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M S GUPTA
क्या अब भी हमें यू ही सताया करोगे क्या अब भी हमें यू ही रूलाया करोगे हमारे यू ही हर सब्र का इम्तहान मत लो वरना कब्र में सो जाऐगे देख लेना तुम फिर क्या करोगे फिर क्या करोगे ©MONU GUPTA #फिर क्या करोगे फिर क्या करोगे #alone
Sumit Mgr
ये शरारत हैं, सियासत हैं या हैं साजिश कोई शाक पर फल आए इससे पहले पत्थर अा गया मैंने कुछ पानी बचा के रखा था अपनी आंख में कहीं से कोई समन्दर अपने सूखे होठ लेके आया फिर क्या
अज़नबी किताब
नाटक.. रंगमंच... कलाकार... कला... दर्शक.. कुछ ऐसा हुआ, में रंगमंच पे खड़ी थी, और मेरी कला मेरा हाथ थामे | दर्शक मेरी कला से मुझे पहचानते थे.. क्या खूब कला थी, खुदा की देख हुआ करती थी | एक बार बोली बात, में जमी को ख़त्म हो ने पर भी निभाती थी, कला थी.. वचन निभाने की, नाटक बन गयी.. रंगमंच पे उस खुदा के, में आज एक कटपुतली बन गयी... वचन निभाती नहीं, ऐसा सुना है मेने, दर्शकों से | क्या कहु, कला खो गयी, पर ये कला उनके लिए कायम है, जो सही में आज भी वचन को समझते है | कला खुदा की देन होती है, खुदा भी ख़ुश होते होंगे मेरे वचन ना निभाने से.. -अज़नबी किताब नाटक..
Arora PR
स्वप्नलोको के प्रलोबन मुझे कभी सममोहित नहीं कर सकते क्योकि मैं हर स्वप्न कोबन्द आँखों का नाटक ही समझता हूँ ©Arora PR नाटक
Vrishali G
जीवनाच्या नाटकात सहभाग सगळ्यांचा असतो पण आपली भुमिका नाही वठली तर सारा तमाशा होऊन जातो नाटक
Babli BhatiBaisla
झूठे और ओछे मक्कार महात्मा को कोई नहीं पूछता काले पड़ गए मैले मनको को कोई नहीं पूजता आर्यो की धरती पर शास्त्रों का ऊंचा स्थान है भारत मां के शास्त्रियों की विश्व में अलग पहचान है लाल बहादुर शास्त्री हो या धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री दोनों ने साबित कर दिखाया गरीबी नहीं पिछाड़ती महानता में पिछड़ जाते हैं धनाढ्य भी नीयत से बहुत मूर्ख लगते हैं भूख हड़ताल का नाटक करते हष्ट-पुष्ट काटा है लम्बा सफ़र आंखें मूंद कर अनपढ बहुत थे पढ़ कर समझ गए सभी जयचंद और शकुनि कौन थे बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla नाटक
Vickram
वक्त साथ देता तो तेरी हथेली में लिख देता में,, तुम्हे बेफिक्र अपनी तकदीर बना लेता में,,, तू मिली किसी और को आजाद हो गया हुं,, ना जाने तेरी किस्मत में होता तो कुछ और होता,, ©Vickram फिर क्या होता,,