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Ambika Mallik
कभी कभी गुमनाम हवाऐं रुह को चुम जाती है, दिल उनके तसव्वुर में हवाओं संग घूम आती है। जब महकती है केवड़े की मदमाती क्यारियाँ, बेचैन हवाऐं मन को कहाँ काबू कर पाती है। शेफालिका जब सुरभित होती कौमुदी को चूम कर, फिजाओं के कण कण में घुल कर मदन राग फैलाती है। हवाओं संग जब दूर से आती है पपीहे की तान, पी-कहाँ करता चातक को पिया की याद सताती है। मंद मंद पुरवाई मधुमास में जब उनके गली से आती है, ख्यालों में पिया को "अम्बे" बहुत करीब पाती है। अम्बिका मल्लिक ✍️✍️ ©Ambika Mallik #मधुमास
Parasram Arora
कहने सुनने को अब कुछ रहा नहीं हदे सारी अब पूरी हुई साथ निभाने की सभीशर्ते अब तिथि बाहय हुई ©Parasram Arora तिथि बाह्य
दिनेश कुशभुवनपुरी
गीत: देकर शूल गये जिनको पल पल याद रखे हम, वे ही भूल गये। फूलों की तो बात छोड़ दो, देकर शूल गये॥ जिनको था मधुमास समझता, वे निकले पतझड़। स्वर्ण समझता था जिनको मैं, निकले वे कंकड़। मेरे कोमल मन को करके, तार तार छोड़ा। लिखा हृदय था खत जो उनको, उड़ा दिया फड़फड़॥ मैं भी था उपजाऊ मिट्टी, करके धूल गये। फूलों की तो बात छोड़ दो, देकर शूल गये॥ पर्वत चूमा सागर छाना, नदियों में उतरा। चाँद सितारों में भी खोजा, ढूंढा सकल धरा। ढूढ़ा उनको कण कण में पर, आहट नहीं मिली। तड़प तड़प उनकी यादों में, तिल तिल यार मरा। उल्लासों के स्वप्न हमारे, फाँसी झूल गये। फूलों की तो बात छोड़ दो, देकर शूल गये॥ रातें बीतीं दिन भी बीता, बीते वर्ष कई। मेरे उर से उनकी यादें, लेकिन नहीं गई। एक दिवस ऐसा भी आया, उनकी मिली खबर। जागी किरणें आशाओं की, फिर से नई नई। मगर तोड़ अहसासों को फिर, देकर हूल गये। फूलों की तो बात छोड़ दो, देकर शूल गये॥ ©दिनेश कुशभुवनपुरी #गीत #देकर_शूल_गये #मधुमास #पतझड़ #फूल