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Chintoo Choubey
जग के नाटक देखे ऐसे, ऐसे- ऐसे,जैसे-तैसे, हर पल देखे भिन्न-भिन्न से, कुछ नखराले कुछ निराले, पर हर एक मुखौटा ऐसा ऐसा - ऐसा, जैसा तैसा, कुछ की भूलभुलैया बातें, कुछ की गोलमोल सी बातें, कुछ पर ऐसा ढोंग धतूरा, कुछ पर खाली नीम-करेला, जग के नाटक देखे ऐसे, ऐसे-ऐसे, जैसे-जैसे, ढोंग का माखौल चढ़ा है, उस पर शहद का लेप चढ़ा है, प्यार प्रेम की बात नहीं है, बेईमानों की सरकार बड़ी है, उस पर करते तमाशा ऐसा, ऐसा-ऐसा जैसा-तैसा, एक और बात,जरा ध्यान से सुनना, ये जो करते अपनापन, नहीं है उसमें जरा भी दम, खूब रोते गाते आएंगे, अपनी अपनी ही गाएंगे, सावधान! बचना ऐसे लोगों से, कैसे लोगों से? ऐसे-ऐसे लोगों से, जैसे-तैसे लोगों से, धन्यवाद! जग के नाटक
जग के नाटक
read moreYashveer Singh
ताउम्र उसने मुझे यू रिसालों में रख्खा जैसे वक्त ने सदियों को सालो में रख्खा अपनी खूबी की ओर देता कितनी तहरीरें मैं उसने क्यू जुगनुओं को उजालो में रख्खा राज़दार था जो बच गया उसके फरेब से वरना पूरे शहर को उसने चालो में रख्खा उम्मीदे तोड़ लाई कुछ गुलाब जिंदगी के फिर मेरे ख्वाबो ने सजाकर बालो में रख्खा ओर क्या सबूत दु अपनी हालते बेबसी के हम मुफ़लिसों ने प्यास को भी प्यालो में रख्खा पतंगों की मानिद ख़ाक हो जाएगा तू भी यश क्या मिलन भला क्या विसालो में रख्खा।।।। रिसाले ...पत्रिका विसाल... मिलन
रिसाले ...पत्रिका विसाल... मिलन
read moreअज़नबी किताब
नाटक.. रंगमंच... कलाकार... कला... दर्शक.. कुछ ऐसा हुआ, में रंगमंच पे खड़ी थी, और मेरी कला मेरा हाथ थामे | दर्शक मेरी कला से मुझे पहचानते थे.. क्या खूब कला थी, खुदा की देख हुआ करती थी | एक बार बोली बात, में जमी को ख़त्म हो ने पर भी निभाती थी, कला थी.. वचन निभाने की, नाटक बन गयी.. रंगमंच पे उस खुदा के, में आज एक कटपुतली बन गयी... वचन निभाती नहीं, ऐसा सुना है मेने, दर्शकों से | क्या कहु, कला खो गयी, पर ये कला उनके लिए कायम है, जो सही में आज भी वचन को समझते है | कला खुदा की देन होती है, खुदा भी ख़ुश होते होंगे मेरे वचन ना निभाने से.. -अज़नबी किताब नाटक..
नाटक..
read moreArora PR
स्वप्नलोको के प्रलोबन मुझे कभी सममोहित नहीं कर सकते क्योकि मैं हर स्वप्न कोबन्द आँखों का नाटक ही समझता हूँ ©Arora PR नाटक
नाटक #कविता
read moreVrishali G
जीवनाच्या नाटकात सहभाग सगळ्यांचा असतो पण आपली भुमिका नाही वठली तर सारा तमाशा होऊन जातो नाटक
नाटक
read moreBabli BhatiBaisla
झूठे और ओछे मक्कार महात्मा को कोई नहीं पूछता काले पड़ गए मैले मनको को कोई नहीं पूजता आर्यो की धरती पर शास्त्रों का ऊंचा स्थान है भारत मां के शास्त्रियों की विश्व में अलग पहचान है लाल बहादुर शास्त्री हो या धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री दोनों ने साबित कर दिखाया गरीबी नहीं पिछाड़ती महानता में पिछड़ जाते हैं धनाढ्य भी नीयत से बहुत मूर्ख लगते हैं भूख हड़ताल का नाटक करते हष्ट-पुष्ट काटा है लम्बा सफ़र आंखें मूंद कर अनपढ बहुत थे पढ़ कर समझ गए सभी जयचंद और शकुनि कौन थे बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla नाटक
नाटक #शायरी
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