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2122 2122 2122 ज़िन्दगी मुझमे बची अब जान कब

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ज़िन्दगी  मुझमे बची अब जान कब है
दर्द   में  जीना   यहाँ  आसान  कब है

मत दिखाअपने ये दिल के जख्म मुझे
तेरे  जख्मो से हम भी अन्जान कब है

कर  दिया है  मौत के खुद  को हवाले
अब  बता इस में तेरा  अपमान कब है

देने को  तो दे  देते  तुम को भी अपनी
तुम ने  माँगी हम से यारा जान  कब है

हमने  सजदों  में  गुजारी  ज़िन्दगी  ये
यूँ  पूरा  सबका  हुआ अरमान  कब है

थक  गया  फरयाद  करके ज़िन्दगी से
हो  न जिसमे  खल्क वो इंसान कब है

करते ही  क्यों हो वफ़ा की बाते हमसे
अब  बता  तुझमे  बचा  ईमान  कब है
         ( लक्ष्मण दावानी )
14/12/2016
खल्क - मानवता

©laxman dawani
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