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Jiya
"खूब लड़ी मर्दानी वो तो , झांसी वाली रानी थी।"
MS_HINDUSTANI
Haleema Ali
झाँसी की रानी वाह रे,,,! स्वतंत्रता दीवानी,, शत्रुओं के छक्का छुड़ा,, याद दिला दी उन्हें नानी,,, हलीमा✍ #princess Laxmi #खूब #लड़ी #Mardani #वो #तो #झाँसी #वाली #रानी #थी
गजेन्द्र द्विवेदी गिरीश
ओस भले ढंक लें भौतिक दृश्य पर मन के भाव तो मन से देखे जाते हैं। मैं तो देख पाता हूँ और तुम।। शुभ दिन। गिरीश पोएम
Ashish Penart
उम्मीद राह बना देती है हर पत्थर में, कभी कभी मंजिल दिखाती है जुगनू की रौशनी भी। आशीष पोएम
D.M Bhosale
मुजोर मुजोर झालीय नोकरशाही उन्मत्त झालेत बाबू कुणाचाच नाही राहिला यांच्यावरती काबू काम चिमूटभर त्याला लाच खिसाभर सर्वदूर पाहिले तरी कारभार लालफिती ढेकणागत गरिबांचे रक्त सारे पिती हक्काच्या कामापायी मारावे किती खेटे तेंव्हा कुठे ७/१२ सारखा एखादा कागद भेटे जाग्यावर नसते कुणीच मोकळे असतात टेबल काय बोलावे तर प्रत्येकावरती पुढाऱ्याचे लेबल शौचालयाच्या अनुदानासाठीही द्यावी लागते लाच कुणाचीच कशी नाही यांच्यावरती टाच स्वार्थासाठी साहेबाची भांडीकुंडी घाशी हरामी साल्यांची जिंदगी अशी कशी ~DMB पोएम
Anjali Jain
कल मर्दानी 2 फ़िल्म देखी, बहुत हिला देने वाली फ़िल्म है! पुरुष वर्ग का हर तबका, चाहे वह कोई साधारण युवक हो, चाहे पुलिस अफसर या फ़िर मीडिया रिपोर्टर, महिला के प्रति एक नकारात्मक, घृणित व ओछी सोच से भरा हुआ था! यहाँ एक बात ग़ौर करने लायक है कि युवक के घर की पृष्ठभूमि तो सोचनीय है लेकिन एक पुलिस अधिकारी और पत्रकार.. क्या अपने घर में वे अपनी पत्नी, बहिन, माता और पुत्री को देख कर भी यही सोच रखते होंगे? क्या उन सभी को वैसा ही जीवन जीना चाहिए जैसा उनका दृष्टिकोण था? पर्दे में रहकर, पत्थर की मूर्ति, जिसकी कोई संवेदना नहीं, कोई भावना नहीं, बस उनकी इच्छा नुसार चलती रहे, कोई आवाज नहीं, कोई इच्छा, आकांक्षा अपनी रख न पाए, क्या ऎसा हो सकता है? अपने आपको एक बेटा, एक पति, एक भाई और पिता के स्थान पर रख कर उन्हें देखे..... वह उन्हे केवल एक स्त्री, एक महिला के रूप में ही क्यों देखता है? #मर्दानी #30. 05.20