कुछ ख्वाहिशें है जिनका मोल हमने खुद महंगा कर रखा है, कुछ तयशुदा है, कुछ समझ, नहीं पूछते बैठे...अच्छा किया है, इनकी प्यास कौन बुझाए, अब ये जाने तरस किसने लगाई है, आब-सी ठंडक का मुन्तजिर, मौसमों का मुरीद दिल यहां है, मेहरबान तर-बतर यादें हो या बातें, गज़ब फितूर जैसा तू है, इस अंधियार में कैद मुस्कान को सूरज की लाली देने आया है, इल्म हासिल करने की तलब में तेरी नज़र के ऐवज सजदा किया, इश्तिहार सा छप गया वो किस्सा, यूंही चुपचाप आज फिर पढ़ लिया! महंगी ख्वाहिशें ................... कुछ ख्वाहिशें है जिनका मोल हमने खुद महंगा कर रखा है, कुछ तयशुदा है, कुछ समझ, नहीं पूछते बैठे...अच्छा किया है, इनकी प्यास कौन बुझाए, अब