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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- घर में ही पुन्य कमाने के लिए रहता हूँ । माँ के मैं पाँव दबाने के लिए रहता हूँ ।। दुश्मनी दिल से मिटाने के लिए रहता हूँ । धूल में फूल #शायरी

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ग़ज़ल :-
घर में ही पुन्य कमाने के लिए रहता हूँ ।
माँ के मैं पाँव दबाने के लिए रहता हूँ ।।

दुश्मनी दिल से मिटाने के लिए रहता हूँ ।
धूल में फूल खिलाने के लिए रहता हूँ ।।

शहर में मैं नही जाता कमाने को पैसे ।
हाथ बापू का  बटाने के लिए रहता हूँ ।।

जानता हूँ दूरियों से खत्म होगें रिश्ते ।
मैं उन्हें आज बचाने के लिए रहता हूँ ।।

हर जगह जल रहे देखो आस्था के दीपक ।
मैं उन्हीं में घी बढ़ाने के लिए रहता हूँ ।।

कितने कमजोर हुए हैं आजकल के रिश्ते ।
उनको आईना दिखाने के लिए रहता हूँ ।।

कुछ न मिलता है प्रखर आज यहाँ पे हमको ।
फिर भी इनको मैं हँसाने के लिए रहता हूँ ।
११/०३/२०२४    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-
घर में ही पुन्य कमाने के लिए रहता हूँ ।
माँ के मैं पाँव दबाने के लिए रहता हूँ ।।

दुश्मनी दिल से मिटाने के लिए रहता हूँ ।
धूल में फूल

simanil

#foryoupapa बापू सेहत के लिए तू तो लाभदायक है #मीम

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बदलाव

❤❤🙏 हमारे प्यारे बापू जी 🌹🌹🤗🌺 #जानकारी

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Instagram id @kavi_neetesh

विषय: सुभाष चन्द्र बोस जयंती या पराक्रम दिवस समस्त माताओं , बहनों एवं बंधुओं को सुभाष चंद्र बोस जयंती की हार्दिक शुभकामनाएँ । सुभाष चंद्र #subhashchandrabose #समाज

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समस्त माताओं , बहनों एवं बंधुओं को सुभाष चंद्र बोस जयंती की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
सुभाष चंद्र बोस जी के नाम पर एक सुभाष चालिसा का प्रयास:
                   दोहा
अष्ट शताब्दी वर्ष तक ,
यह भारत रहा गुलाम ।
कभी मुगल कभी गोरे ,
रहे शासन ये अविराम ।।
                   चौपाई 
जय सुभाष तेरा अभिनंदन ।
चरण तुम्हारे कोटिशः वंदन ।।
जय जय हे वीर भारत नंदन ।
चीख पुकार सुने तुम क्रंदन ।।
मुगल शासन निरंतर कीन्हा ।
ब्रिटेन पुर्तगाल शासन लीन्हा ।।
अठारह शताब्दी औ सत्तावन ।
गोरे बने थे कंस बालि रावण ।।

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©Instagram id @kavi_neetesh विषय: सुभाष चन्द्र बोस जयंती या पराक्रम दिवस 

समस्त माताओं , बहनों एवं बंधुओं को सुभाष चंद्र बोस जयंती की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
सुभाष चंद्र

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

सुना अयोध्या में बापू अब , राम-सिया जी आयेंगे । मैं भी दर्शन करना चाहू , आप मुझे ले जायेंगे ।। सुना अयोध्या में बापू अब..... गाँव-गाँव म #कविता

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सुना अयोध्या में बापू अब , राम-सिया जी आयेंगे ।
मैं भी दर्शन करना चाहू , आप मुझे ले जायेंगे ।।
सुना अयोध्या में बापू अब.....

गाँव-गाँव में होती चर्चा , सजी अयोध्या नगरी है ।
किसी हाथ में कन्नी बसुली , किसी शीश पर गगरी है ।।
राम सिया मय हुई अयोध्या , हम भी देखन जायेंगे ।
मैं भी दर्शन करना चाहूँ .....

हस्त शिल्प के कारीगर ने , प्रभु राम छवि उकेरी है ।
उसे देखने में सब कहते , लेकिन थोडा देरी है ।।
मंत्रो उच्चारण से उसमे , प्राण बिठाये जायेंगे ।
मैं भी दर्शन करना चाहूँ ....

नल-नील सी लगी है सेना , राम लला के दरवाजे ।
भक्त भुला बैठे अपनो को , राम सिया शरण विराजे ।।
राम काज सब ही अब करके , धन्य सभी हो जायेंगे ।
मैं भी दर्शन करना चाहूँ ....

राम-नाम जो मिश्री चख ले , उसे भूख प्यास न लगती ।
कोई भी फिर नब्ज़ दबा लो , फिर पीर नहीं सुन उठती ।।
पूछो उन भक्तों से कैसे , सोहर गाये जायेंगे ।।
मैं भी दर्शन करना चाहूँ ....

सुना अयोध्या में बापू अब , राम-सिया जी आयेंगे ।
मैं भी दर्शन करना चाहू , आप मुझे ले जायेंगे ।।

३०/१२/२०२३     -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR सुना अयोध्या में बापू अब , राम-सिया जी आयेंगे ।

मैं भी दर्शन करना चाहू , आप मुझे ले जायेंगे ।।

सुना अयोध्या में बापू अब.....


गाँव-गाँव म

अदनासा-

विडियो सौजन्य एवं हार्दिक आभार 💐🌹🙏😊🇮🇳🇮🇳https://www.instagram.com/reel/C0FOK7vh4Vg/?igshid=ODhhZWM5NmIwOQ== #भारत #बापू #गांधी #महात्मा मोहन #Instagram #Facebook #हिंदी #अहिंसा #मोहनदास #अदनासा

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Ajay

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :- वह बतलाते हैं धर्म हमें , अब जिनका कोई धर्म नहीं । खेल रहे हैं खूनी होली , क्या कहता उनका कर्म नहीं ।। वह बतलाते हैं धर्म हमें... #कविता

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गीत :-

वह बतलाते हैं धर्म हमें , अब जिनका कोई धर्म नहीं ।
खेल रहे हैं खूनी होली , क्या कहता उनका कर्म नहीं ।।
वह बतलाते हैं धर्म हमें....

कोई बापू बन बैठा तो , कोई चाचा बन बैठा है ।
दीदी भैया के खेलों में , कोई बेटा बन बैठा है ।।
समय समय पर देखा हमने , सब अपना रिश्ता बतलाते ।
ऐसे रिश्तों में अब तक तो, सुन हमने देखा मर्म नहीं ।।
वह बतलाते है धर्म हमें ....

भूखी प्यासी जनता सारी , बिलख रही है गली-गली में ।
इधर-उधर बिखरे पर सारे , तितली बे-सुद पड़ी जमीं में ।।
सभी अट्टहस कर ढाढस दें , लो यह पैसे रकम बड़ी है ।
ऐसा अब इनको कहने में , सुन लो अब आती शर्म नही ।।
वह बतलाते है धर्म हमें ....

कोई हिन्दू-हिन्दू करता , कोई मुस्लिम-मुस्लिम करता ।
लेकिन असली पहचान यहाँ , वह धन दौलत से है ढकता ।।
भेद बताकर ऊँच-नीच का , वह दूर सभी से है रहता ।
पर इनके ऐसे भाषण से , किसका होता खूँ गर्म नही ।।
वह बतलाते है धर्म हमें .....

जीवन के इस रेस कोर्स में , है यही यहाँ चलने वाला ।
झूठा स्वार्थी मक्कारी  से , अब कौन यहाँ लड़ने वाला ।।
आवाज उठी उस कोने से , यह बाबा है चलने वाला ।
 सुन जिसकी आज दहाड़ों में , तो होता लहजा नर्म नही ।।

०४/११/२०२३       -      महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :-


वह बतलाते हैं धर्म हमें , अब जिनका कोई धर्म नहीं ।

खेल रहे हैं खूनी होली , क्या कहता उनका कर्म नहीं ।।

वह बतलाते हैं धर्म हमें...

DR. LAVKESH GANDHI

बापू # # मानवता के रक्षक बापू #

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :- बच्चों का यह खेल , खींच लाता है बचपन । देख इन्हें अब आज , याद आता वह जीवन ।। बच्चों का यह खेल ... #कविता

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गीत :-
बच्चों का यह खेल , खींच लाता है बचपन ।
देख इन्हें अब आज , याद आता वह जीवन ।।
बच्चों का यह खेल ...

वह लम्बा परिवार , और छोटा सा भीतर ।
लड़ते हम सब संग , जैसे बाज औ तीतर ।।
हो जाएँ जब तंग , छुपे फिर माँ के आँचल ।
छोटी सी हो बात , मगर हो जाती अनबन ।।
बच्चों का यह खेल ...।

आज नही है पास , हमारे दिन वह सुंदर ।
आते घर जब घूम , बने रहते थे बन्दर ।।
बापू देते डाट , मातु से होती ठन-ठन ।
यह बालक नादान , अभी हैं ये कोमल मन ।
बच्चों का यह खेल ...।

खेलों में ही बीत , सदा जाता था वह दिन ।
कभी नही थी सोच , काल क्या हो किसके बिन ।।
बस इतना था याद , यही होगा नवजीवन ।
छू कर माँ के पाँव , सदा करता जो वंदन ।।

बच्चों का यह खेल , खींच लाता है बचपन ।
देख इन्हें अब आज , याद आता वह जीवन ।।


०६/१०/२०२३     -     महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :-


बच्चों का यह खेल , खींच लाता है बचपन ।

देख इन्हें अब आज , याद आता वह जीवन ।।

बच्चों का यह खेल ...
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