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kch alfaaz

#lockdown_

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सबकी रोज की ज़िंदगी चल रही थी,
फिर अचानक से एक खबर मिली
शुरू में तो प्यारी😋 सी लगी,
फिर धीरे धीरे घुटन😔 बनी।
ना दोस्त,ना आजादी,
लगा कि है ये समय की बरबादी।
फिर क्या? हम घरवालों से परेशान और वो हमसे,
मन तो था करे वो सारी पुरानी हरकते कसम से।
अब थोड़ी आदत से हुई,
अब बस हम थे ना और कोई।
फिर बजे 8,और मिला एक संदेशा, 
की मित्रो इससे झेलना है अब हमेशा,
मेरे दिल के अरमान दिल में रह गए ,
और वो आंसू बन कर बह गए।
सोचा अब बनेंगे एक दूसरे का सहारा,
चलो अब करेंगे ऐसे ही गुज़ारा🤗। #Lockdown_

Siddharth Balshankar

#lockdown_ आज खाली घर मे कुछ अलग सा खालीपण सा लग रहा हैं कभी खामोशी को इतने करीब से रुबरु होते नही देखा था , घड़ी की आवाज कुछ सिनी सुनायी सी लग रही थी, रास्तो पर खामोशिका त्योहार सजा हैं गलियो मे हवाओं का घुमता शोर सजा हैं आसमान भी कुछ साफ सा लगता हैं अभी बादलो से घिरा गगन आज टिम टिमाते तारो सा लग रहा हैं

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lockdown 
आज खाली घर मे कुछ अलग सा खालीपण सा लग रहा हैं 
कभी खामोशी को इतने करीब से रुबरु होते नही देखा था ,
घड़ी की आवाज कुछ सिनी सुनायी सी लग रही थी,
रास्तो पर खामोशिका त्योहार सजा हैं 
गलियो मे हवाओं का घुमता शोर सजा हैं 
आसमान भी कुछ साफ सा लगता हैं 
अभी बादलो से घिरा गगन आज टिम टिमाते तारो सा लग रहा हैं
कुछ लोग घर के बाहर बाते कर दिख तो रहे हैं 
पर मन के भीतर घबराहट सा बीज उमलता दिख भी रहा हैं 
बातो मे सच्चायी जरुर है ,फिर भी उसमे फिक्र की डाट भी जरुर हैं
गाडियो पे धुल सजी देख रहा था
जैसे लग रहा था की सदिया गुजर रही थी
हर पल की खामोशी हर पल आती खबरे दिल पे एक घाव सा दे जा रही थी
बात कल की करो या आज की मोहताज सभी को बना रही थी
लग रहा था की पिंजरो में एक जान तडप रही थी
खयाल आते आते रूह को मजार की आस लग रही थी
हर पल रेत सा गुजर ने लगा था 
बंजर बनी रिश्तेदारी फिर से हरीभरी लग रही थी
हालत तो कुछ इस कदर बदले बदले से लग रहे थे 
दूर बेठे आज करीब से लग रहे थे
ये वक्त मे सभी के किरदार एक नाटक से लग रहे थे ,
सभी अपने किरदार बखुबी निभा रहे थे ,
कुछ दिनो में ईन्सान ईन्सान से लग तो रहे थे,
आज ईन्सान खुदसे ही दूर भाग रहा था
लग रहा था की ईन्सान अपने घर लोट रहा था
कुछ काम नजर नही था 
कुछ हाल नजर नही था
जान बचाने के खतिर सभी 
अपनी जान की पुकार लगा रहे थे
ये वक्त ऐसे करवट यू बदल रहा था
लग रहा था आप बिती सुना रहा था
आज सभी जगे ताले क्यु हैं ,जग जगह ये पेहेरे क्यु हैं 
बात तो सिधी सरल ऐसे लग तो नही लग रही थी
जो गुजरा हो वो कल था 
जो कुछ केहेनी की कोशिश सी लग रही थी
सभल तो हर कोई सकता था ,बस सभल पानी की बात थी
बस थोडी सी कोशिश से ये हालातो को सुधारा जा सकता था 
बस थोडी सी कोशिश से ये हालातो को सुधारा जा सकता था #Lockdown_
आज खाली घर मे कुछ अलग सा खालीपण सा लग रहा हैं 
कभी खामोशी को इतने करीब से रुबरु होते नही देखा था ,
घड़ी की आवाज कुछ सिनी सुनायी सी लग रही थी,
रास्तो पर खामोशिका त्योहार सजा हैं 
गलियो मे हवाओं का घुमता शोर सजा हैं 
आसमान भी कुछ साफ सा लगता हैं 
अभी बादलो से घिरा गगन आज टिम टिमाते तारो सा लग रहा हैं

Babeer Khan

सब को मालूम हैं बाहर की हवा हैं क़ातिल,
यूँ क़ातिल से उलझने की ज़रूरत क्या हैं।
#Lockdown_ #footsteps

Ram Suryawanshi

#lockdown_ #poem

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काही सुचल म्हणून
   "दारात उभरलेल्या चपला"

मोठा श्वस सोडत मला बोलताना .......

बर झालं माझ्यावरचे ओझे कमी झाले 
रोजच मि तुडवलेले रस्तेच   कोणी हो घेरले

कधीच एवढा वेळ मी घरात बसले नव्हते 
कोणी फरफटत तर कोणी चमकुंन घेऊन जात होते 

तेच लोक एंवढे कसे काय हो बदल्ले
जे मंदिरात गेल तरी आमच्यावर नजर ठेवलेले 

चक्क त्यांनीच आता आम्हाला गोळा करून
एका कोपऱ्यात कस काय हो फेकले

बर झाल लाख लाख त्या साहेबाला ज्यानी गांव बंद केल
यांना घरात डाबुंन आम्हाला मात्र मोकळ केल

नाहीतर काय.......

ऑफिसची  किरकीर आणि घरातला राग 
याचं ओझ घेऊन नुसती आमची भागम भाग 

आता सार कस निवांत वाटतंय 
लेकरचा बाप    माय लेकरात हसतयं
  
अन् आमच्यावरच कोरोनाच् संकट मात्र 
ह्यांच्या मुळे कसतरी टळतय

गेलाच कधी वाट वाकड़ी करुण तर 
वळणावरचं काठीवाल साहेब धो धो बडवंतय

बर झाल बर झाल लाख लाख त्या 
साहेबाला ज्यानी ह्याला बडवंलय

यामुळे सरकार ......मालकाच पूर्ण 
अन् आमच 21 दिवसांनी आयुष्य मात्र वाडलयं
     
                               स्वलिखित- राम सूर्यवंशी
                                 दि.10/04/2020 #Lockdown_

Nik_

#lockdown_ #Talk

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Babasi ka alam to dekhiye janab
Na Ghar par rah sakte or na hi bahar!!

Nik🖌️se #lockdown_


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