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2122 2122 2122 ज़िन्दगी भर हम यहाँ खोते

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ज़िन्दगी  भर  हम  यहाँ  खोते  रहे है
उम्र   भर    तन्हाई  में   रोते    रहे  है

कौन  सुनेगा   यहाँ   फरयाद  अपनी
ज़िन्दगी   में    हादसे    होते   रहे  है

करके देखी हमने  भी सबसे मुहब्बत
नफरतो   के  बीज  ही   बोते  रहे  है

कैसे समझूँ में  यहाँ अपना किसी को
दर्द   हमको  अपने   ही  देते  रहे  है

हम निकल तो  आये थे राहें मुहब्बत
हर  कदम  ठोकर  यहाँ  खाते  रहे है

दाग दामन पर 'मे' का उनपे लगा था
बे  वफा  हमको  हि  वो कहते  रहे है
       ( लक्ष्मण दावानी ✍ )
10/1/2017

©laxman dawani
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