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Mahima Jain
•| ग़ज़ल 2021 |• खुशी मनाओ उल्लास मनाओ, देखो नया साल आया है, खूब नाचो और सबको नचाओ, देखो क्या यह संग लाया है। पिछले साल से सीख लो तुम, नए पर उसको अमल करो, इंसानियत का पाठ पढो तुम, मैंने भी तो बस यही कमाया है। नए साल में आख़िर होगा क्या, मिलेगी वैक्सीन या बढ़ेगी महामारी यहां, कौन जाने किस को कब बुलाया है, यहां तो मौत का आतंक हर तरफ़ छाया है। कितने समय में पहली बार हुआ, हवा का प्रदूषण एकदम साफ़ हुआ, स्वच्छ पानी, ताज़ी हवा, खुला आसमां, 2020 ही यह कमाल कर पाया है। चारों ओर फैली निराशा और अन्धकार हमको मिटाना है, देख "महिमा" कहती ये सबको, बाकी बचा जो मोह माया है।। •| ग़ज़ल 2021 |• खुशी मनाओ उल्लास मनाओ, देखो नया साल आया है, खूब नाचो और सबको नचाओ, देखो क्या यह संग लाया है। पिछले साल से सीख लो तुम, नए पर उसको अमल करो, इंसानियत का पाठ पढो तुम, मैंने भी तो बस यही कमाया है।
Mahima Jain
•| फिल्मी कविता |• "दिल एक मंदिर" है, क्या मैं इसकी पूजा करूं, "दिल मांगे मोर", अब मैं इसका क्या ही करूं। "दिल धड़कने दो", इसको बेरोक बेटोक बहने दो, "दिल तो पागल है", एक काम करो रहने ही दो। "दिल का रिश्ता" बड़ा ही ख़ास है, "दिलवाले" को मिलती आशिक़ी, "दिलजले" का भी होता नाम है। "दिल देके देखो" बड़ा ही सुकून है, "दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे", ये रिश्ता हमें मंज़ूर हैं।। •| फिल्मी कविता |• "दिल एक मंदिर" है, क्या मैं इसकी पूजा करूं, "दिल मांगे मोर", अब मैं इसका क्या ही करूं। "दिल धड़कने दो", इसको बेरोक बेटोक बहने दो, "दिल तो पागल है", एक काम करो रहने ही दो। "दिल का रिश्ता" बड़ा ही ख़ास है, "दिलवाले" को मिलती आशिक़ी,
Mahima Jain
•| वर्ण कविता |• करती थी वो ना बात किसी से, अचानक हो गई चुपचाप काश किसी ने की होती कोशिश, करने की उससे बात कौन जाने क्या था उसके मन में, क्यों रहती थी उदास किसी को ना हुई ख़बर, क्यों चली गई वो खुदा के पास।। नमस्कार, जैसा की आप सभी जानते है कि हमारी हिन्दी भाषा का मूल है स्वर और व्यजंन। स्वर और व्यजंन के संगम से बनते है वर्ण और वर्णों के मेल से शब्द बनते है और शब्दों का महत्त्व और उपयोग तो आप सभी जानते है। निम्नलिखित रचना में मैंने चार स्वर- "अ, आ, औ और इ" और कोई एक व्यजंन "क" को लेकर चार पंक्तियां लिखी है। रचना की पंक्ति का प्रथम वर्ण दिये गये हर स्वर और क व्यजंन के मेल से क्रमानुसार है। Challange done for कोरा काग़ज़ #yqsahitya
Shree
कभी रिश्ते, कभी रास्तों पर पलता रहा हूं, आज सिक्कों की खनक, चमक ढूंढता हूं, मशगूल वक्त से ज्यादा, क्या जाने, जी या मर रहा हूं!! क्या जाने, जी या मर रहा हूं!! अनुशीर्षक जी या मर रहा हूं! .............. बहरूपियों के संग बहरूपिया बन रहा हूं, ज्यादा चुप रह कर उनके जैसा दिख रहा हूं, हर बात में औकात आंकने की आदत सीख रहा हूं! कद-काठी, रंग-रूप, ऊंच-नीच तौलता हूं, किफायती हो सौदा पहले ही परखता हूं,
Shree
कुछ ख्वाहिशें है जिनका मोल हमने खुद महंगा कर रखा है, कुछ तयशुदा है, कुछ समझ, नहीं पूछते बैठे...अच्छा किया है, इनकी प्यास कौन बुझाए, अब ये जाने तरस किसने लगाई है, आब-सी ठंडक का मुन्तजिर, मौसमों का मुरीद दिल यहां है, मेहरबान तर-बतर यादें हो या बातें, गज़ब फितूर जैसा तू है, इस अंधियार में कैद मुस्कान को सूरज की लाली देने आया है, इल्म हासिल करने की तलब में तेरी नज़र के ऐवज सजदा किया, इश्तिहार सा छप गया वो किस्सा, यूंही चुपचाप आज फिर पढ़ लिया! महंगी ख्वाहिशें ................... कुछ ख्वाहिशें है जिनका मोल हमने खुद महंगा कर रखा है, कुछ तयशुदा है, कुछ समझ, नहीं पूछते बैठे...अच्छा किया है, इनकी प्यास कौन बुझाए, अब
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वो आई तो खुद आई, और लाई नहीं दहेज, समाज में ताव रखने को स्वागत किया खूब। कल-परसों में लगी जाने को दफ्तर हो तैयार, देहरी पर रखे कदम, कोई पूछे उसकी पगार, ठिठक कर खड़ी दो पल, थी झुकी-झुकी नजर, 'उबर' आई, देर हो रही, कह निकल पड़ी सफर, पूरे दिन बधाई सत्र के दौरान सोचे कई जवाब, कोशिश नाकाम, पहुंचते ससुराल हुए खड़े कान, बचकर निकली, सहमी थोड़ी, ज्यादा विचलित, कमरे में जाकर पूछा, कहो क्यों पूछ रहे यह? बिन सोचे, नि:संकोच उत्तर,"ये तुम्हारे परिवार, हक है इतना तुम पर हम सब का, समझ लो।" द्वंद मन में, नि:शब्द, आंखों और जबां को रोके, "बाबा ने तो कभी ना पूछा क्यों ऐसा कोई सवाल!?" दहेज का नवरुप ...................... वो आई तो खुद आई, और लाई नहीं दहेज, समाज में ताव रखने को स्वागत किया खूब। कल-परसों में लगी जाने को दफ्तर हो तैयार, देहरी पर रखे कदम, कोई पूछे उसकी पगार, ठिठक कर खड़ी दो पल, थी झुकी-झुकी नजर, 'उबर' आई, देर हो रही, कह निकल पड़ी सफर,
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भोले बन बोले नही, रखें छुपा मन की भाल, सिर पैर रख भागे, कोई पहचान जाये ताल। सत्य निरर्थक घूटे, झूठ आरोपित नित नए। पल्लवित कुसुम कहे, सुवासित हृदय हर्षित रहे। सर्वगुणसंपन्न परमेश्वर मूरत बन पूजित होए रहे। रक्त जलधारा सी बहे, मानव मंडल मूर्छित गिर रहे। दो मुख ......... भोले बन बोले नही, रखें छुपा मन की भाल, सिर पैर रख भागे, कोई पहचान जाये ताल। सत्य निरर्थक घूटे,
Shree
अपयश की आंच में शनै:-शनै: भाव पके, नमक थोड़ा ज्यादा शक्कर थोड़ा-थोड़ा, प्यार में ऐसी रफ्तार प्यास बनते ना देर लगे। सरक कर सरपट सच, मौन बन गौण रहे वह। निर्गुण परमेश्वर मुंह तके, रस-रंग-रुप हर ओर मंझे। धरा पुकारे, "ऐ अंबर बरस, काहे जिए तरस-तरस!!" दुनियादारी .............. अपयश की आंच में शनै:-शनै: भाव पके, नमक थोड़ा ज्यादा शक्कर थोड़ा-थोड़ा, प्यार में ऐसी रफ्तार प्यास बनते ना देर लगे।
Krish Vj
सयम लिखूँ, धैर्य लिखूँ या लिख दूँ मैं नाम तेरा! पूजा करूँ मंत्र जाप करूँ, या बोल दूँ मैं नाम तेरा! मंदिर-मस्जिद देखूँ ख़ुदा या निहारूं चेहरा तेरा! माटी के कण-कण मैं या ढूँढू अक्स मन में तेरा राम लिखूँ या शिव लिखूँ या लिख दूँ माँ नाम तेरा! जन्नत की पवित्रता चुन लूँ या थाम लूँ आँचल माँ तेरा! प्रेम लिखूँ त्याग लिखूँ मैं या लिख दूँ माँ जीवन तेरा! नज़्म लिखूँ ग़ज़ल या कविता या काग़ज़ पर लिखूँ नाम तेरा! प्रथम रचना:_ माँ सयम लिखूँ, धैर्य लिखूँ या लिख दूँ मैं नाम तेरा! पूजा करूँ मंत्र जाप करूँ या बोल दूँ मैं नाम तेरा! मंदिर मस्जिद देखूँ ख़ुदा
Krish Vj
वो जो यूँ खिले-खिले से रहते है ना जाने कब से दिल मे रहते है लरजते लबों से जो कहीं दास्ता वो बातें दिल मे घर कर गई है मस्त कजरारे नैन का क्या कहना इन नैनो के जाम का क्या कहना छाई है मदहोशी इस कदर हम पर अब ना होश है, ना खुद की ख़बर नशा तेरे लबों का शराब से ज्यादा जो छुए लबों को तब से नशे में हम #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़महाप्रतियोगिता #कोराकाग़ज़ #विशेषप्रतियोगिता #कोराकागज_pc_14