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Rajesh rajak
देखा है मांझी को दरिया में नाव खेते हुए, पार लगाए हैं उसने जाने अंजाने , भूले भटकों को,झेले है कई मौसम,अनेकों तूफ़ान,बो भी रोज अपनी जान की परवाह किए बिना,क्यों कि बो मांझी है। एक तू भी मांझी था मेरे जीवन का,और तूने मेरी नाव को साहिल नहीं दिया। मांझी
मांझी
read moreKalpana Srivastava
अगर मुश्किलें बलवान होती तो कोई मांझी जन्म नहीं लेता.. एक ने पहाड़ तोड़ा तो दूसरे ने लहरों का रुख मोड़ा.. ©kalpana srivastava #मांझी
Ganesh vinayak
गर तरिकी से मिलती कलेजे को ठंडक तो जरूरत क्या परवाने को मिटने की शमा पर कश्तियां डुबोए मांझी ही दरिया में तो जरूरत क्या जाने की साहिल पर ______ganesh vinayak मांझी
मांझी
read moreparmod bagri
पहाड़ से भी टकराया जा सकता है नामुमकिन को मुमकिन बनाया जाता है सच्चे प्यार की तो यादें ही काफी है पहाड़ को चीरकर रस्ता बनाया जा सकता है सच्चे प्यार को अगर सताया ना होता पत्थर को अगर गरूर आया ना होता बच जाता तु अगर सच्चे प्यार के बीच में आया ना होता Parmod bagri दशरथ मांझी परिनिर्वाण दिवस पर विशेष दशरथ मांझी
दशरथ मांझी #शायरी
read moreबेबस
नशे काटकर मोहब्बत का दिखवा नहीं किया है.... पहाड़ काटा हे ,मोहब्बत के नाम का रास्ता दिया है... दशरथ मांझी
दशरथ मांझी
read moreDr. Bhagwan Sahay Meena
दशरथ मांझी ********************************* पर्वत मांझी से झुका, सागर को श्रीराम। अमर हुए इतिहास में, इन दोनों के काम। डॉ. भगवान सहाय मीना बाड़ा पदमपुरा जयपुर राजस्थान। ©Dr. Bhagwan Sahay Rajasthani #दशरथ मांझी
Sunaina Babber
समस्याओं के घाट पर हम यूँही बैठे हैं अपनी कश्ती लगाए, आस यही है ऊपर वाला मांझी बनकर इसे भी पर लगाये। ©Sunaina Babber #मांझी #AdhureVakya
Baljit Singh
बहुत सी बातों को इक चुपी में दबाने को बडा सा दिल चाहिए सब कुछ भूल जाने को यादों के बवंडर में मैं तो डूब ही जाता हूँ अक्सर कोई मांझी भी थकता होगा कश्ती पार लगाने को कोई मांझी
कोई मांझी
read moredilip khan anpadh
ओ रे मांझी **** ओ रे मांझी,तीरे ले चल, डूब रहा है दिल मेरा है कोई बैचैन,तट पे,राह देखे चुप खड़ा। उसकी आंखों के चरागों को जलाना है अभी क्या पता,फिर लौट पाऊं,या न पाऊं फिर कभी थाम लूँ,मैं हाथ उसका,दूँ तस्सली उम्र का भर दूँ, हंसी आंखों में उसके,देके खुद को ही सजा ओ रे मांझी,फिर कोई राग गाओ प्रीत का मन ये बोझिल हो रहा है,याद दिलाओ मीत का कह दो इस पगली पवन से,रुख ये अपना मोड़ ले धारों को ये तेज करदे,खुद को इससे जोड़ ले है कंहा अब वक्त इतना,धड़कने पुरजोर है बाबला से बह रहा हूँ,कब,किनारा, छोर है? ओ रे मांझी खोद दे,मस्तूल अपना अब यंही मीत मेरी बाट जोहे, थक न जाए फिर कंही गाओ तुम मल्हार कोई,प्रीत धुन में कूककर दर्द सांसो से बहाकर, फिर जिला दो फूंककर सब्र अब होता नही,पल-पल जो दूरी घट रहा चप्पू तुम कुछ तेज साधो, क्यों ये दूरी बढ़ रहा? ओ रे मांझी,धड़कने,बैचैन अब ये हो रहा तू समझ मेरी व्यथा को,कारवां तू ढो रहा दर्द को साझा समझकर,मुझपे तू उपकार कर कोई कीमत मैं कगुक दूँ, बस तू मुझको पार कर बांध लूँ बाँहों का बंधन,तपती आहों को जरा वर्षों गुजरी आस में जो,सींच दूँ उसको जरा ओ रे मांझी तीरे ले चल,डूब रहा है दिल मेरा....... दिलीप कुमार खाँ """अनपढ़"" #ओ रे मांझी