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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
पद्धरि छन्द तू खोज रहा , जिनका निवास । हर जन्म बना , उन्हीं का दास ।। तू भजे नाम , नित सिया राम । तन हृदय बने , उन्हीं का धाम ।। तू महाकाल , के शरण आज । रख शीश चरण , सफल बने काज ।। वह दीन-नाथ , हरे संताप । कर रहे मुक्त , मत कर विलाप ।। मन शुद्ध करो , तुम हो प्रवीण । बल आत्म भरो , मत समझ क्षीण ।। सब देख तुम्हें , मिलें प्रभु द्वार । वह निर्धन के , प्रति है उदार ।। निशिदिन जीवन , में है उतार । यह समझ सृष्टि , यही संचार ।। यह पंच तत्व , मिलकर विकास । जिससे मानव , नित करे आस ।। तू बन उदार , उत्तम विचार । जन-जन का अब , करो आभार ।। यह ज्ञान ज्योति , मान अनमोल । कुछ बोल आज , न हो अनबोल ।। २२/११/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR पद्धरि छन्द तू खोज रहा , जिनका निवास । हर जन्म बना , उन्हीं का दास ।। तू भजे नाम , नित सिया राम ।
Medha Bhardwaj
KP EDUCATION HD
KP NEWS HD कंवरपाल प्रजापति समाज ओबीसी for the ©KP NEWS HD इस पर्व का संबंध शिव जी से है और 'हर' शिव जी का नाम हैं इसलिए हरतालिका तीज अधिक उपयुक्त है. महिलाएं इस दिन निर्जल व्रत रखने का संकल्प लेती ह
Shubham Bhardwaj
पंचतत्व का मिला शरीरा,माया नचा रही है। भरमा रही है कैसे सबको, जलवा दिखा रही है।। पहचान तेरी क्या है,कुछ सोचकर तो देख बंदे। भोगी शरीर में फँसाकर, सबको मिटा रही है।। ©Shubham Bhardwaj #duniya #पंच #तत्व #का #मिला #शरीर
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल स्वार्थ का ही हर तरफ रिश्ता हुआ । जो खुशामद कर रहा चर्चा हुआ ।।१ आप तो मशहूर वह इंसान है । किस तलब से अब इधर आना हुआ ।२ नेह की तो आज गुम चाबी हुई । व्यर्थ चिंतन पंच का देखा हुआ ।।३ भूल बैठी राम को दुनिया यहाँ । हीर को ही जब खुदा माना हुआ ।।४ छोड़ दो बातें पुरानी आज तुम । इस सदीं में देख सब खोया हुआ ।।५ नाम ही अब बोलता है मान ले । इस जगत की रीति बतलाता हुआ ।।६ जंग रोधक आज कुछ पुर्जे मिले । दीमकों की चाल समझाता हुआ ।। २२/०८/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल स्वार्थ का ही हर तरफ रिश्ता हुआ । जो खुशामद कर रहा चर्चा हुआ ।।१ आप तो मशहूर वह इंसान है । किस तलब से अब इधर आना हुआ ।२
shekhar prasoon
काक चेष्टा, बको ध्यानं,स्वान निद्रा तथैव च । अल्पहारी, गृहत्यागी,विद्यार्थी पंच लक्षणं।। ▪️काक चेष्टा - कौए की तरह चेष्टा ▪️बको ध्यानं - बगुले की तरह ध्यान ▪️श्वाननिद्रा - श्वान की तरह नींद ▪️अल्पहारी कम भोजन करने वाला ▪️गृहत्यागी - घर से दूर रहने वाला ©shekhar prasoon विद्यार्थी पंच लक्षणं
Mamta Singh
सारा कुसूर तुम्हारा क्यूं की औरत का जन्म तुम्हारा कहानी _प्रथम भाग अनुशीर्षक में पढ़े.. ©Mamta Singh ग्राम कचहरी की सभा लगी हुई थी। समान्य दिनों की अपेक्षा आज भीड़ कुछ ज्यादा ही थी। पूरी सभा में सिर्फ पुरुष हीं थे। महिला सरपंच की जगह सरपंच
Shubham Bhardwaj
पंचतत्व से बना शरीरा,नश्वर सदा कहाये रे। फिर भी इंसा करता नादानी, इसको अपना बताये रे।। ©Shubham Bhardwaj #feelings #पंच #तत्व #से #बना #शरीर #नश्वर #सदा
Mili Saha
// मैरी कॉम // स्वयं की प्रतिभा और हुनर के दम पर इतिहास रचाया, भारत ही नहीं संपूर्ण नारी जाति को गौरवान्वित किया, मुफ़लिस भी रोक ना पाई जिसके बढ़ते हुए कदमों को, मैरी कॉम वो नाम, जिसने खुद अपना आसमां बनाया। आर्थिक रूप से कमज़ोर गरीब कृषक का था परिवार, जन्मी जहांँ ऐसी प्रतिभा, जिसे जाने आज पूरा संसार, किसी प्रकार होती थी गुजर-बसर खेतों में करके काम, कदम-कदम पे कितनी चुनौतियांँ फिर भी न मानी हार। पांँच भाई बहनों में सबसे बड़ी सभी का ख़्याल रखती, पढ़ाई के साथ खेतों में माता पिता का हाथ भी बंटाती, माता थी मांगते अक्हम कोम, पिता मांगते तोंपा कोम, जिनकी बेटी मांगते चुंगनेजंग मैरी कॉम बड़ी निडर थी। शिक्षा पर आर्थिक स्थिति को कभी होने न दिया हावी बचपन से ही खेल-कूद में रूचि, किरदार बड़ी मेधावी, ख़्वाब एथलीट बनने का फुटबॉल बखूबी खेला करती, दृढ़ विश्वास से ढूंँढ निकाली सुनहरी किस्मत की चाबी। मणिपुर में जन्मी बॉक्सिंग चैंपियन की अजब कहानी, एशियन गेम्स गोल्ड मेडलिस्ट का प्रभाव हुआ सुनामी, जिसने बॉक्सिंग प्रतियोगिताओं भाग कभी लिया नहीं, उसने बॉक्सिंग क्षेत्र में, अपना कैरियर बनाने की ठानी। ( पूरी कविता अनुशीर्षक में ) ©Mili Saha मैरी कॉम सामने खड़ी थी कई चुनौतियांँ माता-पिता नहीं तैयार, बॉक्सिंग पुरुषों का खेल महिला को कैसे करे स्वीकार, ऐसे में कैरियर बनाना था किसी
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
कुण्डलिया :- पानी आँखों का मरा , रही नही अब लाज । दिखे हमें मुर्दे यहाँ , किसको दूँ आवाज ।। किसको दूँ आवाज ,हमें वह पथ दिखलाओ । चला पतन के मार्ग , आज संसार बचाओ ।। जीव जन्तु इंसान , देख होती हैरानी । बहता उनका खून , यहाँ पर जैसे पानी ।। पानी के भी हो गये , देखो रूप अनेक । जो था जीवन के लिए , पंच तत्व मे एक ।। पंच तत्व में एक , सुनों वह अब भी शामिल । करतें हैं व्यापार , यहाँ जो हैं कुछ काबिल ।। रोता आज किसान , केसै हो अब किसानी । जहाँ न मिलता आज , सुनो पीने को पानी ।। २८/०४/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :- पानी आँखों का मरा , रही नही अब लाज । दिखे हमें मुर्दे यहाँ , किसको दूँ आवाज ।। किसको दूँ आवाज ,हमें वह पथ दिखलाओ । चला पतन