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Anamika
यूं तो रोज बदलती थी तह यादों की, एक फफूंदी न जाने कहां से उग आई.. #फफूंदी जब भी जी चाहे, नई दुनिया बसा लेते हैं लोग एक चेहरे पे कई चेहरे, लगा लेते हैं लोग(गीत)
Sheetal Agrawal
वो बोली जब भी जी चाहे चले आना मेरे ख्वाबों में। कि ख्वाबों के दरवाज़ों पे ताले नहीं होते।। वो बोली जब भी जी चाहे चले आना मेरे ख्वाबों में। कि ख्वाबों के दरवाज़ों पे ताले नहीं होते।।
Mayank Sharma
हम ना अजनबी हैं ना पराए हैं आप और हम एक रिश्ते के साए हैं जब भी जी चाहे महसूस कर लीजिएगा हम तो आपकी मुस्कुराहट में समाए हैं ©Mayank Sharma हम ना अजनबी हैं ना पराए हैं आप और हम एक रिश्ते के साए हैं जब भी जी चाहे महसूस कर लीजिएगा हम तो आपकी मुस्कुराहट में समाए हैं #Hamari_duniya
Pradeep Kumar
गीत के बोल : जाने वो क्या लोग थे, जिनको वफ़ा का पास था दूसरे के दिल पे क्या गुज़रेगी ये एहसास था अब हैं पत्थर के सनम, जिनको एहसास ना ग़म वो ज़
Pradeep Kumar
गीत के बोल : जाने वो क्या लोग थे, जिनको वफ़ा का पास था दूसरे के दिल पे क्या गुज़रेगी ये एहसास था अब हैं पत्थर के सनम, जिनको एहसास ना ग़म वो ज़माना अब कहाँ, जो अहल-ए-दिल को रास था अब तो मतलब के लिए नाम-ए-वफ़ा लेते हैं लोग जब भी जी चाहे, नई दुनिया बसा लेते हैं लोग एक चेहरे पे कई चेहरे, लगा लेते हैं लोग गीत के बोल : जाने वो क्या लोग थे, जिनको वफ़ा का पास था दूसरे के दिल पे क्या गुज़रेगी ये एहसास था अब हैं पत्थर के सनम, जिनको एहसास ना ग़म वो ज़
Seema Katoch
दिन पर दिन परत दर परत भारी हो रहा मुखौटा असली चेहरा अब थकने लगा/उबने लगा..... कब तक सहना होगा इसका बोझ? सच को झूठ से छुपाना होगा,, कब तक कागज के फूलों से आ रही है खुशबू कहना होगा,, कब तक? मन मे आता है उखाड़ दूँ/नोच दूँ कर दूँ आजाद और जी लूँ सिर्फ सच बनकर सांस ले सकूँ खुल कर...... लेकिन रोक लेता है हर बार ही तनहा होने का भय,, मुखौटों के जंगल में।। दिन पर दिन परत दर परत भारी हो रहा मुखौटा असली चेहरा अब थकने लगा/उबने लगा..... कब तक सहना होगा इसका बोझ? सच को झूठ से
अम्बुज बाजपेई"शिवम्"
बरस बीत गए पाए स्वतंत्रता, देश में अब गणतंत्र है। पर प्रश्न है मेरा सबसे क्या सच में हम स्वतंत्र हैं? यहां पहरे हैं आरक्षण के, प्रतिभाओं के कंधों पर। क्या मजाल कोई रोक लगा दे, काले गोरखधंधों पर। अंदर अंदर खोखला करता, कैसा परजीवी तंत्र है। प्रश्न है मेरा सबसे क्या सच में हम स्वतंत्र हैं? जिसका जब भी जी चाहे, राष्ट्र विरोध कर जाता हैं। पत्थर बाजों के हाथों, सैनिक यहां मर जाता है। मानवता को धिक्कारता, मानवाधिकार का षड़यंत्र हैं। प्रश्न है मेरा सबसे क्या सच में हम स्वतंत्र हैं? (शेष अनुशीर्षक में पढ़ें).. बरस बीत गए पाए स्वतंत्रता, देश में अब गणतंत्र है। पर प्रश्न है मेरा सबसे क्या सच में हम स्वतंत्र हैं? यहां पहरे हैं आरक्षण के, प्रतिभाओं के