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हर्षित कानपुरी

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Harshit kashyap

सुकून की तलाश में ना जाने कहाँ खो गए, दिखा तो सुकून ही था पर बेचैनियों के घर आ गए, पता नहीं मैं गलत था या पता मेरा पर सुकून के तलाश में ही सुकून को ही पीछे छोड़ #Collab #yqdidi #YourQuoteAndMine #हर्षित

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ना जाने कहाँ खो गए,
दिखा तो सुकून ही था
पर बेचैनियों के घर आ गए,
पता नहीं मैं गलत था
या पता मेरा
पर सुकून के तलाश में ही
सुकून को ही पीछे छोड़
हम बहुत आगे आ गए। सुकून की तलाश में
ना जाने कहाँ खो गए,
दिखा तो सुकून ही था
पर बेचैनियों के घर आ गए,
पता नहीं मैं गलत था
या पता मेरा
पर सुकून के तलाश में ही
सुकून को ही पीछे छोड़

shashi kala mahto

#हर्षित मन Anupriya narendra bhakuni Parmod Yadav Pooja Udeshi ram singh yadav अब्र The Imperfect Anchal Sharma /A To Z amazing videos Rakesh Kumar Das Suresh Gulia Dayal "दीप, Goswami.. gudiya Nisha Meena tanu kmt Rakesh Srivastava Author kunal Priya सपना मीना Savita ji Pooran Rawat S Kr Monu Singaa Vidushi Sarita Gupta #कविता

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Harshit Raj Nirmal

#हर्षित दीवाना हो गया #कविता

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Harshit Raj Nirmal

शब्दों को पिरोने का सलीका ढूंढ रहा हूँ
खुद में तुझे जीने का तरीका ढूंढ रहा हूँ।

किसी से मोहब्बत हो जाए दुबारा मुझको
इस वजह से खुद नई प्रेमिका ढूंढ रहा हूँ।

हो चंचलता तितली जैसी चांद की शीतलता
समर्पण भावो से भरी बालिका ढूंढ रहा हूँ

न हो उसमे तेज़ किसी ज्योति ज्वाला जैसी
शबनम की ओस वाली निहारिका ढूंढ रहा हूँ।

न हो उसमे अकड़ न हो ऊँचे होने का दम्भ
ज़मीन पर फैली कोमल लतिका खोज रहा हूँ।

खिलने को मैं दूँगा जो मांगे अवसर मुझसे
मैं भँवरों वाली फूल नही कलिका ढूंढ रहा हूँ।

भले न आती हो उसे कोई रंग में ढलने की कला
मुझे अवशोषित करने को कालिका ढूंढ रहा हूँ।

थोड़ी बहुत ही सही हो  शब्दों का ज्ञान उसे
अपनी पूर्ण कविता के लिए लेखिका ढूंढ रहा हूँ।

लोगो से सुना है जीवन एक रंगमंच जैसी है
उस पर अभिनय करने को नायिका ढूंढ रहा हूँ।

वर्तमान परिवेश बहुत ही बदला बदला सा है
जो कर सके सम्मान ऐसी सेविका ढूंढ रहा हूँ।

देना चाहता है #हर्षित एक इश्तिहार ज़माने में
अपने शहर की सर्व चर्चित पत्रिका ढूंढ रहा हूँ।

©Harshit Raj Nirmal

Harshit Raj Nirmal

शब्दों को पिरोने का सलीका ढूंढ रहा हूँ
खुद में तुझे जीने का तरीका ढूंढ रहा हूँ।

किसी से मोहब्बत हो जाए दुबारा मुझको
इस वजह से खुद नई प्रेमिका ढूंढ रहा हूँ।

हो चंचलता तितली जैसी चांद की शीतलता
समर्पण भावो से भरी बालिका ढूंढ रहा हूँ

न हो उसमे तेज़ किसी ज्योति ज्वाला जैसी
शबनम की ओस वाली निहारिका ढूंढ रहा हूँ।

न हो उसमे अकड़ न हो ऊँचे होने का दम्भ
ज़मीन पर फैली कोमल लतिका खोज रहा हूँ।

खिलने को मैं दूँगा जो मांगे अवसर मुझसे
मैं भँवरों वाली फूल नही कलिका ढूंढ रहा हूँ।

भले न आती हो उसे कोई रंग में ढलने की कला
मुझे अवशोषित करने को कालिका ढूंढ रहा हूँ।

थोड़ी बहुत ही सही हो  शब्दों का ज्ञान उसे
अपनी पूर्ण कविता के लिए लेखिका ढूंढ रहा हूँ।

लोगो से सुना है जीवन एक रंगमंच जैसी है
उस पर अभिनय करने को नायिका ढूंढ रहा हूँ।

वर्तमान परिवेश बहुत ही बदला बदला सा है
जो कर सके सम्मान ऐसी सेविका ढूंढ रहा हूँ।

देना चाहता है #हर्षित एक इश्तिहार ज़माने में
अपने शहर की सर्व चर्चित पत्रिका ढूंढ रहा हूँ।

©Harshit Raj Nirmal

dayal singh

bachpan ke din

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जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है।

हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और ‍खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और ‍चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है।

वो सपने सुहाने ...

छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन।

तोतली व भोली भाषा

बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं।

जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया?

जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है।

वो पापा का साइकल पर घुमाना...

हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां?

साइकलिंग

थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी।

लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी।

हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन!
मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!!
राह तक रहा हूँ मैं!!!जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है।

हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और ‍खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और ‍चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है।


वो सपने सुहाने ...

छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन।


तोतली व भोली भाषा

बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं।

जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया?

जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है।

वो पापा का साइकल पर घुमाना...

हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां?

साइकलिंग

थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी।

लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी।

हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन!
मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!!
राह तक रहा हूँ मैं!!! bachpan ke din

Satyaveer Singh Gurjar

कश्मीर पर सरकार को बधाई #कविता

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Safar सर ऊंचा कर दिया आपनें, हर्षित बेला आयी है।

मोदी और शाह की बात, ये सबके मन को भाई है।।

थी घायल वो स्वर्ग जमीं, हर कश्मीरी जख्मी था।

घाटी जो फूलों वाली थी, उसका हर रास्ता बारूदी था।।

आस्तीन के सांपों के, बच्चे पढ़ते थे लंदन में।

आम नागरिक लगा दिए थे, पत्थरबाजी धंधे में।।

राष्ट्रवादी सैनिक मेरे पीटते थे, चंद उच्चकों से।

यह काम किये घाटी में, अलगावप्रेमी गुंडो ने।।

थी उम्मीद हर भारतवासी को, कि कोई तो ऐसा आएगा।

जो डरे बिना इन गुंडो की, छाती पर चढ़ चढ़ जाएगा।।

आज किया है तुमने ऐसा कि, एक सलामी बनती है।
सर ऊंचा कर दिया आपनें, हर्षित बेला आयी है।

मोदी और शाह की बात, ये सबके मन को भाई है।।

थी घायल वो स्वर्ग जमीं, हर कश्मीरी जख्मी था।

घाटी जो फूलों वाली थी, उसका हर रास्ता बारूदी था।।

आस्तीन के सांपों के, बच्चे पढ़ते थे लंदन में।

आम नागरिक लगा दिए थे, पत्थरबाजी धंधे में।।

राष्ट्रवादी सैनिक मेरे पीटते थे, चंद उच्चकों से।

यह काम किये घाटी में, अलगावप्रेमी गुंडो ने।।

थी उम्मीद हर भारतवासी को, कि कोई तो ऐसा आएगा।

जो डरे बिना इन गुंडो की, छाती पर चढ़ चढ़ जाएगा।।

आज किया है तुमने ऐसा कि, एक सलामी बनती है।

मोदी और शाह की जोड़ी हर युग मे कहाँ मिलती है।।

है हिम्मत तुममें मान गए, दो फाड़ कर दिए घाटी के।

"वीर" यही कह रहा आज, तुम असली सपूत हो माटी के।।


मोदी और शाह की जोड़ी हर युग मे कहाँ मिलती है।।

है हिम्मत तुममें मान गए, दो फाड़ कर दिए घाटी के।

"वीर" यही कह रहा आज, तुम असली सपूत हो माटी के।। कश्मीर पर सरकार को बधाई

Akash Tiwari

Natural Morning प्रकृति का सौंदर्य देख...
मन हर्षित हो उठा...
उर मे नए गान बने...
रस, छन्द अलंकृत हो उठा...
वर्षा की ये बूंदे देख मन हर्षित हो उठा...
डालियों पर पक्षियों की चह-चहाहट...
फूलों पर तितलियों का आगमन देख...
मन ये और भी आकर्षित हुआ...
और तब जा कर ये एहसास हुआ...
प्रकृति परमात्मा की सभी कृतियों में अनुपम कृति है... #Nojoto #nature #lovequotes #love #loveforever #loveyourself #hindi #sahitya

हर्षित"नमन"

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