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New Year 2025 2122 1212 22/112 चाँद भी अब खिला ख

New Year 2025 2122  1212  22/112
चाँद भी अब खिला खिला सा है
हर सू  महकी  हुई  फिजा  सा है

आये है सज संवरके महफ़िल में
होश  तब  से  उड़ा  उड़ा  सा  है

कैसे  कह  दूँ  खुदा  उसे  अपना
दरमियाँ  उस  के फासला  सा है

दिल  लगा   बैठे  है   रकीबो  से
अन्दाजे   गुफ्तगू   नया   सा   है

रुख  से  पर्दा  उठा  के जो देखा
युँ  लगा  मुझ पे  वो फिदा सा है

क्या  गिले शिक्वे मैं करूँ उसके
अब  भी  वो मेरे दिलरुबा सा है

धड़कने बन के दिल मे बस्ता है
मैं  जमी हूँ  वो  आसमाँ  सा  है
     ( लक्ष्मण दावानी ✍ )
22/9/2017

©laxman dawani
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