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अशोक द्विवेदी "दिव्य"
सभ्य दुनिया की असभ्यता यही है कि, वो हर लोग के बीच रिश्ता ढूंढ़ता है । #सभ्य #समाज
Geeta Sharma pranay
ये तेरी जिंदगी नहीं, तेरी साँसों को कम करती मौत हैं. क्यों तू कहना नही मानता,, तेरी जिंदगी से मेरी जिंदगी को जोड़ रखा हैं मैने,,, ये सिर्फ तुझे ही नहीं,, पल-पल मुझे भी मारती हैं ये भले ही तुझे आज सकून दे पर! नहीं, ये इसके साथ मेरे प्यार, विश्वास को हर पल एक नई मौत देती हैं और तुम सभ्य होकर ये नादानी करते हों,,, शोक रखना हैं तो अपनी खुद्दारी का रख,, जो तुझे आस्माँ की बुलंदियों पर खीच कर ले जाए.... बर्बाद करने के लिए दुनिया आगे आ जाएगी,, पर! सवाँरने के लिए इनके ही कदम पीछे होगें,, ये तेरी जिंदगी नहीं हैं,, तेरे साथ मेरे प्यार की भी मौत हैं.. गीता शर्मा प्रणय #नादानी#सभ्य
Lallitt siingh
नहीं बनना मुझे गालिब ना रसखान बनना हैं, सियासत करके भी नहीं वक्त बर्बाद करना हैं, थमा दो हाथ जो अपना तुम मुझको हथेली में, तुम्हें पा करके मुझको सिर्फ सभ्य इंसान बनना हैं! सभ्य इंसान
सभ्य इंसान
read moreरघुराम
ऐसे कई लोग हैं जो शरीफ मान लेते हैं अपने को। पर अपने भावों से नाको तिल्ला कर डालते हैं यारो को।। गली गली घूमा करते,तन पर ,रख वस्त्र झीना। फब्तियों का शिकार बना लेते वो स्वयं अपने आप को।। फब्तियों के चोट से जब दिल ए दर्द होता उनको। झल्ला कर नाराजगी झटकते यारो को।। यारा,तुमने यह क्या कह डाला,ना कहते तो क्या हो जाते। पर उनके शेख चिल्ली यारा,रहते हरदम शेखी बघारने को।। यारो,ईसलिय देव यह कहता है,रहो हरदम शालीन और सभ्य खेल कूद और मस्ती से कभी ना करो वूमिल अपने छवि को।। ©Deoprakash Arya #AprilFool सभ्य बनो।
#AprilFool सभ्य बनो।
read moreपूर्वार्थ
वाह रे सभ्य समाज समय पुराना था तन ढँकने को कपड़े न थे, फिर भी लोग तन ढँकने का,प्रयास करते थे । आज कपड़ों के भंडार हैं,फिर भी तन दिखाने का प्रयास करते हैं,समाज सभ्य जो हो गया हैं । समय पुराना था, आवागमन,के साधन कम थे। फिर भी लोग परिजनों से,मिला करते थे। आज आवागमन के,साधनों की भरमार है। फिर भी लोग न मिलने के,बहाने बनाते हैं । समाज सभ्य जो हो गया हैं । समय पुराना था,घर की बेटी, पूरे गाँव की बेटी होती थी। आज की बेटी ही पड़ोसी से ही असुरक्षित हैं । समाज सभ्य जो हो गया हैं । समय पुराना था, लोग, नगर-मोहल्ले के बुजुर्गों का,हालचाल पूछते थे । आज माँ-बाप तक को,वृद्धाश्रम में डाल देते हैं । समाज सभ्य जो हो गया हैं । समय पुराना था,खिलौनों की कमी थी । फिर भी मोहल्ले भर के बच्चों के,साथ खेला करते थे । आज खिलौनों की भरमार है,,पर बच्चे मोबाइल की जकड़ में बंद हैं । समाज सभ्य जो हो गया हैं । समय पुराना था,गली-मोहल्ले के पशुओं तक को रोटी दी जाती थी ।, आज पड़ोसी के बच्चे भी,भूखे सो जाते हैं । समाज सभ्य जो हो गया हैं । समय पुराना था,नगर-मोहल्ले मे आए अपरिचित का भी पूरा,परिचय पूछ लेते थे । आज तो पड़ोसी के घर,आए अतिथि का नाम भी,नहीं पूछते । समाज सभ्य जो हो गया हैं । वाह रे सभ्य समाज ©पूर्वार्थ # वाह रे सभ्य समाज
# वाह रे सभ्य समाज #Poetry
read moreArchana pandey
"धर्म और मर्यादा" हमपर बोझ नहीं हमारा सुरक्षा कवच हैं..... जो हमारी 'प्रथम शत्रु' हमारी ही मनोवृत्तियों से हमारी रक्षा करती हैं... सभ्य बनें सुरक्षित रहें🙏 अर्चना'अनुपमक्रान्ति' ©Archana pandey सभ्य रहें सुरक्षित बनें #Navraatra
सभ्य रहें सुरक्षित बनें #Navraatra #विचार
read moreAnamika
सभ्य हूं , इसलिए छोड़ दिया असभ्य होता, तो कह दिया होता। #सभ्य #असभ्य #लगाव #जिद्द #तूलिका
Rajesh rajak
जिंदगी आपकी खतरे में है,आपको घर के अंदर रहना है इसलिए पुलिस अपनी जान जोखिम में डालकर सड़कों पर खड़ी है,और आप झुंड बनाकर सड़कों पर घूमने निकल रहे हैं,जब पुलिस रोकती है तो आप बहस करते है धिक्कार है,आपकी ऐसी शिक्षा पर ऐसी संस्कृति पर की आपको घर के अंदर रखने के लिए पुलिस को रोड पर खड़ा होना पड़े,और जब आपको समझाया जाए तो पुलिस से ही उलझ रहे हो,जला दो अपनी डिग्रियां, छोड़ दो अपनी सभ्य समाज की दुहाई देना,तुम से अच्छे बो अनपढ़ गरीब लोग है जिनहोंने एक बार सुना की कोई बीमारी फैली है और उसकी सिर्फ एक ही दवा है कि हमें घर से नहीं निकालना और बो घर से निकल भी नहीं रहे,पर पढ़े लिखे लोग कहते हैं हम बोर हो गए इसलिए ग्रुप में टहलने,निकले हैं,मुझे तो शर्म आती है ऐसे लोगो पर उनकी सोच पर, हे भगवान इन मूर्खो को सद्बुद्धि दे। सभ्य समाज की असभ्य सोच,
सभ्य समाज की असभ्य सोच,
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