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2122 2122 212 जीत का तो बस मजा है हार में

2122    2122    212
जीत  का  तो  बस मजा है हार में
क्यों   पशेमाँ   हो   रहे  बेज़ार  में

तौल मत अपने नज़र से सच यहाँ
झूठ  बिकता  है  मियाँ  बाजार में

ढूँढते  क्यों  हो  फ़रिश्ते  तुम यहाँ
रब  मिला किसको  यहाँ संसार में

मान लो तुम भी  खुदा अपना उसे
ज़िन्दगी  बन  जायेगी  इज़हार में

दर्द  छुपाती   ये   लहरे  कह  रही
फस  चुकी  है  किश्ती मझधार में

जौर जितना हो लगा लो तुम यहाँ
दम  बचा अब वो  कहाँ पतवार में
       ( लक्ष्मण दावानी )
15/12/2016

©laxman dawani
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