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वेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। आविः सन्निहितं गुहाचरं नाम महत् पदमत्रैतत् समर्पितम्। एजत् प्राणन्निमिषच्च यदेतज्जानथ सदस-द्वरेण्यं परं विज्ञानाद्यद्वरिष्ठं प्रजानाम् ॥ स्वयं आविर्भूत परम तत्त्व यहाँ सन्निहित है, यह हृद्गुहा में विचरने वाला महान् पद है, इसमें ही यह सब समर्पित है जो गतिमान् है, प्राणवान् है तथा जो दृष्टिमान् है। यह जो यही महान् पद है, उसको ही 'सत्' तथा 'असत्' जानो, जो परम वरेण्य है, महत्तम एवं 'सर्वोच्च' (वरिष्ठ) है, तथा जो प्राणियों (प्रजाओं) के ज्ञान से परे है। Manifested, it is here set close within, moving in the secret heart, this is the mighty foundation and into it is consigned all that moves and breathes and sees. This that is that great foundation here, know, as the Is and Is not, the supremely desirable, greatest and the Most High, beyond the knowledge of creatures. ( मुण्डकोपनिषद् २.२.१ ) #मुण्डकोपनिषद #mundakopanishad #उपनिषद #द्वितीय #अध्याय
राहुल अग्निहोत्री
सस्यमिव मतर्या: पच्यते सस्यामिवाजायते पुनः। अर्थात मरणधर्मा मनुष्य अनाज की तरह है जो जराजीर्ण होकर मर जाता है और फिर पुनः जन्म लेता है। कठोपनिषद लोक्ति #nojoto #poem
Jyotirmayee Sarkar
क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:। स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥ (द्वितीय अध्याय, श्लोक 63) हिंदी अनुवाद: क्रोध से मनुष्य की मति मारी जाती है यानी मूढ़ हो जाती है जिससे स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद का अपना ही नाश कर बैठता है। ©Jyotirmayee Sarkar भगवद गीता (द्वितीय अध्याय, श्लोक 63) #akela #भगवदगीता #geeta
Jyotirmayee Sarkar
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ (द्वितीय अध्याय, श्लोक 47) अर्थात: कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, लेकिन कर्म के फलों में कभी नहीं… इसलिए कर्म को फल के लिए मत करो और न ही काम करने में तुम्हारी आसक्ति हो। ©Jyotirmayee Sarkar भगवद गीता।। (द्वितीय अध्याय, श्लोक 47) #phool #गीता #भगवदगीता #BhagvadGita #Motivational #sheekh #Slok
Jyotirmayee Sarkar
ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते। सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥ (द्वितीय अध्याय, श्लोक 62) हिंदी अनुवाद: विषयों वस्तुओं के बारे में सोचते रहने से मनुष्य को उनसे आसक्ति हो जाती है। इससे उनमें कामना यानी इच्छा पैदा होती है और कामनाओं में विघ्न आने से क्रोध की उत्पत्ति होती है। ©Jyotirmayee Sarkar Bhagvad geeta (द्वितीय अध्याय, श्लोक 62) #doori #Srikrishna #vasudev #narayan #Bhagavadgita #gita #motivational #motivate