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The_Prity Mahajan
Anil Ray
तलाशें-मोहब्बत में खुद का वजूद मिटाया तब जाकर सुकूं से रूह को करार आया... दिल अकेलेपन दर्द से नही तड़पता यार हसीं धड़कन को जो है दिल में बसाया.... इश्क़े-इंतजार की घड़ियां लाख दो मेरे खुदा तलाश खत्म है मोहब्बत में तुमको पाया... हर लम्हा देखी तेरी सूरत मोहब्बत इबादत में मेरा खुदा पाक मोहब्बत इबादत में समाया... जब मिल गयी है हसीं मोहब्बत खोजना क्या? मैंने इसी मोहब्बत में खोना मांग लिया..... अब भला किसकी तलाश करे यह अनिल? बस! खुद में मुझे खुदा जो है मिल गया.... ©Anil Ray 💖 मैं इंसान हूँ मुझे प्रेम में रहने दो यारों 💖 मेरा दोस्त जब मेरे कमरे में पहुँचा जहाँ पर मैं लिखता पढ़ता हूँ तो हैरान सा हुआ इधर-उधर देखते
Mili Saha
// भूख का कोई मज़हब नहीं // दो वक्त़ की रोटी कमाने के लिए, पूरी दुनिया दौड़ती है, रोटी की भूख ऐसी है जो ज़िन्दगी के हर रंग दिखाती है, अमीर हो या गरीब हो, भूख तो हर किसी को है सताए, भूख का कोई मज़हब नहीं और न ये कोई धर्म देखती है। न जाने कितनी ही जिंदगियांँ, यहांँ रोज भूखी सोती है, अमीर फेंकता खाना और गरीब के पेट में भूख रोती है, न जाने क्या-क्या करवा देती, ये पेट की भूख इंसानों से, मारपीट यहाँ तक चोरी तक के लिए मजबूर कर देती है। महलों वाले क्या जाने इस भूख की कीमत क्या होती है, किसी गरीब से पूछो, कैसे भूख निचोड़ कर रख देती है, "मुझे भूख नहीं है"ये मजबूरी के शब्द हैं किसी गरीब के, बहला लेते हैं मन को शायद दरवाजे ही बंद हैं नसीब के। पेट की भूख मासूमों से उनका बचपन ही छीन लेती है, बचपन की मासूमियत, भूख में लिपट कर रह जाती है, नहीं मांगते वो पिज्जा बर्गर, न कोई मिठाई न दूध दही, बस दो वक्त़ की रोटी ख्वाहिश में ये ज़िंदगी गुज़रती है। कितने आंँसू रोती है भूख, रोज़ उनके खाली बर्तनों में, सहने की आदत हो जाती इन्हें रहते रहते मजबूरियों में, फटी जेब की तरह, इनकी किस्मत भी तो फटी होती है, मेहनत करने पर भी दो वक्त की रोटी नहीं मिल पाती है। पूरी कविता अनुशीर्षक में पढ़ें read in caption ©Mili Saha दो वक्त़ की रोटी कमाने के लिए, पूरी दुनिया दौड़ती है, रोटी की भूख ऐसी है जो ज़िन्दगी के हर रंग दिखाती है, अमीर हो या गरीब हो, भूख तो हर कि
shamawritesBebaak_शमीम अख्तर
SumitGaurav2005
मंजिल तक पहुंचने के लिए मेहनत तो करनी पड़ेगी, मिठाई खाना चाहते हैं तो दुकान से लानी को पड़ेगी, अगर नहीं चाहते हैं आप मिठाई किसी दुकान से लाना फिर तो घर पर बनाने की मेहनत करनी पड़ेगी! ©SumitGaurav2005 #funnyshayari #Farzishayari मंजिल तक पहुंचने के लिए मेहनत तो करनी पड़ेगी, मिठाई खाना चाहते हैं तो दुकान से लानी को पड़ेगी, अगर नहीं चाहत
Deepti Garg
लघुकथा कैप्शन में पड़े 👇👇👇👇 ©Deepti Garg #विगुल #dilkikalamse ❤✍🏼#deeptigarg 3-बिगुल ( लघु कथा )#बिगुल शीर्षक- मेहनत का फल दिनांक-19/9/2022 एक दिन मैं ऐसे ही खिड़की के पास बैठी
Nisheeth pandey
#वो रात बेहया !!!! ----------- वो रात मानो ,बेहया हो गयी थी जब तुम बाल खोल कर घूर रहीं थी ... आधुनिकता में तुम्हारे शर्ट के खुले बटन नाभी के ऊपर से बाँधे शर्ट का कोर... मुझे रिझाती रहीं ... तुम्हारे होठों पर हँसी कातिल निगाहें ... वो रात बन गई थी शराब ... नहीं झेंप रहीं थी ...किसी भी बात पर अपनी अदां तुम ,मैं और वो रात कोई भी हो... मुहब्बत तन मन बेबाक सुनाती अपनी प्यास... दिल की चाहत प्यार बरसे मिटे प्यास.. इश्क़ के गीत...सरेराह गाती तुम बल्ब के घूरने पर... स्विच ऑन ऑफ करती तुम मानो 'आँख मारकर' लुभाती तुम... अपने पारदर्शी पोसाक में...इतना इतराती तुम . हाँ!बेहया सी दिख रहीं थी वो! आधुनिकता जो आज काम वासना ग्लाश में शराब शराब में घुलता बर्फ स्त्री पुरुष के हर गुण अपनाया...ये बेहयापन कैसे निभाया? दरवाज़ा बंद रहा...गैरों के लिए तो ,अपनों से भी... कभी अस्तिव बचाती थी ? धर्म पर अडिग थी हाँ! अब बेहया हो गयी थी आधुनिकता के तलब में वो! जो इरादों से अपनी आधुनिकता की पक्की थी सच में...वो रात ज़िद्दी थी... अब वो भीड़ में भी गम्भीर नही ...भीड़ से लड़ने की हुनर रखती अपनी हर मजबूरी से... हर-हाला लड़ी थी हर तूफ़ान जन्म देकर उड़ जाती जब उसके सर पे वोडका वाइन चढ़ता अपने ही ज़िस्म से चादर फाड़ देती ... ना सूरज की दरकार-ना चाँद का इंतज़ार चिटकती सड़कों पर नशे में झूमकर चलती है... हाँ! आधुनिकता में बेहया होती जा रहीं थी वो रात ! अपने हर ख्वाब को मुक़म्मल करने में हर पुरुष को ठोकर मार... खुद को बराबर जता रहीं ... स्त्रीत्व के चेहरे का नक़ाब नोंच कर पुरुष की तिलिस्म वो रच रहीं ... रात भर जागती-उघियाती , बियर के मगों से बतियाती है... कभी कुछ लिखती तो कभी संस्कार के कैनवास पर खुद को नंगी चित्रित करती है... हाँ! तुम बेहया हो गयी ! खुद को मॉडर्न बनाने में ढलती रात में , वाशना के चाशनी में मिठाई बनती रहीं... जिश्म का प्यार में रमी रहीं , रूह का गला घोंट दिया... आधुनिकता के बाज़ार में जिंदा रहेंगी मेरी साँसों के साथ वो रात और तुम , ये बात दोहराती रहेंगी ... आधुनिकता में परुष से बराबरी करना बराबरी में बेहया होने की जिद्द करना .... आधुनिकता की परिभाषा क्या था तुम्हारे लिये बस पुरुषों के दुर्गुणों का बराबरी करना .... हाँ वो रात बेहया हो गयी थी .... हाँ वो रात बेहया हो गयी थी .... #निशीथ ©Nisheeth pandey #WoRaat वो रात बेहया !!!! ----------- वो रात मानो बेहया हो गयी थी जब तुम बाल खोल कर घूर रहीं थी ... आधुनिकता में तुम्हारे शर्ट के खुले बटन