखबार. हम सब एक ही जात के सताए हुए लोग हैं.

©Rumaisa #Akhbar #जिंदगी #jindagi #Lekhni

Dr.Strange_Shayar

My New Thought Like, Share, Support & Follow me Dr.Strange_ Shayar #IndianNewspaperDay #nojotosteak #Akhbar #duniya #sivayetere #livelovelife #lovequote #lifequote #YouNme #

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Vijay Vidrohi

#Akhbar

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चोरी चौकीदार करेंगे 
बाबा भी व्यापार करेंगे
किसने किसको लूटा है ये
साबित टीवी अखबार करेंगे
कौन देशभक्त कौन नहीं है
ये भी तय गद्दार करेंगे

©Vijay Vidrohi #Akhbar

Sonika pal

Kagaj ki vo nav thi...
Aur barish ka pani tha..
Bhigne ka na koi bahana tha...
Vo bhi kya bachpan ka zamana tha...😇

                _sonika pal...❣️❣️

©Sonika Pal #akhbar #oneliner #jeenaisikaanamhai #me #yourquote #quote #stories #qotd #quoteoftheday #wordgasm

Prashant Kn sharma

#Akhbar #Zindagi

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गाँव से निकला था तो कोरा काग़ज़ ही था
शहर आया तो अखबार बन गया

©Prashant Kn sharma #Akhbar #Zindagi

Ashish Thakur Akela'

एक ग़ज़ल: अख़बार मैं अखबार था पहले, अब व्यापार हो गया, खबरें कम छपे, अब बढ़ता बाज़ार हो गया, दंगा,लूट,हत्या, आतंकी घुसपैठ हो रहे, सब इल्ज़ाम मुझपर,मैं गुनहगार हो गया,

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एक ग़ज़ल: अख़बार

मैं अखबार था पहले, अब व्यापार हो गया,
खबरें कम छपे, अब बढ़ता बाज़ार हो गया,

दंगा,लूट,हत्या, आतंकी घुसपैठ हो रहे,
सब इल्ज़ाम मुझपर,मैं गुनहगार हो गया,

लेते लोग मुझको घर वाले काम के लिए,
क्या मालूम मैं जुगती या बेकार हो गया,

सब हालात कहता, सबकी मैं भोर की दवा,
सेहत है लिखी मुझमे मैं बीमार हो गया,

ताक़त, बादशाही तुम्हें चाहिए मुझे नहीं,
मुल्कों के लिए फ़िर मैं क्यों दीवार हो गया,

चलते बाण हैं तुम्हारे ही श्री मुखों से और,
मैं छुपकर चलाने वाला हथियार हो गया,

इस रमज़ान के पावन बेला में बेमज़हबी,
भोजन मुझमें खाया तो मैं,इफ्तार हो गया,

था इक दौर तख्ते शाहों के हिल गये कई,
मैं तब तलक शासक, अब वो सरकार हो गया,

जिसने भी खरीदा मुझको सरकार हो गया,
मेरा मुझमें कुछ ना,उसका अधिकार हो गया ।


               - आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला'©

©आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' एक ग़ज़ल: अख़बार

मैं अखबार था पहले, अब व्यापार हो गया,
खबरें कम छपे, अब बढ़ता बाज़ार हो गया,

दंगा,लूट,हत्या, आतंकी घुसपैठ हो रहे,
सब इल्ज़ाम मुझपर,मैं गुनहगार हो गया,

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