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Parasram Arora
देवलोक मे रहने वाकी दिव्य रूहे इर्षा करने कगी है धरती की भटकती हुई आत्माओ से क्यिंकि उन्हे पृथ्वी के सुख दुख से मिलने वाले आनद को चखने का अभी तक सौभाग्य मिला नहीं देवलोक के अपार ऐशो आराम के सुख भोगते भोगते अब वे ऊब चूके है और अगर ये स्थिति आगे भी कायम रही तो उनकी ऊब खुदकशी मे रूपात्रित हो सकती है तो तब तक मैं क्यो न करू कोशिश पृथ्वी की आत्माओं को ये समझने की कि धरती का सुख मिश्रित दुख. पीते रहे ताकि कभी ऊब से उनका सामना न हो सके और खुदकशी के लिए कभी मन न बनाना पडे ©Parasram Arora देवलोक कीं रूहे #FindingOneself
नारद
इंद्र हम किसी बाह्य परिहार्य या अपरिहार्य कारणों से देवलोक में शांति भंग नही होने देंगे ,यह हमारी भीषण प्रतिज्ञा है , बेटा मैं नारद हूँ ,ये आपका अहंकार है । अपन का काम ही लड़ाई झगड़े कराना है 😜😀 ©नारद देवलोक में आपका स्वागत है #RajniMeme
vishnu prabhakar singh
गाँव की धरती दूर मंदिर की छवि तुलसी की शीतलता नदी के तट पर स्मारक सहस खिंचती है विशेष प्रभाव में यह सहजता यह विशिष्टता मूल है ग्रामीण है। देवलोक।। #विप्रणु #yqdidi #yqbaba #inspiration #poetry
KHATOLA MUSIC
Motivational indar jeet group
जीवन दर्शन 🌹 " देवलोक " में अवस्थित उस " कल्पवृक्ष " की मान्यता सही नहीं है , जिसके नीचे बैठकर मनुष्य अपनी आवशकता पूर्ण करता है !.i. j ©motivationl indar jeet guru #जीवन दर्शन 🌹 " देवलोक " में अवस्थित उस " कल्पवृक्ष " की मान्यता सही नहीं है , जिसके नीचे बैठकर मनुष्य अपनी आवशकता पूर्ण करता है !.i. j
Uttam Dixit
तुम जो मिले तो जिंदगी, कितनी हसीन हो गयी, थी जो बिना नमक के, वो अब नमकीन हो गयी..!! साँसों पे अपनी मैंने, अब तेरा नाम लिख दिया, धड़कन भी तुमसे जुड़के, देखो ये रंगीन हो गयी..!! खुशियाँ ही खुशियाँ मेरे, जीवन में तुम हो लाई, ग़म की वजह तो खुद ही, अब ग़मगीन हो गयी..!! आदत तेरी ऐसी लगी, जैसे कि हो तुम जिंदगी, बाक़ी की सारी आदतें भी, तेरी शौक़ीन हो गयी..!! छूकर के तुमने मुझको, है मुकम्मल-सा कर दिया, तेरे आने से ये दुनिया मेरी, और बेहतरीन हो गयी..!! चेहरा तो अपना देखो, इक ग़जब का ही नूर है, तेरी खूबसूरती से, मेनका की भी तौहीन हो गयी..!! कि जिस दिन से तुम्हें मैंने, अपनी कलम बनाया है, "मतवाला" मेरी कलम भी तबसे, आफ़रीन हो गयी..!! (मेनका = देवलोक की सबसे खूबसूरत अप्सरा) (आफ़रीन = खूबसूरत)
Uttam Dixit
तुम जो मिले तो जिंदगी, कितनी हसीन हो गयी, थी जो बिना नमक के, वो अब नमकीन हो गयी..!! साँसों पे अपनी मैंने, अब तेरा नाम लिख दिया, धड़कन भी तुमसे जुड़के, देखो ये रंगीन हो गयी..!! खुशियाँ ही खुशियाँ मेरे, जीवन में तुम हो लाई, ग़म की वजह तो खुद ही, अब ग़मगीन हो गयी..!! आदत तेरी ऐसी लगी, जैसे कि हो तुम जिंदगी, बाक़ी की सारी आदतें भी, तेरी शौक़ीन हो गयी..!! छूकर के तुमने मुझको, है मुकम्मल-सा कर दिया, तेरे आने से ये दुनिया मेरी, और बेहतरीन हो गयी..!! चेहरा तो अपना देखो, इक ग़जब का ही नूर है, तेरी खूबसूरती से, मेनका की भी तौहीन हो गयी..!! कि जिस दिन से तुम्हें मैंने, अपनी कलम बनाया है, "मतवाला" मेरी कलम भी तबसे, आफ़रीन हो गयी..!! (मेनका = देवलोक की सबसे खूबसूरत अप्सरा) (आफ़रीन = खूबसूरत)
Dinesh Sharma Dinesh
पतित पावनी गंगा स्वर्ग से आती है धरा पर भागीरथी हो जाती है लेकिन गंगा यूं ही भागीरथी नहीं होती देवलोक से मृत्युलोक पर स्वयं नहीं उतरती करनी पड़ती है भगीरथ को तपस्या अस्तु उठो भगीरथ बनो तप धारण करो निश्चित है उतर आएगी यथार्थ के धरातल पर बन भागीरथी ©Dinesh Sharma Dinesh गंगा पतित पावनी गंगा स्वर्ग से आती है धरा पर भागीरथी हो जाती है लेकिन गंगा यूं ही भागीरथी नहीं होती
Dinesh Sharma Dinesh
Bazirao Ashish
असित - गिरि - समं स्यात् कज्जलं सिन्धु - पात्रे । सुर - तरुवर - शाखा लेखनी पत्रमुर्वी ॥ लिखति यदि गृहीत्वा शारदा सर्वकालं । तदपि तव गुणानामीश पारं न याति ॥ अर्थ: हे प्रभु (शिव जी)! यदि नीले या काले रङ्ग के समान पर्वतों को सागर रूपी दवात में घोलकर काली स्याही और देवलोक के कल्पवृक्ष की शाखाओं की लेखनी/कलम बनायी जाय/जा सके। यदि माँ शारदा/सरस्वती स्वयं अनन्तकाल तक आपके गुणों की व्याख्यान लिखती रहें तब भी आपके सम्पूर्ण गुणों का को नहीं लिखा जा सकता। अर्थात् आप आदि व अनन्त हैं। 🙏 ©Bazirao Ashish असित - गिरि - समं स्यात् कज्जलं सिन्धु - पात्रे । सुर - तरुवर - शाखा लेखनी पत्रमुर्वी ॥ लिखति यदि गृहीत्वा