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Best किंचित Shayari, Status, Quotes, Stories

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Mishra Kaushal

विचलित हुँ,किंचित नही
आसमां सामने आज थोड़ा धूमिल सा हूँ
पर टूटा नही,बस थोड़ा झुका हूँ
हारा नही बस थोड़ा मजबूर हूँ
बहुते वसंत देखा हूँ,
कल फिर बहारो संग भर जाऊंगा।
पिता की प्यारी संतान हूँ।।
 #किंचित #विचलित#misralove#misraword

sonia

#किंचित मेरे शब्द तुझे मिल गए होते #calm #कविता

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श्वेता पांडेय 'सांझ'

तुम्हारे रूप के लावण्यता की 
किंचित कोई उपमा नहीं 

नैनो के  भाव भंगिमा की
किंचित कोई रचना नहीं 

तुमको समर्पित प्रेम रस  
हृदय तल की गहराइयों से 

और कोई अनुपम सी भेंट 
अब मेरे पास कुछ नहीं #रूप 
#की 
#लावण्यता

Vikas Khandelwal ( Raman )

तुमसे वंचित
जीवन किंचित
मुरझा गया है
शिथिल जैसे
थका हुआ 
पथिक 
कोई बादल जैसे
आसमान से भटका हुआ
है जिसमे जल अपने आसुओ का
असीमित संचित
जीवन रूपी धरा से मिलने को
जैसे वंचित 
दर्द तेरा है जो दिया हुआ
अपरिमित 
अपार , विराट 
कभी ख़त्म ना हो शायद
ये तन्हा जीवन किंचित #वंचित

Vinita Kadam Kadam

#OpenPoetry

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सागर तीरी सांजवेळी
रोज उमलते एक कळी
किंचित हसरी , लाजरी
लाल चूटूक पिवळी

तिला वंदन करते
नारळ अन् पोफळी
देखण्या आभाळी माळ
घालिती पक्ष्यांची फळी

सुंदर अशा कातरवेळी
कुठून उमलली रातकळी
शांत सुगंधित वाऱ्याने
झुलते निद्रेची झोळी

चमचमत्या तारकांनी प्रकाशली
झोपडी वसुधेची चंद्रमौळी
उद्याची आशा घेऊन जवळी
गाढ झोपली सुंदर कळी

पहाटेचा मंद वारा 
सांगून गेला कथा सगळी
अथांग निळ्या आभाळी
उजळली प्रभा सागरजळी

सागरतीरी पूर्व सकाळी
रोज उमलते कळी
किंचित हसरी , लाजरी
लालचुटूक अन् पिवळी #OpenPoetry

रजनीश "स्वच्छंद"

किंचित, मनुज तुम हो नहीं।। मैं रहा घूरता बरगद को, स्वप्न या अतिरेक था। विचलित हृदय की भावना, मैं ही मूर्ख एक था। तनों से निकलती डालियां, धरा पे फिसलती डालियां, नवसृजित संचार का पर्याय, #Poetry #Quotes #HindiPoem #kavishala #kavita

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किंचित, मनुज तुम हो नहीं।।

मैं रहा घूरता बरगद को, स्वप्न या अतिरेक था।
विचलित हृदय की भावना, मैं ही मूर्ख एक था।

तनों से निकलती डालियां,
धरा पे फिसलती डालियां,
नवसृजित संचार का पर्याय,
बिनजल सिसकतीं डालियां।

रश्मि किरण मूक झांकते,
तपती तली, सुख ताकते।
शुष्क सी बंजर धरा पर,
अवशेष निज का टालते।

एक साख से निर्मित हुआ,
विस्तृत न वो किंचित हुआ।
स्वाहा स्वप्न अश्रुधार में,
तक्त स्वतेज सीमित हुआ।

था भ्रम जो पाला कभी,
निज स्वार्थ को टाला सभी।
निष्प्राण में हो प्राण वास,
थी मन मे ये ज्वाला लगी।

कालिखों में निज का श्वेत खोया,
मानो बंजर धरा पर था रेत बोया।
अंकुरित बीज भी निस्तेज सा है,
पालक हताश, हर खेत रोया।

है मनुज का भी किस्सा यही,
जो बोया मिलेगा हिस्सा वही।
स्वयं को स्वयं से ही मारता,
है स्वार्थ का होना कितना सही।

धरा तृप्त जो कर गया, बादल वही तो नेक था।
विचलित हृदय की भावना, मैं ही मूर्ख एक था।

©रजनीश "स्वछंद" #NojotoQuote किंचित, मनुज तुम हो नहीं।।

मैं रहा घूरता बरगद को, स्वप्न या अतिरेक था।
विचलित हृदय की भावना, मैं ही मूर्ख एक था।

तनों से निकलती डालियां,
धरा पे फिसलती डालियां,
नवसृजित संचार का पर्याय,

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 38 - तुलसी-पूजन मैया तुलसी-पूजन कर रही है। गौर श्रीअंग, रंत्न-खचित नील कौशेेय वस्त्र कटि में कौशेय रज्जु से कसा है। चरणों में रत्ननूपुर हैं। कटि में रत्न जटित स्वर्णकाञ्ची है। करों में चूड़ियाँ हैं, कंकण हैं। रत्न जटित अंगूठियाँ हैं। भुजाओं में केयूर हैं। कंठ में सौभाग्य-सूत्र, मुक्तामाल, रत्नहार है और है नील कञ्चुकी रत्नखचित्त लाल कौशेय ओढनी। मोतियों से सज्जित माँग, मल्लिका-मालय-मंडित वेणी। आकर्ण-चुम्बित कज्जल-रञ्जित लोचन, कर्णों में रत्न-कुण्डल, भालपर सिन्दूर-बिन्दु, मैया ब्रजेश

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।।श्री हरिः।।
38 - तुलसी-पूजन

मैया तुलसी-पूजन कर रही है। गौर श्रीअंग, रंत्न-खचित नील कौशेेय वस्त्र कटि में कौशेय रज्जु से कसा है। चरणों में रत्ननूपुर हैं। कटि में रत्न जटित स्वर्णकाञ्ची है। करों में चूड़ियाँ हैं, कंकण हैं। रत्न जटित अंगूठियाँ हैं। भुजाओं में केयूर हैं। कंठ में सौभाग्य-सूत्र, मुक्तामाल, रत्नहार है और है नील कञ्चुकी रत्नखचित्त लाल कौशेय ओढनी। मोतियों से सज्जित माँग, मल्लिका-मालय-मंडित वेणी। आकर्ण-चुम्बित कज्जल-रञ्जित लोचन, कर्णों में रत्न-कुण्डल, भालपर सिन्दूर-बिन्दु, मैया ब्रजेश

"साँझ" sandhya jeenwal

यह पीड़ा मेरे अंतर्मन की है,
यह स्याह रात एकाकीपन की है।

बीच रात इस सर्द हवा में,
ठिठुरन विचलित मन सी है।

व्याकुल होती, ठहर जाती,
किंचित वेदना अधूरेपन की है।

पथ अकेला, गंतव्य एकाकी,
शैया बिखरे जीवन की है।

कुछ जलता है हौले-हौले अंदर,
यह अग्नि नर्क की
किंचित मेरे अंदर ही है।

यह स्याह रात एकाकीपन की है। #night
#रात
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#pain
#dard
#love
#lovepain


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