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Neelam Modanwal
हाथ ख़ाली हैं तिरे शहर से जाते जाते हाथ ख़ाली हैं तिरे शहर से जाते जाते जान होती तो मिरी जान लुटाते जाते अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है उम्र गुज़री है तिरे शहर में आते जाते अब के मायूस हुआ यारों को रुख़्सत कर के जा रहे थे तो कोई ज़ख़्म लगाते जाते रेंगने की भी इजाज़त नहीं हम को वर्ना हम जिधर जाते नए फूल खिलाते जाते मैं तो जलते हुए सहराओं का इक पत्थर था तुम तो दरिया थे मिरी प्यास बुझाते जाते मुझ को रोने का सलीक़ा भी नहीं है शायद लोग हँसते हैं मुझे देख के आते जाते हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते| ©Neelam Modanwal #thepredator हाथ ख़ाली हैं तिरे शहर से जाते जाते हाथ ख़ाली हैं तिरे शहर से जाते जाते जान होती तो मिरी जान लुटाते जाते अब तो हर हाथ का पत्थ
K C
चेहरे पे मिरे ज़ुल्फ़ को फैलाओ किसी दिन क्या रोज़ गरजते हो बरस जाओ किसी दिन राज़ों की तरह उतरो मिरे दिल में किसी शब दस्तक पे मिरे हाथ की खुल जाओ किसी दिन पेड़ों की तरह हुस्न की बारिश में नहा लूँ बादल की तरह झूम के घर आओ किसी दिन ख़ुशबू की तरह गुज़रो मिरी दिल की गली से फूलों की तरह मुझ पे बिखर जाओ किसी दिन ©K C #hillroad चेहरे पे मिरे ज़ुल्फ़ को फैलाओ किसी दिन क्या रोज़ गरजते हो बरस जाओ किसी दिन राज़ों की तरह उतरो मिरे दिल में किसी शब दस्तक पे म
Shaarang Deepak
Shaarang Deepak
Shaarang Deepak
#NojotoVideoUpload मुफ़िलिसी (Mufilisi) Shayari/ Ghazal/ Poem by Qaisar-ul-Jafri (क़ैसर उल जाफ़री) || SOHBAT उजड़ी हुई बहार का मंज़र भी ले गई आँधी चली तो गाँव
Shaarang Deepak
Shaarang Deepak
Ankit Tripathi
shamawritesBebaak_शमीम अख्तर
shamawritesBebaak_शमीम अख्तर
हरेक इंसान भी यही और इंसानियत भी यहीं ,हो जाती है जाहिर हैवान की हैवानगी भी यहीं//१ होकर शादमा मिरी जान मुझसे मिल तो सही,के घुटकर मर जाती है सात पर्दों में दीवानगी भी यहीं//२ तमाम तसव्वुर को करके तर्क,तिरी याद को दिल में लिए,तभी तो छाई है सूरत पे बेचारगी भी यही//३ हाय रह गई आईने में अक्स की हकीकत भी धरी, के अक्सर छोड़ जाती है पेशानी पर हैरानगी भी यहीं//४ ऐ दुन्यावी खल्क जरा सलीके से पेश आ,के तुझे देखनी है जन्नत और जहन्नुम की कुशादगी भी यही//५ "शमा"यूंतो इंसानियत के मरहले दुश्वार ही गुजरे़, मगर वो तो गुजार रहे है आवारगी भी यही//६ #shamawritesBebaak ©shamawritesBebaak_शमीम अख्तर #sadak हरेक इंसान भी यही और इंसानियत भी यहीं,हो जाती है जाहिर हैवान की हैवानगी भी यहीं//१ होकर शादमा मिरी जान मुझसे मिल तो सही,के घुटकर मर