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Mukesh Poonia
अजीब किस्सा है जिंदगी का अजनबी हाल पूछ रहे हैं और अपनों को खबर तक नहीं है . ©Mukesh Poonia #bachpan #अजीब #किस्सा है #जिंदगी का #अजनबी #हाल पूछ रहे हैं और अपनों को #खबर तक नहीं है
Anuradha T Gautam 6280
Ujjwal Kumar Mishra
कुछ कहानियां, खत्म होते ही... किरदार भूला दिए जाते हैं... मैं वही किरदार हूं। ©Ujjwal Kumar Mishra #udaan #किरदार #2023🤞 #Life #Life_experience #किस्सा
Saurabh Kumar Sonkar
------"भुअरकी-माई"------ मेरे पुराना घर के पास एक नखड़ू चाचा रहते है। उनके पास गायें रही है कई सारी। 2004 में उनकी एक गाय आयी ,खूब सुंदर-सी भूरे रंग की। वो रोज मेरे घर के गेट के बाहर छांव में बैठती थी और कभी-कभार गोबर भी कर दिया करती थी। मेरी मम्मी साफ कर देती थी,बिना परेशानी के।मेरी मम्मी हमेशा से तवे की पहली कुछ रोटियां और गुड़/मिसरी गाय को खिला के ही ख़ुद खाना खाती है,आज भी। मम्मी नही खिलाई तो मैं या कोई-न-कोई जरूर घर से गाय को जाकर खिलाता है,ताकि मम्मी भी खा सके। जिस गईया मईया (गाय) की बात हो रही ,सुंदर-सी उनको सब कोई "भुअरकी" बुलाता था और मैं "भुअरकी-माई" बुलाता था। "भुअरकी-माई" सफाई में रहे,इसलिए मैं भी घर के गेट के बाहर रोज सफाई कर देता था और पानी बर्तन रोज साफ करता कम, करवाता ज्यादा था बहनों से।मेरे गेट के अंदर भी आकर सोती थी और मेरे 100 से भी ज़्यादा गमलों को कभी नुक़सान नही की। एक प्यारी जिम्मेदारी उनके लिए घर मे सबकी बन गयी थी।"भुअरकी-माई" नखरीली बहुत थी, ये नखरा हमें बहुत उठाना पड़ा है क्योंकि रोटी/खाना देने के बाद उन्हें खुद को सहलवाना बहुत पसंद था और मैं अगर इसमें कंजूसी किया तो उनका मुँह फुलाई देखना पड़े मुझे बाद में। पूंछ से मार भी खाए है उनके,अगर सहलाना भूले तो। तो 'भुअरकी-माई" बेहद नज़दीक थी मेरे और मम्मी के । "भुअरकी-माई" जब मम्मी को कही जाते देखती थी तो मम्मी के साथ-साथ आती और जाती थीं और जब कभी मम्मी कही दूर जाने को निकलती थी तो "भुअरकी-माई" को किसी छोटे-से बच्चे की तरह समझाना पड़ता था कि आज नही जा पाएंगी वो। एक बार घर के पास मम्मी समान लेने गयी थी "भुअरकी-माई" भी पीछे होली साथ मे, वापसी में एक बाइक वाला मम्मी से टकरा गया तो "भुअरकी-माई" उसकी गाड़ी गिरा के बाइक वाले को भी मारी। मम्मी के बहुत सम्हालने पर बचा वो बाइक वाला। यकीन न हो आप सबको,मगर सच्ची बात है ये। मैं रोटियों को खिलाने जब जाता था तो सिर्फ दूर से आवाज़ देता था और "भुअरकी-माई" सीधे मेरे घर जाती थी। कुछ दिनों बाद , 2-3 गाय और 1 साँड़ बाबा भी बैठने लगे मेरे गेट के बाहर तो सभी लोग ढेर सारा गोबर कर देते थे। रोज-रोज होने लगा ये सिलसिला तो, पानी से रोज सफाई में मैं या मम्मी करते थे । मैं तो परेशान हो जाता था,मगर मम्मी चुप-चाप साफ कर देती थी। एक दिन मैंने शिकायत की "भुअरकी-माई" से कि ' माई.. ई गरमी में हमें और मम्मी के काहे कष्ट देत हउ, रोज-रोज परेसान हो गइल हई।' कुछ दिन बाद से कोई भी गेट के बाहर गोबर नही किया। वो झुंड में आकर समय से बैठेते और फेरा(गोबर) कहीं और जाके मार आते थे।नखड़ू चाचा से ज़्यादा वो मेरी मम्मी की और मेरी बात सुनती थी। एक बहुत ही सुंदर-सी याद है....जब उनको बछिया हुई,तो लगातार मम्मी वही जाकर खाना खिलाती थी और मैं भी हाल चाल ले आया करता था।कुछ दिनों बाद वो बछिया का खुटा छुड़ा के मेरे घर आई और आवाज़ देने लगी। मम्मी गेट के अंदर बुलाई तो वो सिर्फ़ बछिया को अंदर भेजी, मानिए कि मेरे घर के बाकी सदस्यों से मिलवाने लायी थी। बछिया छोटी और बहुत-ही ज्यादा सुंदर और प्यारी थी। मेरी बहनों ने कूचा गुड़ और रोटी खिलाया बछिया को और "भुअरकी-माई" निश्चिन्त गेट के बाहर बैठी रही, कुछ देर बाद नखड़ू चाचा खोजते आये और ले गए बछिया को। मेरी स्कूल बस आने पर उठ खड़ी होती थी और कभी कभी स्कूल से वापसी पर मेरे लिए सड़क के उस पार आकर साथ मे रोड पार करती थी।बस में खूब हँसी होती थी ये देख कर और मैं भी खीखियता था बहुत ये सब पर। मैं गेट पर जब "भुअरकी-माई" को पानी देने जाता था तो उनको अंदर बुला के उनका सिंग हिलाता और कान मरोड़ा करता था, और मुझे अपनी बड़ी-बड़ी आंखों से एक-टक देखती थी। उनसे बातें भी कर लेते थे और जब वो उब जाती थी तो उठ के चल देती थी। अपना बहुत-सा बात जैसे साईकल नही मिल रहा घर से, बहन से लड़ाई हो गयी, स्कूल में डेली-बेसिस वाली कुटाई की बात , बाहर का खाना न खा पाने की बात, बनारस से कही बाहर न घूम पाने की कसक, मूवी सिनेमा हॉल में न देख पाने की बात ....न जाने कितनी ही बात जो याद नही मुझे भी , उनको बता रखे थे और वो बात उन्ही के पास रहती थी।जमती थी मेरी उनसे काफ़ी, उनके आँखे बहुत प्यारी प्यारी थी और मुझे लगातार देख के बातें सुनती थी। 2006 ठंडी में उनकी तबियत बहुत ज़्यादा ख़राब हो गयी।मैं ,नखड़ू चाचा और उनकी माँ मिल "भुअरकी-माई" को दवा पिलाते थे और बीमारी के कारण वो पी नही पाती थी। कभी कभी मैं या मम्मी जाकर दवा पिलाती थी ,मेरे घर के पीछे ही रहते थे वो लोग तो "भुअरकी-माई" की आवाज़ दर्द वाली सुन के मम्मी चली जाती थी। कभी मैं या चाचा उनके आस-पास आग जला के बोरसी रखते थे और चाचा ने जूट बोरा का घेरा बनाया था जिसको हम सबने मिलके बनाया था। मैंने ये महसूस किया कि वो चाहती है कि कोई-न-कोई उनके पास रहे,इसलिए मम्मी या मेरे पहुँचते ही शांत होकर बैठ जाती थी वो। वो बहुत बुजुर्ग हो गयी थी और बीमारी के कारण भी उनके शरीर से गन्ध आने लगी थी, इसके बाद भी मैं उनके कान को मरोड़ना और सिंग को हिलाना नही भूलता था। वो पता नही कब खिसियाती थी और खुश होती थी,मैं उनसे खेलता था। अब वो मेरे गेट पर नही आती थी, इसलिए मुझे गेट के बाहर की सफाई के समय अजीब लगता था। 3 बार मिलने जाते थे,स्कूल से पहले ...स्कूल के बाद और शाम में।उन्हें देख कर मन बहुत उदास होता था ,क्योंकि पहले उन्हें कभी वैसा नही देखा था। उनकी फुर्ती मेरे मुस्कान की फुर्ती एकदम बराबर रहती थी, मैं ये लाइन लिखते समय भी उदास हूँ ।"भुअरकी-माई" जो आहट से पहचानती थी मुझे, अब उन्हें मुझे उठाना पड़ता था।मम्मी भी कुछ समझ चुकी थी ,इसलिये मुझे कुछ बताती नही थी ।स्कूल से वापसी में मैं किचन से ज्यादा रोटी ले जाके खिलाता था,अपनी रोटी भी उसमे रख देता था। दवा पिलवाने मैं समय से पहुँच जाता था,क्योंकि मेरे और मम्मी के होते वो दवा आराम से पीती थी और अगर हम दोनों न रहे तो खूब छकाती थी वो नखड़ू चाचा को। मामूली सुधार हो रहा था और मैं ख़ुश था इससे ही।😊 मेरे पापा और भैया मंडी भोर में चले जाते थे करीब 3 बजे,तो इस वज़ह से घर मे सब जाते थे और मैं पढ़ाई करने का नाटक करता था पापा के सामने।एक दिन पापा और भैया लोग मंडी गए और उनके जाती ही घर की घण्टी बजी, नखड़ू चाचा और उनकी माँ आयी थी मेरी मम्मी को बुलाने। मैं भी मम्मी के साथ निकला घर से, मेरे घर से सिर्फ एक घर पहले "भुअरकी-माई" ज़मीन पर लेटी थी।मैं दौड़ करके उनको हिला रहा था और मम्मी रोने लगी ।चाचा किसी को फोन कर है थे और मैं "माई-माई ,उठ माई " कर रहा था। मम्मी मुझे देखकर शान्त हो गयी और मैं न जाने क्या समझ के एक पत्थर पर बैठ गया। मैं सोचने लगा कि वो हम सबसे मिलने आ रही थी,शक्ति न होने से सिर्फ एक मकान पहले ही थम गई हमेशा के लिए। एक ऑटो वाला आया और उन्हें लाद कर ले जाने लगा तो मम्मी बोली जाओ पैर छू लो माई का। मैं पैर छूकर ...कान मोड़ के और सिंग हिला के अपने घर आ गया,मम्मी मेरी वजह से एकदम नही रोई और मैं "भुअरकी-माई" की खाने थाली लेकर सो गया । नही गया स्कूल और दिन भर सोया और शाम में उन्हें ढूंढने निकल गया। वो मिली नही कही भी,सच में। मैं समझ के भी नही समझना चाहता था ये बात,पर मान लिए । मैं उदास रहा बहुत दिनों तक,किसी को बताते नही थे पर मन किसी भी चीज़ में नही लगता था।उनकी हर एक हरक़त आज भी ज़ेहन में एकदम ताज़ा है। अब प्रतिदिन सुबह अन्न ग्रहण करने से पहले, मैं अन्न का पहला हिस्सा सूर्यदेव और अपनी "भुअरकी-माई" को चढ़ा कर याद करता हूँ। आज उनकी बहुत याद आयी तो साझा की ये मेरे और "भुअरकी-माई" वाली अनमोल बात आप सबसे।😌 सौरभ कुमार सोनकर.....✍ ©Saurabh Kumar Sonkar #जिंदगी #जिन्दगी #बचपन #किस्सा #प्यारे #यादें
Aurangzeb Khan
कल रात मुझे ख्वाबों में कोई फिर से बुलाने आया था सूख चुकी मेरी आंखों को कोई फिर से रुलाने आया था भूल चुका था अरसे पहले मैं जिस दर्द के किस्से को वही किस्सा मुझे फिर से कोई सुनाने आया था ©Aurangzeb Khan #किस्सा-#दर्द-#का
Shubham Bhardwaj
हर पल जिंदगी का हिस्सा बन जाता है। वक्त के साये में,सबकुछ एक किस्सा बन जाता है।। रिश्तों की डोर में बांधकर तो देखो,जीवन की धारा को। हर रिश्ता एक खूबसूरत सा फरिश्ता बन जाता है फिर।। ©Shubham Bhardwaj #UskePeechhe #हर #पल #जिंदगी #का #किस्सा #बन #जाता #है
इक _अल्फाज़@airs
कई हिस्सों में मिले हो तुम मुझे... शुरुआत हुई थी उस आंसू से... जिसको शायद मैं नहीं समझ पाया था उस दिन... फिर कई दफा लड़ना... दूर होना और उसके बाद और करीब होना... फिर वो दिन आया जब लगा सब ख़त्म हो गया... पर फिर से तुमने अपना हिस्सा दिया मुझे... कई दफा तुम मिलते रहे और खोते रहे... पर मिलने और खोने में जो तुम शामिल थे वो तुम ही रहे हमेशा... और इसीलिए मैं जागता रहना चाहता हूं... ताकि मैं हर उस लम्हे को जी सकूं... बन सकूं गर संभव हो तो तेरे उस हिस्से का इक हिस्सा... और तैयार कर सकूं अपने लिए भी एक किस्सा... बस इसी उम्मीद में रातों को भी दिन की तरह बिताता हूं... की काश तू जो मुझसे दूर है शायद तेरी कोई खबर आ जाए... इक दफा तो याद कर लेते... @IMYI😞😞😓😓☹️☹️@ ©इक _अल्फाज़@ars #kinaara #याद #साथ #किस्सा #हिस्सा
इक _अल्फाज़@airs
मैं तो बस इसी बात से खुश हूं की तेरी ज़िंदगी के कहानी का इक छोटा सा किस्सा हूं मैं... और उस कहानी के हर पन्ने पर न सही... पर तेरी ज़िंदगी के किताब का कहीं न कहीं इक छोटा सा हिस्सा हूं मैं... शोर तो बहुत है जीवन में.. पर उस शोर से हटके सुकून सा है तू... @IMY@ ©इक _अल्फाज़@ars #kinaara #जीवन #सुकून #कहानी #जिंदगी #हिस्सा #किस्सा
Vivek Sharma Bhardwaj
शहर की भीड़ का हिस्सा सब हैं यहां, एक खालीपन का किस्सा सब हैं यहां, मेरी सादगी की गवाह मेरी खामोशी है, मेरे भीतर के शोर से बस! वाकिफ मैं हूं यहां।। . ©Vivek Sharma Bhardwaj #मेरी #खामोशी #मेरा #किस्सा