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Nisheeth pandey
प्रिये सावन में तुम बरिस बन कर आना, बहती हँवा में शीतलता समा कर आना ..... क्षण क्षण बदल रही हवा दिशा अपनी , प्रिय भूल नहीं तुम मुझको जाना.... नहीं वह हसीन अब वो राते, जिसमें थी बातें झूलती, झूल- झूल कर होती थी मतवाली रातें ....... याद तुम्हारी जब आती है, पुनः घूम कर आता है ताना बाना..... माना पहले वाला बहारें रहा नहीं अब, बदल गया है संसार हमारा अब ..... रंग रूप का इठलाना इतराना रहा अब नहीं, सुनहरी हवा सा मन दिखता नहीं ....... अब न सावन झूला झूलते , न कोयल कोई गीत सुनाती.... सुनो न , फिर जेहन में घुलने का ढूंढ लो बहाना, प्रिये कहना नहीं , करना नहीं मूसलाधार बारिश का बहाना ....... अब रात क्या दिन भी लगता अंधेरा, तुम नहीं ,हर पहर में लगता व्याकुल मन.... तिनका तिनका मन रसिया जल रहा, प्रिय मेरी ,भूल गई प्रीत की कसमें क्या निभानी ....... समय हर समय बदल रही धूप की छवि में , प्रिये भूला नहीं तुम्हारा मोहक मुस्कुराना ..... हर छन हर रंग बिखेड़ना दिल के कैनवास में, प्रिये अबकी सावन में तुम फिर आ जाना..... #निशीथ ©Nisheeth pandey प्रिये सावन में तुम बरिस बन कर आना, बहती हँवा में शीतलता समा कर आना ..... क्षण क्षण बदल रही हवा दिशा अपनी , प्रिय भूल नहीं तुम मुझको जान
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
चित्र-चिंतन :- कुण्डलिया सावन में झूला पड़ा , यमुना तट के पास । राधा मोहन झूलते , तन मन में उल्लास ।। तन मन में उल्लास , बासुरी कृष्ण बजाते । सुनकर सारे जीव , पास उनके आ जाते ।। राधा होकर मग्न , निहारें जग मन भावन । खिले हृदय में पुष्प , अनूठा आया सावन ।। ०८/०९/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR चित्र-चिंतन :- कुण्डलिया सावन में झूला पड़ा , यमुना तट के पास । राधा मोहन झूलते , तन मन में उल्लास ।। तन मन में उल्लास , बासुरी कृष्ण बजा
A.D. Naruka
जिन्होनें घर बनाने के लिए अपने आंगन के पेड़ काट दिए | वहां आज झूला झूलने के लिए पेड़ ढूंढ रहे हैं || ©A.D. Naruka #mela जिन्होनें घर बनाने के लिए अपने आंगन के पेड़ काट दिए वहां आज झूला झूलने के लिए पेड़ ढूंढ रहे हैं #adnaruka #Sahar #topwriter #witers
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
कुण्ड़लिया छन्द सावन की चलने लगी , सुंदर देख बयार । झूला झूलन को चली , आज सखी जब चार ।। आज सखी जब चार , बैठी सुनों हिंडोला । गाये वह मल्हार , गीत में था जो रोला ।। करके ऊँची पेंग , देखती घर का आँगन । ले सबका मन मोह , देख लो सुंदर सावन ।। ११/०८/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR सावन की चलने लगी , सुंदर देख बयार । झूला झूलन को चली , आज सखी जब चार ।। आज सखी जब चार , बैठी सुनों हिंडोला । गाये वह मल्हार , गीत में था जो
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
गीत :- मैं भी झूला झूल रहा हूँ देखो प्यारी साँसों का । जानूँ ना ये कब टूटेगा , धागा मेरी साँसों का ।। मैं भी झूला झूल रहा हूँ ... ऊपर बैठा करे तमाशा , तोड़े निशिदिन हर आशा । जाने उनकी मर्जी क्या है , क्या है उनकी परिभाषा ।। क्या समझूँ मैं आज यहाँ पर , उसके आज इशारों का । मैं भी झूला झूल रहा हूँ ... बैठा-बैठा चिंतन करता , किस माप दण्ड़ पर रोका । मिल जाता तो कहता पीड़ा , क्यों इस तन को है रोका ।। हर कर प्राण गिरधर दो मुक्ति , याद करो उन वचनों का मैं भी झूला झूल रहा हूँ .... सच की राह दिखाया तुमने , लीलाओं की भाषा से ।। तोड़ा मोड़ा और पिरोया , अपनी ही जिज्ञासा से ।। हमने तेरी बातें मानी , त्याग किया अभिलाषों का । फिर भी झूला झूल रहा हूँ ... जब मैं तुझसे भाग रहा था , तेरी दुनिया में आगे । फिर भी तू मिल जाता ही था , राहों में हमसे आगे ।। आज बात क्या भूल गये हो , प्रयोग उन अधिकारों का । मैं भी झूला झूल रहा हूँ .... मैं भी झूला झूल रहा हूँ ,देखो प्यारी साँसों का । जानूँ ना ये कब टूटेगा ,धागा मेरी साँसों का ।। ३१/०७/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :- मैं भी झूला झूल रहा हूँ देखो प्यारी साँसों का । जानूँ ना ये कब टूटेगा , धागा मेरी साँसों का ।। मैं भी झूला झूल रहा हूँ ... ऊपर बैठ