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Parasram Arora

धर्म औऱ शांति...... पर्यायवाची शब्द हैँ

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कोई  पुरखो को   पानी  पहुंचा  रहा हैँ  कोइ गंगाओ मे  पाप  धो रहा हैँ   कोई  पथर की प्रतिमाओं  के सामने  बिना भाव  सर  झुकाये बैठा हैँ 
धर्म  के  नाम पर  हज़ार  तरह  की मूढ़ताएं  प्रचलन मे हैँ धर्म से  संबंध तो   तब होता हैँ जब  आदमी  जागरण की  गुणवत्ता  हासिल कर लेता हैँ  
जहाँ  जागरण  होगा  वहा अशांति  कभी  हो ही नहीं सकती  
क्यों कि  जाग्रत  आदमी  विवेकी  होता हैँ      इर्षा  क्रोध  की  वृतियो  से  ऊपर  उठ  चुका होता हैँ औदेखा  जाय तो  धर्म औऱ  शांति पर्यायवाची  शब्द  हैँ धर्म  औऱ  शांति...... पर्यायवाची  शब्द हैँ

Parasram Arora

नश्वरता........

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जीवन  कुछ  नहीं हैँ 
बस  उसे  तो  रण  चुकाना   हैँ   इस   देह  का 
समय  और  काल  शाश्वत  हैँ 
नश्वर  फूल  अकेला हैँ इस  उपवन का 
विस्तीर्ण हैँ  सागर  की   सतह  तो  क्या  हुआ 
आदमी का  जीवन तो  बस  जैसे  तिनके का  
राग रंग  और  उत्स्व  की  महिमा   हैँ  कितनी 
जब  उतरा  आँगन मे  झोंका   उस. महा  मृत्यु का 
हैँ  भविष्य  कितना  बादल  पर  बैठी  उस  बूँद  का 
तपी  चट्टान पर  गिर जब वो  बन जाती  भाफ  
क्या  कह सकेंगे  हम  ये  पाप  था  उस  नश्वरता का ? नश्वरता........

Arora PR

नश्वरता #कविता

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ज्योति ਠਾਕੁਰ

अगर अब भी घमंड है झूठी काया पर,
तो एक रोज वहाँ भी जाओ ,जहाँ आज लाइन लगी है । #नश्वरता

Parasram Arora

पर्यायवाची...... #शायरी

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खून को पानी का पर्यायवाची  मत मान. लेना
अनुभन कितना भी कटु क्यों न हो वो.कभी कहानी नही बन सकताहै 

उस बसती मे  सच  बोलने का रिवाज  नही है
यहां कोई भी  आदमी  सच.को  झूठ बना कर पेश कर सकता है

ताउम्र अपना  वक़्त   दुसरो की भलाई मे  खर्च करता रहा वो
ऐसा आदमी कुछ पल का वक़्त भी अपने लिये निकाल नही   सकता है

©Parasram Arora पर्यायवाची......

Parasram Arora

नश्वरता की गलिया........

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अमरता  भी  आज  नश्वरता  की  गलियों  मे भटक रही हैँ 
शाश्वत  की  अमरबेल  जो   घर  घर  उगी थी 
आज वो  भी  सड़ने  लगी हैँ 
मरघट मे पुरषार्थ   की  अर्थी   जल  रही  हैँ 
बासंती चमन मे  क्यों  फिर से  आज 
मरुस्थलीय  पतझर  की घुसपेठ  हो रही हैँ 
जिस दिन  से  जन्मा हैँ  आदमी  उसी  दिन    से 
मरने  की  तैयारी  चल रही हैँ 
ये सजी संवरी   सी  शृंगारित  कब्रे  बाहे  पसारे  
आलिंगन  का  आवाहन   कर  रही हैँ नश्वरता  की गलिया........

Parasram Arora

स्वपन और नश्वरता.... #कविता

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टुकड़ो में बिखरा
सपना मेरी जिंदगी की  
 कभी भी सच्चाई क़ो व्यक्त
नही कर सकता
धरती पर बिखरी एक झरी   हुई
वृक्ष की  पत्ती भी जानती है
कि ये  उसका अंत है
पर मेरा स्वप्न अपनी नश्वरता  पर  कभी
ऊँगली नही उठा पाता

©Parasram Arora स्वपन  और नश्वरता....

manoj kumar jha"Manu"

धरती का दुःख हम नहीं समझेंगे तो कौन समझेगा। इसमें धरती के पर्यायवाची शब्द भी हैं।

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धरती का दुःख क्यों, समझते नहीं तुम।
धरा न रही अगर, तो रहोगे नहीं तुम।।

सुधा दे रही है वसुधा हमें तो,
भू को न बचाया, तो बचोगे नहीं तुम।।

"भूमि हमारी माता, हम पृथिवी के पुत्र"*
वेदवाणी कह रही, क्या कहोगे नहीं तुम।।
(स्वरचित)
* माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या:
(अथर्ववेद १२/१/१२)

 धरती का दुःख हम नहीं समझेंगे तो कौन समझेगा।
इसमें धरती के पर्यायवाची शब्द भी हैं।

Surbhi Sneha

#अमरता vs नश्वरता....

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प्रभुता की  दौड़ में, तू हार को प्रारस्थ कर 
उपभोक्ता की चाह में, तू जीत को सुनिश्चित कर....

विडम्बनाओं की ढेर में, तू खोल चच्छु बिम्ब को 
अवधारणाओ की फेर में, तू सत्य को प्रतिबिम्ब कर.... 

नश्वरता की उलझनो में, तू कर्म पथ निर्माण कर 
अमरता की सुलझनो में, तू स्वपन को साकार कर.... #अमरता vs नश्वरता....

लेखक ओझा

#autumn नश्वरता की चेतना

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