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तुषार"आदित्य"
चप्पा-चप्पा गूंज रहा है आज तुम्हारे नारे से, आस लागए बैठे तुमसे,लोग कई बेचारे से, कलयुग की इस महाभारत का कृष्ण तुम्हे ही बनना है राजनीति के इस रण का प्रारब्ध तुम्हे ही बनना है इस सागर मंथन के हलाहल को भी अमृत करना है मातृभूमि का ऋण भरकर उद्धार तुम्हें ही करना है एक तुम्ही हो जिसपर आस हमें विश्वास हमें सभी दूर रहते हैं, पर लगते हो तुम ही पास हमें बोटी पे बिकने वाले कुत्ते हालांकि तुमपे भौंक रहे कुछ शेर भी है जो चुप रहकर सबकुछ होता देख रहे अब बात आन पर आई हैं,रच डालो अब इतिहास नए बनकर "आदित्य" चमक जाओ,हो जाये जनमानस की जय चप्पा-चप्पा गूंज रहा है आज तुम्हारे नारे से, आस लागए बैठे तुमसे,लोग कई बेचारे से, कलयुग की इस महाभारत का कृष्ण तुम्हे ही बनना है राजनीति के इस रण का प्रारब्ध तुम्हे ही बनना है इस सागर मंथन के हलाहल को भी अमृत करना है मातृभूमि का ऋण भरकर उद्धार तुम्हें ही करना है एक तुम्ही हो जिसपर आस हमें विश्वास हमें सभी दूर रहते हैं, पर लगते हो तुम ही पास हमें
Chandrashekhar Trishul
नारे नाटक तख़्ती बैनर जमा बाग में बड़ा तमाशा आस्तीन के सर्प माँगते अधिकारों का दूध बताशा दशकों बाद सही फेंका दिल्ली ने भी अपना पासा राष्ट्रद्रोहियों को समझा दी राष्ट्रप्रेम की बोली भाषा #नारे नाटक तख़्ती बैनर जमा बाग में बड़ा तमाशा आस्तीन के सर्प माँगते अधिकारों का दूध बताशा दशकों बाद सही फेंका दिल्ली ने भी अपना पासा राष्ट्रद्रोहियों को समझा दी राष्ट्रप्रेम की बोली भाषा
ashish shukla
We want Freedom वैसे तो गाँधी जी के पदचिन्हों के अनुयायी थे , पर उनके एक नारे को फिर बदला था चतुरायी से , 'करो या मरो ' के नारे को था एक नया आयाम दिया , आज 'मरो या मारो ' कहकर लाल बहादुर नाम दिया , जय जवान जय किसान जिन महापुरूष का नारा है , उनके चरणों में झुक करके श्रद्धा नमन हमारा है l ✍️आशीष शुक्ला l #LalBahadurShastri
Neeraj Singh B
वाह! क्या नारे थे। कौन अपने और कौन तुम्हारे थे। कुछ चीख़ रहे थे।कुछ चिल्ला रहे थे। वो भेड़िये तो बस ख़ून बहा रहे थे। वाह! क्या नारे थे । Rajiv Kumar
Rajesh Verma
क्या आप देश भक्त है ? अगर आप वास्तव में देश प्रेमी नही है, तो आप भी उन्हीं लोगो में से एक है ! जो सुबह उठते ही भेड़ बकरो के झुण्ड में शामिल हो जाते है और ज़िंदाबाद मुर्दाबाद के नारे लगाते है ..दरअसल उनको ये मालुम नही होता कि नारे क्यों लगाते है बस लगाते है .... मैं समझता हूं देशहित में कार्य करने के लिए किसी राजनैतीक दल में शामिल होने की ज़रुरत नही होती , बल्कि आपको अपने स्तर पर जनकल्याण हेतू कार्य करने की आवश्यकता होती है । अखबारबाज़ी करने वाला व्यक्ति देशभक्त नही हो सकता ...
Abhishek Tiwariz
नहीं चाहिए मुझे आज़ादी, मुझे फिर से गुलाम बना दो, मेरे गले में, हाथों पैरों में, गुलामी की बेड़ियां पहना दो, अपने ही देश में हो के भी, मैं देश के लिए बहारी हूं, किसी के लिए मल्लू,गुज्जू, बोंग, भईया,बिहारी हूं, क्या करुंगा इस आजादी का, जहां देश विरोधी नारे लगे, जहां दिल से नहीं, भय के कारण, जय हिन्द के नारे लगे, अरे वह तो थे पागल जो, धर्म जाति प्रांत से परे रहे, इन संकुचित सोच वालों के लिए, आज़ादी की बलि चढ़े, इल्म होता गर भगत, सुभाष आज़ाद को, की एक दिन ऐसा आयेगा, देश हित के लिए फिर कोई, क्यूं अपनी जान गंवाएगा, जहां अपने देश में होके भी, लोग हमें अपना नहीं समझते हैं, सच है जो चंद जयचंदों के कारण, लोग सच्ची आज़ादी को तरसते हैं Abhishekism 💕 #Abhishekism #poem #poetry #poet #poems #nojoto #Azaadi
Kh_Nazim
__अपने__ आँखे अब नहीं रोती, पुराना वक्त याद कर के। टूटे लहज़े से वो, अब नहीं हकलाता है। बढ़ गया है आगें समय से वो। जितने अपने न थे उससे ज्यादा कही विरोधी थी तो क़ामयाबी पास फिर भी असफलता के नारे थे कितना हताश बैठा हूँ जहाँ मेरे अपने थे। __अपने__ #आँखे #रोती #हकलाता #नारे #khnazim
Shivanya Dwivedi
एक सशक्त भारत की कल्पना रखते हैं हम, फिर क्यों अपनी माताओं-बहनों की रक्षा, भूल जाते हैं हम, हर एक एेसे दुष्कर्म के बाद सड़कों पर, उतर आते हैं हम, दो दिन बाद शांत हो जाते हैं हम, हर बात पर हिंदु मुस्लिम विवाद, छेड़ जाते हैं हम, कैन्डिल के साथ नारी शक्ति के नारे, लगा जाते हैं हम, पर उन हत्यारों को खुला ऐसे ही छोड़ देते हैं हम, बेटियों के समय से लेकर पहनावे तक, गौर करते हैं हम, पर अपने बेटों की नज़रें देखना, भूल जाते हैं हम, इन पंक्तियों से प्रेरित करना , चाहेंगे हम, कि अब इन हत्यारों को सज़ा-ए-मौत ना मिली, तब सड़कों पर निकलेंगे हम, फिर वो नारी शक्ति के नारे नहीं, उन हत्यारों को बीच बज़ार में, फ़ाँसी लगाएेंगे हम, क्योंकि एक सशक्त भारत की कल्पना, रखते हैं हम। हमारी कलम से। #norape #savegirlchild #girl#twinkle
Shilpi Singh
#ग़दर.... ** #ग़दर **...my first story written by me जी हाँ यह 2001 कि बात है जब.. “ग़दर”..फ़िल्म रिलीज़ हुई और लोग बेशब्री से इंतेज़ार कर रहे थे कि जल्दी से इसकी कैसेट बाज़ार में आजाये क्योंकि सिनेमाघरों में जाने का समय कहाँ था और पैसे भी उतने नही थे और तो और जो आनंद हमारे गाँव के पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर देखने से मिलती वो सिनेमाघरों में कहाँ ?..आख़िर फ़िल्म की कैसेट्स बाज़ार तक आ ही गई सब पाँच-पाँच रुपए इकट्ठा करने लगे ..सीडी और बैटरी के लिए ताकि लाइट जब चली जाए तो बैटरी से जोड़ दिया जाएगा। गाँव में कि
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