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Anupama Jha
मैं तेरी कविता बनना चाहती थी शब्दों में तेरे, घुल मिल जाना चाहती थी पर लिख न पाया तू मुझे समझ न पाया तू मुझे तू बस एक बाब बनकर रह गया मेरी ज़िन्दगी का मैं तुझे पूरी किताब बनाना चाहती थी.... #कविता#किताब #YQdidi
Ajay Kumar Dwivedi
सोचता हूँ प्रियतम पर किताब लिख दूं मैं। मन की व्यथा लिखूँ उसपर हर राज लिख दूं मैं। देख कर मुखड़ा उसीका होती सुबह हर दिन मेरी। हूँ सोचता की चौदवीं का उसको चाँद लिख दूं मैं। उलझनों में लाख उलझा है मेरा जीवन तो क्या। साथ उसके कितना हूँ खुश ए आज लिख दूं मैं। हमसफर बनकर मेरा वो गुनगुनाता चल रहा। हूँ सोचता की आज उसपर साज लिख दूं मैं। दूर होकर भी वो मुझसे पास रहता है मेरे। सोचता हूँ कि हृदय की हर बात लिख दूं मैं। ख्वाब में भी वो मेरे और है हकीकत भी वहीं। हूँ सोचता उसको कवि का राग लिख दूं मैं। सोचता हूँ प्रियतम पर किताब लिख दूं मैं। मन की व्यथा लिखूँ उसपर हर राज लिख दूं मैं। अजय कुमार व्दिवेदी 04/11/2019 00:52:10 कविता सोचता हूँ प्रियतम पर किताब लिख दूं मैं।
कविता सोचता हूँ प्रियतम पर किताब लिख दूं मैं।
read moreCalmKrishna
किताब और तुम ! #तुम #किताब #कविता #Nojotohindi
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read moreShreshth
मेरे आंगन में पेड़ की झुरमुट में, न जाने कितने पंक्षी उछलते हैं। सारा दिन उसी दरख़्त की छांव में, न जाने गिलहरियों के कितने बच्चे मचलते है। जीवन में भविष्य की चिंताओं से मुक्त, वर्तमान में जीते हैं। कितना अच्छा लगता है जब वो नल से, टपकती हुई छोटी बूंद को पीते हैं। कभी पेड़ की डाल पर, बैठने को लड़ते हैं। और कभी–कभी धान के दानों को, पाने के लिए झगड़ते हैं। कोई अस्तित्व की इस जंग में, हार नहीं मानता है। और फिर, दोबारा लड़ने की ठानता है। इतने झगड़ों के बाद, वो फिर सहचर हैं। एकता के संदर्भ में, वो मानव से बेहतर हैं।। ©Shreshth #कविता मेरी किताब मेरे अल्फाज।
Dipin Tarbundiya
तुम पर लिखी एक किताब मैं रोज़ पढ़ता हूँ.. बस, एक आखिरी पन्ना छोड़कर मैं सब पढ़ता हूँ... तुम पर लिखी किताब...
तुम पर लिखी किताब... #Shayari
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