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I_surbhiladha

Anju Yadav

#उड़ान#पक्षियों की आजादीhak# घोंसला उनका महल

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मैं पक्षी आसमानों की उड़ना हक है मेरा
खूबसूरती में बंध जाती हूं, पिंजरा है अब घर मेरा
पेड़ो पर सुंदर सा अपना आशियाना बनाती
घोंसला है महल मेरा फिदरत कैसी इन 
इंसानों की जिसने छीना घर मेरा 
क्या करू फरियाद किसीसे जब 
रब ने ही मुझे अकेला छोड़ा
मैं पक्षी आसमानों की बादलों के बीच मुझे है रहना
नही शिकायत मुझे कुदरत से बस मुझे मेरा महल
दे देना,उड़ान भरनी है इन आसमानों में मुझे
और मेरे साथियों को बस पंख दे देना।

 #उड़ान#पक्षियों की आजादी#hak# घोंसला उनका महल

जीtendra

Kewal Singh

विवेक कुमार

#पक्षियों की चहचहाहट प्रकृति का सुंदर दृश्य (आप कौन-कौन से पक्षियों की आवाज पहचानते हैं।) #dewdrops

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Creative Mansi

वो भी उड़ना चाहती है🕊️🕊️ #meresapne #लिबास #पक्षियों #उड़ना_है_मुझे #सपना #कविता

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Ranjeet jaiswal

✳️#अधूरे ख्वाब मेरे🌙💖
      शायद अब हो #कागज पर पूरे
🌳🇮🇳🇮🇳
आसमान में #उड़ने की चाहत 👁‍🗨
     ✡ पन्नों पर लिख दी #पक्षियों की चहचहाहट☣

✍✍✍✍✍

Prince Verma

प्रथम भेंट.... #hindi_diwas #poem

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उथल-पुथल और था हृदय शिथिल,
जब बोले वो आज शाम को मिल,
अहा! भावना प्रबल, मन चंचल, 
मधुर स्वर कल-कल, उर में हलचल।

ऊषा की सुनहरी वीणा नहीं,
आज सायं का वो राग सुनना है,
पक्षियों के कलरव का अनुचर नही,
आज भ्रमर हूं, पुष्प पराग चुनना है।

मेघों को रथ बना लूं, पक्षियों को अश्व,
सूर्य को नीचे खींच लूं, होता जो बस,
इन दिवाकर को भी क्या आज विश्राम नहीं,
मन आवेशित अधीर अभी तक शाम नहीं।

संध्या है अब, थी दिशा स्तब्ध, भय पग-पग,
न बोले कोई खग, जल में मछली छप-छप,
इस सन्नाटे में दो जन उस सरित-किनारे,
शिलावत मूक खड़े, एक-दूसरे को निहारे।

आज जो गीत गाने आया था, वो गा न सका,
मन की वीणा तो बजी,तारों में स्वर आ न सका,
तब समय ने हमें टोक दिया, उत्तर मांगता,
पर उसने आगे बढ़ने से रोक दिया। प्रथम भेंट....

#hindi_diwas

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 10 – अनुगमन 'ठहरो!' जैसे किसी ने बलात्‌ पीछे से खींच लिया हो। सचमुच दो पग पीछे हट गया अपने आप। मुख फेरकर पीछे देखना चाहा उसने इस प्रकार पुकारने वाले को, जिसकी वाणी में उसके समान कृतनिश्चयी को भी पीछे खींच लेने की शक्ति थी। थोड़ी दूर शिखर की ओर उस टेढ़े-मेढ़े घुमावदार पथ से चढ़कर आते उसने एक पुरुष को देख लिया। मुण्डित मस्तक पर तनिक-तनिक उग गये पके बालों ने चूना पोत दिया था। यही दशा नासिका और उसके समीप के कपाल के कुछ भागों कों छोड़कर शेष मु

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
10 – अनुगमन

'ठहरो!' जैसे किसी ने बलात्‌ पीछे से खींच लिया हो। सचमुच दो पग पीछे हट गया अपने आप। मुख फेरकर पीछे देखना चाहा उसने इस प्रकार पुकारने वाले को, जिसकी वाणी में उसके समान कृतनिश्चयी को भी पीछे खींच लेने की शक्ति थी।

थोड़ी दूर शिखर की ओर उस टेढ़े-मेढ़े घुमावदार पथ से चढ़कर आते उसने एक पुरुष को देख लिया। मुण्डित मस्तक पर तनिक-तनिक उग गये पके बालों ने चूना पोत दिया था। यही दशा नासिका और उसके समीप के कपाल के कुछ भागों कों छोड़कर शेष मु

Dilip Makwana

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अहसास क्या होते है सिर्फ शब्दो मे सुने थे !
मगर एहसासों का अहसास जिसने करवाया वो अहसास हो तुम.....

तुम्हे महसूस करने के लिए तुम्हारी आवाज जो बेशक कोयल सी मधुर होगी की जरूरत ही नही पड़ी मुझे, क्योंकि तुम्हारे चांद से चेहरे की कुछ खूबसूरत तस्वीरों ने तुम्हारी खूबसूरती की एक किताब छोड़ रखी थी मेरे दिल मे !

उस किताब के हर पन्ने का अल्फाज जैसे बडी वादियों में सफेद पहाड़ी के बीच गिरते झरने की कुछ बूंदों का उड़ती हवा के झरोखे के साथ चेहरे पर गिरना लगता था !!

इस किताब पर हक जताना मेंरे दायरों से काफी परे था मगर चंद पन्नो से चंद अल्फाजो को पढ़ पाना ही मेरे नसीब में था.....मगर इतने ही अल्फाज काफी थे  तुमसे करीब होने के...बहुत करीब होने के लिए !!

एक खूबसूरत प्राकृतिक दृश्य से तुम्हारी खूबसूरती की तुलना करना शायद मेरी गुस्ताखी थी क्योंकि उस प्राकृतिक नजारे का तुम्हारे मुकाबले निरंतर बौना होना...मुझे देखा नही जा रहा था !!

कभी कभी पूर्णिमा की रात में, चांद की हल्की सी रौशनी में,छत पर अकेला बैठ कर...सुन्न से पड़े मौहल्ले में....जहाँ सिर्फ पेड़ों के कुछ पत्तो के हिलने की आवाज महज मेरे कानों में स्पष्टत: आ रही थी और वही कुछ पक्षियों के चहचहाने की.......

वहां उस नजारे में सिर्फ मैं ,मेरा सुन्न पड़ा मौहल्ला,पूर्णिमा की रात, हल्की सी चांदनी,पत्तो की आवाज,पक्षियों की चहचाहट और मेरी ""प्यारी सी कल्पना"""......

वहाँ खुली आँखों से कल्पना करना शायद मेरी ज़िंदगी के सबसे खूबसूरत लम्हो में से एक था !!

"तुम्हारे अश्को से जब कुछ अश्रु भौहें को स्पर्श करते हुए गालों से चिपक कर सूखते होंगे तो मैं सफेद वादियों में दो पहाड़ी के बीच झरने से बह रहे पानी को महसूस कर लेता था !

ऐसी ही होगी उसकी अश्रुधारा.. ठीक इस खूबसूरत झरने की तरह !!

"तुम जब चलती होगी तो तुम्हारे पैरों में बंधी पायल से निकली चन्न-चन्न की आवाज ठीक वैसी ही होगी जैसे किसी नन्ही सी जान का जन्म होते ही उसके मुख से पहली ही दफा निकली "खूबसूरत किलकारियां" जो पूरे प्राँगण में महक भर देती हो !

कल्पना ही कल्पना में जब रात मेरा साथ दे रही थी मगर स्पष्ट देख पा रहा था कि कही न कही से चाँद मुझे एकनजर से घूर रहा है ......पूछ रहा हो जैसे " कौन है वो जिस कारण तुम मुझे ही फीका महसूस कर रहे हो "

मेने भी कह दिया " अच्छा है छुपी हुई है वो , वरना पूरी कायनात जुट जाएगी उसे तेरी जगह बिठाने को" !!

तुम बोलती होगी तो कैसे बोलती होगी ?

बड़ा उत्सुक हुए जा रहा था हर बार.....सोचता था कितने खुशनसीब होंगे वो अल्फाज जो तुम्हारी जिव्हा और होंठो को निहारते....निहारते निकलते होंगे !

कितनी खुशनसीब होगी वो मेहन्दी जो तुम्हारी हथेली पर सज कर उत्सुक हो रही होगी , और कितने खुशनसीब होंगे तुम्हारे वो हाथ जो किसी न किसी बहाने तुम्हारे गालों को चूमते होंगे !!

कोसो दूर था मगर बहुत करीब आ गया था तुम्हारे, तुम्हे पाने के लिए बढ़ती रौशनी मेरा हौसला बढ़ाए जा रही थी !

मैं तुमसे कह भी देता कि "इस चाँद की रौशनी हमेशा के लिए मेरी हो"

"पूरी ज़िंदगी इसी रौशनी के सामने बैठा गुजारूं"

"सोच रहा था...ज़िन्दगी भर के लिए तुम्हारे अश्को को,तुम्हारे अल्फाजो को,तुम्हारे हाथों को छुट्टी पर भेज दु और ज़िन्दगी भर के लिए मैं मजदूर बन जाऊं तुम्हे निहारने के लिए" !

मगर ये सब आसान कहा था
कह भी नही सकता था...."आत्मविश्वास "? 
आत्मविश्वास की कमी नही थी मुझमे मगर डर सा लग रहा था कि कही बहुत दूर न हो जाऊं तुमसे !!

वो सब खो दूंगा जो महसूस करता हूँ !
जो सब गवा दूंगा जो सोचा भी नही हूं !

सोचता हूँ... कैसे बनाया होगा खुदा ने तुम्हे !!

शायद नूर के बने तालाब में डुबोकर बाहर निकाला होगा !
खुदा की कलाकृति पर नाज है मुझे...यकीन नही हो रहा है, कोई कीसी को ऐसा कैसे बना सकता है ?

यकीनन ऐसा बनाया है इसलिए तो खुदा कहते है तुझे !!
मगर सुन लो खुदा.....तुम्हारे दी हुई इक इक खूबसूरती को संभाल रखा है मेरी उसने......

जितनी कशमकश खुदा ने तुझे बनाने में की है उतनी ही तूने उसे संभालने में की है !

इसलिए किसी शायर का एक शेर याद आ गया तुम्हारे लिए

"मैं मानता हूँ तुम खुदा नही हो"
"मगर खुदा से कम भी तो नही हो"

तुम वो खूबसूरत पुष्प हो जिसके इर्द-गिर्द मेरे जैसे अनगिनत भँवरे गुनगुनाते फिरते है मगर खिलना,महकना तेरी फितरत है !!

दिलीप मकवाना
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