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Kamlesh Kandpal
कागज के टुकड़ो से इंसान की शख्सियत को आंकने वालों की समझिये नियत शायद सबको याद होंगे तुलसी, सूर, और कबीर फक्क्ड़, मस्त, मनमौजी तबके पता नहीं किसी को अमीर पैसे से बनते है, केवल पैसे वाले कागजी मित्र आज भी बाजार मे कहीं बिकता नहीं सचरित्र ©Kamlesh Kandpal #kvita
Kamlesh Kandpal
रूड़िया, अंधविश्वास जिसके हो आस पास मन होता उसका कमजोर जीवन से बंधी होती भय की डोर नहीं कर सकता वह तर्क वितर्क जीवन को जीता,बनाकर नर्क मुक्ति नहीं होती इतनी सुगम सरल जिसे पाने को पीना होता है गरल लेकिन जाने क्या उसे मन के दास माया के भ्रमों में ही ,जिन्हे होता विश्वास ©Kamlesh Kandpal #kvita
Kamlesh Kandpal
कभी घनी स्याह रात में, निहारना टिम टिम करते तारों को। ऐसा लगता है जैसे भगवान ने, लगाये हों असंख्य सीसीटीवी कैमरे। गोया ऐसा लगता हो जैसे किसी की हम पर है दृष्टी? हमें पता नहीं कि सब हो रहा है रिकार्ड इन तारों के माध्यम से हमारा अहंकार, हमारे अपराध दान दया और पुण्य भी। हम कुछ नहीं कर सकते सुदूर नभ के इन तारों का। कुछ जरूर कर सकते हैं, वह है अपना आत्मसुधार। ©Kamlesh Kandpal #kvita
Kamlesh Kandpal
White भीतर सबके होता है एक शिशु, जो उल्लास से किलकारी मारने को होता है ततपर। भीतर सबके होता है एक किशोर, जो नटखट बन, शरारत करना चाहता है अक्सर। भीतर सबके होता है एक युवा, जो व्यग्र हो जाता है क्रांति की, जलाने मशाल। भीतर सबके होता है/होती है एक पति /पत्नी। जो अपनी घर रूपी गाड़ी में रोज सपने संजोते है। भीतर सबके होता है एक पड़ोसी। जो पड़ोस की दौड़ में हो जाना चाहता है शामिल। भीतर सबके होता है एक अधेड़, जो समझौता करना लेना सीख लेता अंततः भीतर सबके होता है एक वृद्ध जो समर्पित कर देना अपना जीवन प्रभु चरणों में ©Kamlesh Kandpal #kvita
Kamlesh Kandpal
White आँखिर क्यों पैदा हो रहे है उस जमी पर, सरफिरे वहशी, पागल जहाँ पर राम कृष्ण, बुद्ध, महावीर, गुरुनानक की शिक्षा के थे सब कायल माँ के नौ महीने का संघर्ष क्या इन्हे याद नहीं ये असुर, विध्वंसकारी यूँ करते बरबाद नहीं किसी का जीवन जब जानते माँ का मर्म इंसानियत मर गईं थी या मर गईं थी शर्म ©Kamlesh Kandpal #kvita
Kamlesh Kandpal
भूखंड, ईट, रेत, पत्थर कुछ नहीं आता और नजर कविता कैसे रची जाएगी अब कलम कैसे चलेगी जाने अब फूल, पेड़, खेत, खलिहान पड़े है सब वीरान और जो गरीब है हर वक्त मौत के करीब है धनाढ्यों का धन उजाड़ रहा है वन ©Kamlesh Kandpal #kvita
Deepa Ruwali
White रईसी का गुमान आज अपनी इस रईसी पर गुमान किया करते हो, और हमें सदा अपमान ही दिया करते हो। लगता है तुम्हें तुम रहोगे अपने ही हाल में सदा, और हमारी दरिद्रता भी कभी साथ न छोड़ेगी। इक दिन ज़रूर ये सब नहीं रहेगा, तुम भले ही रहो अपने इसी हाल में लेकिन हमारा जरूर वक्त बदलेगा। उस रोज़ तुम्हारा हृदय अवश्य आराम पाएगा, फिर कभी तुम्हारे भीतर ये रईसी का गुमान न आयेगा। हमसे कोई भी नाता न रखने की चाहत है तुम्हारी, तुम्हारे इस अंदाज़ से हृदय ही नहीं, देह भी आहत है हमारी, तुम हर दफ़ा दूरियां ही खोजते हो हमसे, शायद सोचते हो कि कोई गंदी बू आती है हमारे तन से। तुम्हारा बनाया ये फासला सदा के लिए न रह पाएगा, फिर कभी तुम्हारे भीतर ये रईसी का गुमान न आएगा। दिखावे के लिए तुम जरूर इक साथी भी बन जाओगे, भीतर से कभी कोई अपनेपन का भाव न बुन पाओगे। तुम्हारा ये रईसाना इस झूठे नाते को भी न रहने देगा, हर मोड़ पर कैसे हमारा ये मन तुम्हारे इस दंभ के कांटे को सहने देगा? इक रोज़ अवश्य तुम्हारे इस दर्प की शमा बुझ जायेगी, उसी दिन से तुम्हारे मन की मदमस्तता भी शायद रुक जाएगी । अमीरों की सूची में हमारा भी इक नाम आएगा, फिर कभी तुम्हारे भीतर ये रईसी का गुमान न आएगा। ©D.R. divya (Deepa) #Moon #kvita #poeatry #Shayar #write #writing #thought
Deepa Ruwali
तुम आओगे इक रोज़ ... ऋतुराज बसंत के फूलों के बीच से लेकर, सावन की हर बरसती बूंद में तुम्हें खोजा है, तुम आओगे इक रोज़ बेसुधों की तरह दौड़ते हुए, यही सोच कर इस व्याकुल हृदय को रोका है। तुम्हारी कमी ऐसे मालूम पड़ती है जैसे पर्वतों की तलहटी को सूरज की रोशनी का अभाव है, कोई चोट नहीं है इस हृदय में, फिर भी न जाने ये कैसा घाव है। तुम नहीं हो कहीं मेरी इन कल्पनाओं से बाहर, या इक रोज़ आओगे? आते ही मिलन को आतुर इन नीर भरे नेत्रों में खो जाओगे। मैंने इस हृदय में उपजती हुई हर निराशा को रौंदा है, तुम आओगे इक रोज बेसुधों की तरह दौड़ते हुए, यही सोचकर इस व्याकुल हृदय को रोका है। ©D.R. divya (Deepa) #GateLight #kvita #poeatry #life #Love #treanding
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दिल की साफ और किस्मत कि मारी थी कुछ ऐसी मेरी कहानी थी, पिता भाई पति ना ही बेटा मर्द के नाम पर अपना कोई भी तो नहीं था लेकिन एक अजनबी आया और जैसे मेरी जिंदगी कि हर कमी और गम को अपना मान कर चलने लगा मुझे ऐसा लगा शायद अब तो मेरी विरानी सी जिंदगी में एक सहारे की किरण जगमग गई उठी है, कुछ वक्त बाद उस भी हम में बहुत कमी नजर आने लगी क्योंकि वक्त गुजरे के बाद लोगो को आप से दूर होने का बहाना भी तो देनी होती है । और वह भी तो ठहड़ा दिमाग वाला💔💔 ©priya kumari #Nojoto #dard #shayari #pyar #image #vichar #apnikahani #quaotes #kvita #motavitonal
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White लड़कियों का दुःख भी बहुत गहरा है, मायके में हो तो पराई हो और ससुराल में रहो तो पराई घर से आई है। ऐसा नहीं की पुरुष होना आसान है पुरुष होना भी कठिन पर स्त्री होना अस्तित्व की लड़ाई हैं...! ©priya kumari स्त्री होना ...😔#Emotional #Nojoto #dard #kvita #poem #kahani #love #vichar #motavitonal