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Anuj gurjar101
"हर मोड़ पर शिक्षक मिला मुझे और मैं नजरअंदाज करता रहा, तेरी मोहब्बत में बर्बाद कर लिया मैनें खुद को मगर मेरी दिवानगी तो देख में फिर भी तूझसे ही प्यार करता रहा....! ©Anuj gurjar101 "हर मोड़ पर शिक्षक मिला मुझे और मैं नजरंदाज करता रहा, खुद को खुद ही बर्बाद कर लिया मैनें मगर मेरी दिवानगी तो देख में फिर भी तूझसे ही प्या
करुणेश विश्वकर्मा
गलती मेरी थी कि मैं तुझसे ही प्यार करता रहा। अपनी आंखों में तेरे इश्क़ का खुमार भरता रहा। पता चला कि वो खुश है किसी और को मनाने के लिए, मैं
GURU DAYAL YADAV "ATULYA"
Sunder
Madhav Jha
मुझे बेइंतिहा ऐसे ही जैसे तुझको है, ये उल्फतें ज़माने जुगाली ही कुछ ऐसे है मुझे ज़माने से भी हर ख़ून कतरा गिनाने से भी ऐसे है कुछ जल्द लिख के चाक पर सियाही काली ऐसे है अरे उन्हें क्या पता मेरी लिखाई ही ऐसी है, दो अशर्फियाँ से हो रोशन ज़माने के लिए तो हूँ मेरी हुनरबाज़ी भी ज़ालिम सबके लिए क़ातिल सी है दम जो भरते हैं और जो जी हुज़ूरी चाहे वो अजी उनको क्या पता मेरी मोहब्बत दुश्मनी सी जग में उनके लिखाई का और बेनवाज़ी का ऐसे है मेरी कलम ही ठिठोली कुछ दिमाग के सबके बचपने सी है फिर भी मुझे चाहत नहीं किसीकी, या ख़ुदा.... हे भगवन ! तेरा आशीर्वाद भी लौट जाए ऐसे ओ क्राइस्ट ! कम कर दे ये कालिख जो फैली कुछ ऐसे है लोगों के तासीर और तकरीर में अपनी अपनी आवाज़ से जादू अगर मिले तो वो खुला है सबके लिये मेरी ही सिर्फ आँखिन के नज़र सिर्फ उसकी ही हो न ऐसे है जैसे मैं सबका हूँ वैसे ही वो सबका है सतनाम वाहेगुरु मेरेया ओह गुरु वी ता शबद विच सबदा ऐसे है बता फिर मेरी मुहब्बत में ऐसा क्या ख़ास है ज़माने जो बात आजकल बढ़ी सी ऐसे है मरा हुआ हूँ और रोये ज़माना यार और प्यार मैं हूँ उसका तो क्यों बात ए क़लम आज बढ़ी सी ऐसे है । वसुधा की कुटुंबता ही मेरी असली प्रेम है, ये बात सबको समझनी सी ऐसे है बस इसलिए मुझे लाल करदो की मेरी लिखाई गिरा कर मुझे गुमनाम तुम करो जगवालों ने शायद पृष्ठभूमि पर ज़िन्दगी के बस कांट लिख संग किया हुआ ऐसे है है अगर ऐसे ही ऐसे से ही ऐसा है तो रहने दो ऐसे ही है मुझे उनसे बेइंतेहा मुहबबत ऐसे ही है चूमकर उनको रातों में बेपर्दा कर रात भर प्यार करता रह
Naitik Jangid
WorldDrugDay धूल चहेरे पर थी और मै पागल शीशे को साफ करता रहा, मैं उम्मीदें को साथ लेकर बैठा था तभी तो मैं उसकी तमाम बेवफाई सी हरकतो को हर बार माफ करता रहा, माफ करता रहा
Shashi Bhushan Mishra
कभी नाहक प्रलाप करता रहा, कभी बेज़ा किसी से डरता रहा, ज़िन्दगी ख़र्च दी रेज़ा रेज़ा, कहाँ मरना था कहाँ मरता रहा, कभी जो कर्ज़ ना लिया वो भी, तमाम उम्र उसे भरता रहा, उगा कीचड़ में भी कमल जैसा, कोई मिट्टी में दबके सड़ता रहा, मखमली गद्दों पर सुकूँ न मिला, जिग़र में मर्ज़ अश्क झरता रहा, अपनी नाकामियाँ छुपाकर ख़ुद, हुआ बेचैन ख़ुद से लड़ता रहा, तबीयत कैसे सुधरती 'गुंजन', हृदय में प्यास लिए फिरता रहा, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #प्रलाप करता रहा#