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Vijay Kumar उपनाम-"साखी"
ऊंची-ऊंची इमारतें है,शहरों की बड़ी-बड़ी दुकानें है,शहरों की छोटी-छोटी जानें है,शहरों की छोटे मन की बाते है,शहरों की बाहर से रखते वो वस्त्रों के उजाले पर भीतर से रखते वो हृदय काले कृष्णवर्ण की बहु खाने है,शहरों मे दिखावे के बहुत साये है,शहरों में ऊंची-ऊंची इमारतें है,शहरों की छोटे मन की रातें है,शहरों की ऊंची दुकानें,फीके पकवान है, रोती हुई मुलाकातें है,शहरों की नही है वहां पे कोई ताजी हवा, बस वहां पे है,गाड़ियों का धुंआ, सब प्रदूषण देन है,बस शहरों की कृत्रिम जीवन देन है,इन शहरों की डिब्बे पे डिब्बा ऐसे बने घरों में, कैसे पूरी हो किताब ख्वाबो की? एकल परिवार,तलाक के सूत्रधार, ऐसे बयां होती कहानी,घरों की नही है सुविधा खेलने-कूदने की यहां है बस सुविधा बंद कमरों की शहर से मेरे ग़ांव की क्या तुलना? यहां नही इंसानियत कोई शेरों की इनसे लाख अच्छा तो मेरा ग़ांव है, न दुःखता जहां नंगे पैर भी पांव है सब रहते परिवार में मिलजुलकर, कहीं भी अकेलेपन की न शाम है बड़ी-बड़ी भले यहां नही दीवारें है, पर घर के बड़े-बड़े यहां चौबारे है, गांवों में नही छतें पराये लोगों की गांवों में बनी छतें,अपने सायों की शहरों में है,रोशनी झूठे दिखावों की पड़ोसी को पड़ोसी नही जानता है, बसी हुई यहां,बस्ती साखी गैरों की नहीं कोई कीमत यहां भावनाओ की ये शहर क्या,ग़ांव की बराबरी करेंगे? ये धूल भी नही है,मेरे ग़ांव के पैरों की सादा जीवन-उच्च विचार है,गांवों में कोई दिखावटी स्वभाव न है,ग़ांव में ऊंची-ऊंची इमारतें भले न है,गांवों में पर बड़े मन की सौगाते है,मेरे गांवों मे कोई कृतिम छवि नही है,मेरे गांवों की सच्ची और साफ छवि है,मेरे गांवों की अंदर और बाहर दोनों साफ मन है, सही है,गांवों में बसता भारत मन है, आपका शहर आपको ही मुबारक, ग़ांव है,हमारी तिजोरी खुशियों की दिल से विजय गांव-शहर तुलना
गांव-शहर तुलना
read moreVijay Kumar उपनाम-"साखी"
મારું ગામડું ऊंची-ऊंची इमारतें है,शहरों की बड़ी-बड़ी दुकानें है,शहरों की छोटी-छोटी जानें है,शहरों की छोटे मन की बाते है,शहरों की बाहर से रखते वो वस्त्रों के उजाले पर भीतर से रखते वो हृदय काले कृष्णवर्ण की बहु खाने है,शहरों मे दिखावे के बहुत साये है,शहरों में ऊंची-ऊंची इमारतें है,शहरों की छोटे मन की रातें है,शहरों की ऊंची दुकानें,फीके पकवान है, रोती हुई मुलाकातें है,शहरों की नही है वहां पे कोई ताजी हवा, बस वहां पे है,गाड़ियों का धुंआ, सब प्रदूषण देन है,बस शहरों की कृत्रिम जीवन देन है,इन शहरों की डिब्बे पे डिब्बा ऐसे बने घरों में, कैसे पूरी हो किताब ख्वाबो की? एकल परिवार,तलाक के सूत्रधार, ऐसे बयां होती कहानी,घरों की नही है सुविधा खेलने-कूदने की यहां है बस सुविधा बंद कमरों की शहर से मेरे ग़ांव की क्या तुलना? यहां नही इंसानियत कोई शेरों की इनसे लाख अच्छा तो मेरा ग़ांव है, न दुःखता जहां नंगे पैर भी पांव है सब रहते परिवार में मिलजुलकर, कहीं भी अकेलेपन की न शाम है बड़ी-बड़ी भले यहां नही दीवारें है, पर घर के बड़े-बड़े यहां चौबारे है, गांवों में नही छतें पराये लोगों की गांवों में बनी छतें,अपने सायों की शहरों में है,रोशनी झूठे दिखावों की पड़ोसी को पड़ोसी नही जानता है, बसी हुई यहां,बस्ती साखी गैरों की नहीं कोई कीमत यहां भावनाओ की ये शहर क्या,ग़ांव की बराबरी करेंगे? ये धूल भी नही है,मेरे ग़ांव के पैरों की सादा जीवन-उच्च विचार है,गांवों में कोई दिखावटी स्वभाव न है,ग़ांव में ऊंची-ऊंची इमारतें भले न है,गांवों में पर बड़े मन की सौगाते है,मेरे गांवों मे कोई कृतिम छवि नही है,मेरे गांवों की सच्ची और साफ छवि है,मेरे गांवों की अंदर और बाहर दोनों साफ मन है, सही है,गांवों में बसता भारत मन है, आपका शहर आपको ही मुबारक, ग़ांव है,हमारी तिजोरी खुशियों की दिल से विजय ग़ांव-शहर तुलना
ग़ांव-शहर तुलना
read moresinger narendra charan jaisalmer
सुनो...गाँव अपने होते है, शहर तो होते भी पराये है। #गाँव #शहर
श्वेता पांडेय 'सांझ'
गांवो की बूढ़ी पगडंडी पर ना चलने का मलाल आज भी हैं इन शहर की सड़कों ने चलने का हुनर छीन लिया #गाँव #पगडंडी #शहर
Shivam Shiv
.... शहर की पक्की छतें गुफ्तगू करने लगी, गाँव जाकर पेड से कुछ छाँव लानी चाहिए...। 🍁 ©Shivam Shiv # गाँव और शहर।
# गाँव और शहर। #विचार
read moreRavindra Shukla
रैना बड़ी-बड़ी इमारतों गली-कूचों बाजारों में आदमी यहाँ ता-उम्र भागता ही रहता है सो जाते है गांव थक कर शाम होते ही शहर है कि रात भर जागता ही रहता है @रवीन्द्र #शहर #गाँव #जागना