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चंद
हथेली पर रखी है जिम्मेदारी, है कर्ज साहूकारों का भी भारी,, जो इस साल तुमसे मिल न पाऊं, तो बहना मान रखना तुम हमारी, है आता पर्व एक दिन की खातिर, तेरी उम्मीद को मैं जानता हूं, है कितना कीमती नाजुक सा धागा, मैं उसको खूब हीं पहचानता हूं, मगर तुम ही तो हो जो जान पाओ, मेरी सारी फकीरी मान पाओ, है देखती दूर से हो तुम भले हीं, मगर तुम जानती मुश्किल हमारी, ज़रूरी तुम से ज्यादा कुछ नहीं है, उम्मीदें है मगर औरों को हमसे और भारी,, ©चंद #rakshabandhan #Dranupamsingh #चंद #चंदशेर #Chand #भाई #बहना #राखी #Rakhi #SisterLove
चंद
हस्र तक याद रहेगा उसका मेरे छूने से सुर्ख हो जाना, एक अजनबी अहसास को यूं गैरत का तजर्बा समझाना,, समंदर के किनारे पर नर्म हाथों से मेरा नाम लिखना, फिर वक्त के सहारे बैठ कर बेबाक लहरों से उसे मिटाना,, ©चंद #Sea #Dranupamsingh #chandsher #chand
चंद
समंदर कुछ न कहता है किनारे शोर करते हैं, जुबां वो बंद रखते हैं इशारे जोर करते हैं,, कभी कोई लहर कोई सहर तो साथ उनके हो, जेहन में रोज जिनके फसाने शोर करते है,, ©चंद #Sea #Dranupamsingh #chandsher
चंद
खूबसूरत लिबास तो पहने ही जाते हैं उतारने को, कौन यहां किससे मिलता है संवारने को,, ©चंद #girl #Dranupamsingh
चंद
सहर से शाम हो जाती है निकलते निकलते, काम रह हीं जाता है अधूरा चलते चलते,, ख्वाहिशें ख़ाक कर देती है राहे जिंदगी, रेत कहां बचती है मुट्ठी में फिसलते फिसलते,, ©चंद #lonely #Dranupamsingh #Chand
चंद
बूढ़ी आंखों को कब तक ख्वाब दिखाया जाएगा, बचा हुआ इश्क आखिर कब तक कमाया जाएगा,, उम्र काट कर अपनी रात ढल रही है अब, अब क्या भरी रोशनी में चिराग जलाया जाएगा,, ©चंद #Dranupamsingh
चंद
बूढ़ी आंखों को कब तक ख्वाब दिखाया जाएगा, बचा इश्क आखिर कब तक कमाया जाएगा,, जो उम्र काट कर अपनी रात ढल रही है अब, अब सुब्ह के बाद क्या चिराग जलाया जाएगा,, ©चंद #CandleLight #Dranupamsingh #chand #chandsher #चंद
चंद
हर कोने हर गली का पता जानती है, सारे खतागर और बे-खता जानती है, चाहे जितनी माचिस जलाओ जिस जिस तरफ, आग किधर लगानी है ये बस हवा जानती है,, ©चंद #Fire #Dranupamsingh
चंद
दिलों से सबके जो उतर जाऊं तो क्या, मुफलिसी का खादिम मैं मर जाऊं तो क्या,, चुभन नजर में जुबां में हर जगह असर में है, मैं किसी फूल पर बिखर जाऊं तो क्या,, ©चंद #BlackSmoke #Dranupamsingh #chandsher
चंद
किसी कोने में कोई हुक्मरां बैठा है, ख़्वाब हमारे अपने नाम करा बैठा है,, हम मज़हबों का बैर लेकर मरते रहे, उसके कन्धों पर हिंदू मुसलमाँ बैठा है,, ©चंद #Dranupamsingh