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2122 2122 2122 212 कर न गुमाँ खुद पे खुदस

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कर न गुमाँ खुद पे खुदसे करले तू पहचान अब
धूल  में  मिल  जायेगा  ये  बात  मेरी  मान अब

देखे है  हमने धुरन्धर  एक से बढ़कर एक यहां
तू  मूछों को ताव दे  अपनी दिखा ना शान अब

रोयेगा  हो  कर जुदा  अपनों  से  बातें  मान ले
तू  बता ना  फर्ज को अपने  यहाँ अहसान अब

गलतियाँ  कुछ तो  तुमारी  भी  रही  होंगी यहाँ
मान कर अपनी खतायें  सब तु बन इंसान अब

मुफलिसी  के दौर में  ग़ुम  हो  गई  सब आरजू
तू जगा ना दिल में कोई  ओ नया अरमान अब

आशिको  के  भेस में  अब  घुमते कातिल यहाँ
बन रहा  क्यों जान के तू सब यहाँ अंजान अब
             ( लक्ष्मण दावानी ✍ )
22/12/2016

©laxman dawani
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