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Ashwani Dixit
मान सरोवर घूमते, जनेऊ धारी लोग। बियर से होता आचमन, मटन चिकन से भोग। मटन चिकन से भोग, भटूरे छोले खावें। दोपहर के बाद ही, अनशन करने जावें।। लगता है अब कुम्भ में, बनेंगे बाबा नागा। आंख मारकर सदन में, फिर हंसेंगे RAGA।। 'चरणदास संग्रह' भाग १ मान सरोवर घूमते, जनेऊ धारी लोग। बियर से होता आचमन, मटन चिकन से भोग। मटन चिकन से भोग, भटूरे छोले खावें। दोपहर के बाद ह
yogesh atmaram ambawale
जन्माला आल्यापासून चालू होते ते आयुष्य, नि समज आल्यापासून जगतो ते जीवन. आयुष्यातील कर्तव्य जेव्हा जास्त वाटू लागते, तेव्हा त्या कर्तव्याची व्यथा म्हणून जाणीव होऊ लागते. कर्तव्याला व्यथा म्हणणे चुकीचे असते, कारण आपल्या आई वडिलांनी त्यांचे कर्तव्य निभावले असते. त्यांनी ही जर कर्तव्याला व्यथा मानले असते तर आज आपले आयुष्य वेगळे असते. शिक्षण दिले,खूप मोठे केले,योग्य वयात येता लग्न ही लावून दिले. तेव्हा ती आई वडिलांची कथा होती त्यांनी केव्हाच तिला व्यथा मानली नव्हती. कथेला खरी सुरुवात लग्नानंतर होते, जिथे कमाई कमी नि खाणारे जास्त,म्हणून ती व्यथा वाटते. ह्या कथेतील मुख्य पात्र जरी आपण असलो तरी आपल्या आधी आई वडिलांनी ते पात्र रंगवलेले असते. त्यांनीच जर त्यांच्या जीवनातील कथेला व्यथा म्हटले असते, तर,आज ह्या कथेत आपले पात्रच नसते. अशीच ही जीवनाची एक कथा न संपणारी व्यथा आहे, जिथे कर्तव्यपूर्तीला व्यथा ही व्याख्या आहे. सुप्रभात मित्र आणि मैत्रिणीनों आजचा विषय आहे विषय :"जीवनाची एक कथा, न संपणारी व्यथा" #जीवनाचीव्यथा हा विषय Vishal Chaudhari यांचा आहे.
SANTU KUMAR
बदले बदले चेहरे सबके, रंग रबिरंगी बोली, अपने चाचा बुड्ढा नौजवान सबको हैप्पी होली। भांग का रंग जमा के चाचा सारा रा रा गाए ब्लू रंग में #रंजनमंगोलिया घूमे फगुवा संटू गाए बाल भी देखो रंग रंगीले हाथों में भी रंग है। कोई दूरो ताक रहा, कोई पाउवा चढ़ाए। दिल की यही अभिलाषा रही, संग अपनी वाली से थोड़ा, नैन चार कर लेगे। होली के हुड़दंग में देखो, बच्चे बूढ़े खुश है। चिकन,मटन, धुसका, पुआ सबमें प्रेम का रस है,,, शोर मचा है होली होली निकली सबकी टोली अपने चाचा बुड्ढा नौजवान सबको हैप्पी होली। कहीं सियासत जोर चढ़ी है कोई ग़म में रोए खूब तमाशा जमा हुआ है कमल फूल सब बोए हिन्दू मुस्लिम खूब जोर से हम तुम करने बैठे रंग मिलाने चले खून का एक लगे सब जैसे रंग मिटाए बैर दिलों के जीवन में ढंग बोए रंग गुलाबी बन के खुशियां हर चेहरे पे होए रंग गुलाल मलो गालों पे मीठी कर लो बोली अपने चाचा बुड्ढा नौजवान सबको हैप्पी होली। ✍️🙏❤️ SANTU KUMAR (MJMC) ©SANTU KUMAR बदले बदले चेहरे सबके, रंग रबिरंगी बोली, अपने चाचा बुड्ढा नौजवान सबको हैप्पी होली। भांग का रंग जमा के चाचा सारा रा रा गाए ब्लू रंग में #रंजन
Mahfuz nisar
क़ाफ़ी युग है बीत चुके। राहत के नाम पर फिर शुरू होगा एक बंदर बाँट, जहाँ गरीबों को लाइन में लगना होगा लोन की ख़ातिर, और रसूख वालों के घर पर पहुँच जाएगी उनके ज़रूरत के लायक रकम, गरीब किसानों की आत्महत्याओं का नया सिलसिला शुरू होगा, और विदेश निकल जाएंगे बड़े बड़े पैसे वाले चौकसी,माल्या और मोदी, कभी बीच सड़क पर तो कभी रेलवे ट्रैक पर लेटे लेटे भगवान की शरण में पहुँच जाते हैं दुखिये, और कोई अपनी गाड़ियों पर सिर्फ़ एक काग़ज़ लगा कर ढो लेता है लाखों के माल, खाने को नमक, चावल और मिर्च है उनकी थाली में, जिनके जलते हैं, खून और पसीने मुमालिक में, ब्रेड,बटर,मटन और दारू मौज़ूद है अब तक कलंदरों को झूझते देश की पामाली में। दो वक़्त की रोटी के कहीं लाले हैं, कहीं हर घर को टोकन से शराब बेचने वाले हैं, भला हज़ार देने भर से किसी का परिवार पल जाएगा क्या? शेखी बघारने जब आये कोई तुम्हारी चार दिवारी में, पूछना मालाओं से लदी गर्दन लिए आदमी से, उसके आज के दिनों में किये गए कामों के बारे में, हो सके तो दिलाना याद दिलासा-मक्कारी के, और बता देना चीख़ कर कि रखो अपनी वादों की पोटली,और निकल जाओ हम मज़दूरों के गलियों के मुहाने से, मेरे कई पुरखे पिछली बीमारी में हैं बीत चुके तो जाओ ढूँढो दूसरा कोई घर तुम, झूठे वादों से हम सभी हैं अब रूठ चुके, गुल के सारे फूल पत्ते हैं अब सूख चूके, देखो, सुनो, क़ाफ़ी युग है बीत चुके। जाओे बदलो ख़ुद को अब, देखो, सुनो, क़ाफ़ी युग है बीत चुके। ✍mahfuz nisar © क़ाफ़ी युग है बीत चुके। राहत के नाम पर फिर शुरू होगा एक बंदर बाँट, जहाँ गरीबों को लाइन में लगना होगा लोन की ख़ातिर, और रसूख वालों के घर प
shamawritesBebaak_शमीम अख्तर
Mahfuz nisar
शीर्षक::::वो युग है अब बीत चुके। राहत के नाम पर फिर शुरू होगा एक बंदर बाँट, जहाँ गरीबों को लाइन में लगना होगा लोन की ख़ातिर, और रसूख वालों के घर पर पहुँच जाएगी उनके ज़रूरत के लायक रकम, गरीब किसानों की आत्महत्याओं का नया सिलसिला शुरू होगा, और विदेश निकल जाएंगे बड़े बड़े पैसे वाले चौकसी,माल्या और मोदी, कभी बीच सड़क पर तो कभी रेलवे ट्रैक पर लेटे लेटे भगवान की शरण में पहुँच जाते हैं दुखिये, और कोई अपनी गाड़ियों पर सिर्फ़ एक काग़ज़ लगा कर ढो लेता है लाखों का माल, खाने को नमक,चूरा और मिर्च है उनकी थाली में, जिनके जलते हैं, खून और पसीने मुमालिक में, ब्रेड,बटर,मटन और दारू नसीब है अब तक, कलंदरों को मौत से झूझते देश की पामाली में। दो वक़्त की रोटी के कहीं लाले हैं, कहीं हर घर को टोकन से शराब बेचने वाले हैं, भला हज़ार देने भर से किसी का परिवार पल जाएगा क्या? जितना अनाज दे रहे हो चार लोगों के लिए अपने घर ले आओ,और पूछो घर वालों से इतने में महीने का चल जायेगा क्या? अब शेखी बघारने जब आये कोई तुम्हारी देहरी पर चाहे चार दिवारी में, पूछना मालाओं से लदी गर्दन लिए आदमी से, उसके जो बीत रहे इन काले दिनों में किये गए कामों के बारे में, हो सके तो दिलाना याद उसके दिये झूठे दिलासा और मक्कारी के, और फिर बता देना चीख़ कर कि रखो अपनी वादों की पोटली,और निकल जाओ हम मज़दूरों के गलियों के मुहाने से, मेरे कई भाई,बहन,माँ,बाप,बेटे बेटियां,पिछली बीमारी में हैं बीत चुके, तो जाओ ढूँढो दूसरा कोई घर अब तुम, झूठे वादों से हम सभी हैं अब रूठ चुके, हमारे गुल के तमाम फूल पत्ते हैं अब सूख चूके, जाओे बदलो ख़ुद को अब,देखो,सुनो, वो युग है अब बीत चुके। ✍mahfuz nisar © #Time शीर्षक::::वो युग है अब बीत चुके। राहत के नाम पर फिर शुरू होगा एक बंदर बाँट, जहाँ गरीबों को लाइन में लगना होगा लोन की ख़ातिर, और रसू