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Susheela Dhankhar

नारी....................!!!

जब वो चिखती है तो भी आवाज नहीं होती 
रोती है तो सिसकियाँ नहीं भरती
सह लेती है वो हर दर्द चुप रह कर 
पर पीठ पीछे अपनों की बुराई नहीं करती

©Susheela Dhankhar #नारी #शक्ति #सहनशीलता #माँ #औरत #मर्दानी #हिम्मत #nojohindi #Nojoto 

#feelings

Anjali Jain

#मर्दानी 330. 05.20

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हर बहिन, बेटी बड़ी होकर, विवाह कर जब नए घर में 
कदम रखेगी तो वहाँ का पुरुष भी सकारात्मक और सहयोगी रवैये वाला ही होगा तब हर बालिका का व्यक्तित्व इस स्वतंत्र, घुटन रहित व प्रेम भरे वातावरण में बहुत ही अच्छे ढंग से विकसित होगा और हमारा समाज पुरुषों की इस घटिया मनोवृत्ति से मुक्त होगा! निश्चय ही स्त्री - उत्पीड़न, बलात्कार, हिंसा आदि से मुक्ति मिलेगी पर.... शुरूआत हर महिला को अपने घर से ही करनी होगी!!!!
जय हिंद! वन्दे मातरम!! #मर्दानी #3#30. 05.20

Anjali Jain

#मर्दानी 230. 05.20

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क्या उनकी सोच, उनकी मानसिकता को बदलना नहीं चाहिए! और ये, घर की महिलाएँ ही चाहे तो, बदल सकती है! एक माँ अपने पुत्र में ऎसी भावना व व्यवहार को देखते ही समझाए, रोके! एक बहिन अपने भाई को ग़लत दिशा में मुड़ते देखते ही रोके, स्वयं के साथ भाई बुरा व्यवहार करता है अप शब्द का प्रयोग करता है हाथ उठाता है तो दृढ़ता से रोके, सामना करे, न कि डर कर या सहम कर उसे बढ़ावा दे!... क्योंकि बहिन का स्नेह उसे अवश्य सोचने समझने पर मजबूर करेगा! अपनी भाभी के प्रति भाई का व्यवहार व दृष्टिकोण अपमान जनक देखे तो भी उसे रोके! एक पुत्री अपने पिता को माँ के साथ दुर्व्यवहार करता देखे तो प्यार से रोके, पिता रुकेगा!
जब एक परिवार में ये सब सुधरेगा तो अवश्यमेव सभी परिवारों में और अंततः समाज में सुधार आएगा! जब हर पिता, पुत्र, भाई सही सोचेगा तो बाहर निकलने पर किसी भी बालिका, युवती और महिला को देखने पर उनके मन में गलत भावनाएँ पैदा नहीं होंगी! #मर्दानी #2#30. 05.20

Anjali Jain

#मर्दानी 30. 05.20

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कल मर्दानी 2 फ़िल्म देखी, बहुत हिला देने वाली फ़िल्म है! पुरुष वर्ग का हर तबका, चाहे वह कोई साधारण युवक हो, चाहे पुलिस अफसर या फ़िर मीडिया रिपोर्टर, महिला के प्रति एक नकारात्मक, घृणित व ओछी सोच से भरा हुआ था! यहाँ एक बात ग़ौर करने लायक है कि  युवक के घर की पृष्ठभूमि तो सोचनीय है लेकिन एक पुलिस अधिकारी और पत्रकार.. क्या अपने घर में वे अपनी पत्नी, बहिन, माता और पुत्री को देख कर भी यही सोच रखते होंगे? क्या उन सभी को वैसा ही जीवन जीना चाहिए जैसा उनका दृष्टिकोण था? पर्दे में रहकर, पत्थर की मूर्ति, जिसकी कोई संवेदना नहीं, कोई भावना नहीं, बस उनकी इच्छा नुसार चलती रहे, कोई आवाज नहीं, कोई इच्छा, आकांक्षा अपनी रख न पाए, क्या ऎसा हो सकता है?
अपने आपको एक बेटा, एक पति, एक भाई और पिता के स्थान पर रख कर उन्हें देखे..... वह उन्हे केवल एक स्त्री, एक महिला के रूप में ही क्यों देखता है? #मर्दानी #30. 05.20

Shivaay S Bhati🕉️🇮🇳

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। #Azaadi #Openpoetry

Anu Purohit

मैं अंश हूं #कविता

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मैं अंश हूं ...इस आर्यभूमि की पावन माटी का..
मैं वंश हूं..उस गौरवशाली परंपरा परिपाटी का..

जिसकी ममता ने ,नारायण को गोकुल में बांधा था
जिसके कोप ने, नीलकंठ महादेव शिव को साधा था 
जिसके शील के आगे, यम की मृत्यु भी हारी थी 
याद मुझे प्रतिपल वो ,सावित्री..वो यशोदा और भवानी थी।।

उस परंपरा से हूं मैं .. 
कितनी जीजा मां ने, शिवा जैसे शूरवीर  दिये
कितनी पन्नाओ ने देश की खातिर ..अपने बेटों के सर वार दिये।।

ये देश मेरा परिवेश मेरा 
जहां हुयी हांडा रानी .. मातृभूमि के हित में शीश चढ़ाकर ही मानी...
उस राजपूताने की शान धन्य पद्मावती रानी..
जो हारा ना तलवारो से ..जौहर  ज्वाला से हुआ पानी पानी।।

जब नाम वीरता का आया ..
वो पौरूष पर भारी थी ..
खूब लड़ी मर्दानी 
वह तो झांसी वाली रानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
अवंतिका.. दुर्गावती महारानी थी


है वंदन..है अभिनंदन... है नमन मेरा
ये गर्व मेरा .. अभिमान मेरा ..है नाज़ मेरा.

                    कि
मैं अंश हूं, इस आर्यभूमि की पावन माटी का..
मैं वंश हूं ,उस गौरवशाली परंपरा परिपाटी का..
"अनु" मैं अंश हूं

Saurav Das

#OpenPoetry#OpenPoetry#Challange#Shayari#poem ✍Ruchi ki kalam se✍ sabi khan Riya Hasda Vishal Thakur #कविता

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#OpenPoetry मर्दानी 

आज कुछ ऐसा दृश्य मैने देख आई 
वह जो पतली,नाटी-सी,हाँ-हाँ उसका भाई 
घर पर करता रहता अपनी बहुत बड़ाई 
घिनौना हरकत करते बहार ज़रा सी शर्म न आयी 
छेड़ रहा था उस बेटी को जिसका नहीं कोई भाई 
डर कर उससे घर को भागी दौड़ी आयी 
दरवाजा बन्द कर,तकीये से लिपट कर रोयी 
आवाज सुनकर माँ ने दरवाजा खट्खटाई 
माँ ने उसको समझाया,मूल बात वो बोल ना पाई 
सताने लगा था हर जगह वह बदमाश भाई 
अटल सहन के बाद उसमें क्रोध भर आयी 
अबकी बार न छोड़ने की उसको,कसम उसने खाई 
ताक रखा था उसने,कि अब जाके बहार आयी 
कोचिंग से वापस आते ही,अंधेरी गली आयी
क्या पता था उसको?वहीं छिपा था वह बदमाश भाई 
गली में दबोच लिया उसको, बड़े जोर से चिल्लाई 
न आया मदत के लिए कोई, लड़ रही थी वह अपनी लड़ाई 
कपड़े फ़ाड़े उसके,किसी तरह उसने अपनी इज़्ज़त बचाई 
झोली से निकाला छुरा,सीधे गले पे चलाई 
काट दिया गला, हिम्मत जुटाके दिखाई 
वाह रे बहना तुने क्या सबक है सिखाई 
नारी का सम्मान करो न कि उनसे लड़ाई 
उनको न क्रोधित करो मेरे जग के भाई
हर नारी में छिपा है वह मर्दानी लक्ष्मीबाई || #OpenPoetry#Nojoto#OpenPoetry#Challange#Shayari#Poem ✍Ruchi ki kalam se✍ sabi khan Riya Hasda Vishal Thakur

Rupam Rajbhar

झांसी वाली रानी रानी थी😍 #poatry #story#nojotohindi #विचार

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😍झांसी वाली रानी रानी थी😍
झाँसी की रानी (Jhansi Ki Rani) - सुभद्रा कुमारी चौहान (Subhadra Kumari Chauhan)
सिंहासन हिल उठे राजवंषों ने भृकुटी तनी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सब ने मन में ठनी थी.
चमक उठी सन सत्तावन में, यह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी.


कानपुर के नाना की मुह बोली बहन छब्बिली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वो संतान अकेली थी,
नाना के सॅंग पढ़ती थी वो नाना के सॅंग खेली थी
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी, उसकी यही सहेली थी.
वीर शिवाजी की गाथाएँ उसकी याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी.


लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वो स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना यह थे उसके प्रिय खिलवाड़.
महाराष्‍ट्रा-कुल-देवी उसकी भी आराध्या भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी.

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ बन आई रानी लक्ष्मी बाई झाँसी में,
राजमहल में बाजी बधाई खुशियाँ छायी झाँसी में,
सुघत बुंडेलों की विरूदावली-सी वो आई झाँसी में.
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी.

उदित हुआ सौभाग्या, मुदित महलों में उजियली च्छाई,
किंतु कालगती चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई है, विधि को भी नहीं दया आई.
निसंतान मारे राजाजी, रानी शोक-सामानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी.

बुझा दीप झाँसी का तब डॅल्लूसियी मान में हरसाया,
ऱाज्य हड़प करने का यह उसने अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौज भेज दुर्ग पर अपना झंडा फेहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज झाँसी आया.
अश्रुपुर्णा रानी ने देखा झाँसी हुई वीरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी.

अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की मॅयैया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब वा भारत आया,
डल्हौसि ने पैर पसारे, अब तो पलट गयी काया
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया.
रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महारानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी.

छीनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
क़ैद पेशवा था बिठुर में, हुआ नागपुर का भी घाट,
ऊदैपुर, तंजोर, सतारा, कर्नाटक की कौन बिसात?
जबकि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात.
बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी.

रानी रोई रनवासों में, बेगम गुम सी थी बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छपते थे अँग्रेज़ों के अख़बार,
"नागपुर के ज़ेवर ले लो, लखनऊ के लो नौलख हार".
यों पर्दे की इज़्ज़त परदेसी के हाथ बीकानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी.

कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मान में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धूंधूपंत पेशवा जूटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चंडी का कर दिया प्रकट आहवान.
हुआ यज्ञा प्रारंभ उन्हे तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी.

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिंगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपुर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,
जबलपुर, कोल्हापुर, में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी.

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में काई वीरवर आए काम,
नाना धूंधूपंत, तांतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुंवर सिंह, सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम.
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो क़ुर्बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी.

इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दनों में,
लेफ्टिनेंट वॉकर आ पहुँचा, आगे बड़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुआ द्वंद्ध आसमानों में.
ज़ख़्मी होकर वॉकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी.

रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर, गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अँग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार.
अँग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी.

विजय मिली, पर अँग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुंहकी खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
यूद्ध क्षेत्र में ऊन दोनो ने भारी मार मचाई थी.
पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी.

तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किंतु सामने नाला आया, था वो संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये अवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार.
घायल होकर गिरी सिंहनी, उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी.

रानी गयी सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वो सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेईस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आई बन स्वतंत्रता-नारी थी,
दिखा गयी पथ, सीखा गयी हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी.

जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जागावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी.
तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी. झांसी वाली रानी रानी थी😍
#poatry
#story#nojotohindi

-SACHINKUMAR

खूब लड़ी मर्दानी वो तो तेरा स्मारक तू ही होगी,
 तू खुद अमिट निशानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह
 हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी
 वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

NickG

वीरमाता को नमन

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खूब लड़ी मर्दानी वो तो "समुन्द्र में उठती लहरे थी
जब वो तलवार उठाती थी
दुश्मन थर-थर-थर काँपते थे
युद्ध में तूफान ले आती थी
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी" वीरमाता को नमन
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