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INDIA CORE NEWS
Ravendra
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ANIL KUMAR
आप ऐसे न हमसे गिला कीजिए जब भी मिलिए तो मिलके दुआ कीजिए जिंदगी चार दिन की है बस चाँदनी बेवज़ह भी कभी तो हँसा कीजिए साथ मिलके हैं चलते कहाँ ? लोग सब आप हमसे वफ़ा बस वफ़ा कीजिए बाद रोकर मिलेगा न कुछ फ़ायदा वक़्त का साथ हरदम किया कीजिए आप रोते रहे यूँ तो मिट जाओगे जिंदगी आप खुलके जिया कीजिए फूल काँटों में रहके ही फ़बता रहा दर्द को जिंदगी की दवा कीजिए जीत पक्की तुम्हारी है तय मान लो मुश्किलों से बड़ा हौंसला कीजिए अनिल कुमार 'निश्छल' बुंदेलखंड ©ANIL KUMAR #WoNazar सादर समीक्षार्थ प्रेषित #ग़ज़ल 1 212 212 212 212 आप ऐसे न हमसे गिला कीजिए जब भी मिलिए तो मिलके दुआ कीजिए जिंदगी चार दिन की है बस चाँ
ANIL KUMAR
ANIL KUMAR
जीवन है इक राग बसंती, रंगबिरंगा फ़ाग बसंती। याद बसंती,दाद बसंती, सतरंगी इमदाद बसंती।। सुख-दुःख जीवन के पहलू दो, मीठा-तीखा स्वाद रहे बस। दुनिया रूठे गर रूठे पर, अपनों का संग साथ रहे बस। सारी दुनिया एक तरफ़ है, एक तरफ़ परिवार हमारा। एक अमोल खज़ाना जग का,खिला-बसा संसार हमारा। हम सब कलियों का है प्यारा, ख़्वाब बसंती, बाग बसंती।। जीवन है इक राग बसंती........ मात-पिता इक नींव हमारे, भाई-बहना और सहारे। जीवन-नैया धीरे-धीरे, लग जाती है एक किनारे। मानव-जीवन एक रहे ना, रात कभी तो भोर हुई है। शेर बना है गली का कुत्ता,धूल कभी सिरमौर हुई है। वक्त किसे कब राजा कर दे,घात बसंती,नाद बसंती।। जीवन है इक राग बसंती........ रोना हरदम ठीक नहीं है, कौन भला है सुखी यहाँ। छोटी-छोटी बातों को ले, रहते अक्सर हैं दुःखी यहाँ। छोटी-छोटी खुशियाँ ढूँढो, और प्रभु का ध्यान धरो। जीवन हँसते-हँसते गुजरे,साथ प्रभु-गुणगान करो। भव-सागर से बंधन छूटे,वात बसंती,त्याग बसंती।। जीवन है इक राग बसंती........ अनिल कुमार ''निश्छल'' हमीरपुर, बुंदेलखंड उ०प्र० ©ANIL KUMAR #uskebina #अनिल #निश्छल #निश्छल जीवन है इक राग बसंती, रंगबिरंगा फ़ाग बसंती। याद बसंती,दाद बसंती, सतरंगी इमदाद बसंती।।
ANIL KUMAR
किस्मतें जब लिखीं वक्त ने सोचकर बदनसीबी हमारे ही हिस्से लिखी। दर्द इतना ख़ुदा दुश्मनों को न दे आब आँखों का फिर सूख जाए कहीं जिंदगी का अलग रुख़ हमेशा रहा हमनें माँगा कभी वो मिला ही नहीं दौर होता नहीं एक जैसा कभी मुश्किलों से अभी लड़ रहे हैं सनम अनिल कुमार निश्छल हमीरपुर बुंदेलखंड उ0प्र0 अनिल कुमार ''निश्छल'' ©ANIL KUMAR #DiyaSalaai किस्मतें जब लिखीं वक्त ने सोचकर बदनसीबी हमारे ही हिस्से लिखी। दर्द इतना ख़ुदा दुश्मनों को न दे आब आँखों का फिर सूख जाए कहीं
ANIL KUMAR
किस्मतें जब लिखीं वक्त ने सोचकर बदनसीबी हमारे ही हिस्से लिखी। दर्द इतना ख़ुदा दुश्मनों को न दे आब आँखों का फिर सूख जाए कहीं जिंदगी का अलग रुख़ हमेशा रहा हमनें माँगा कभी वो मिला ही नहीं दौर होता नहीं एक जैसा कभी मुश्किलों से अभी लड़ रहे हैं सनम अनिल कुमार निश्छल हमीरपुर बुंदेलखंड उ0प्र0 ©ANIL KUMAR किस्मतें जब लिखीं वक्त ने सोचकर बदनसीबी हमारे ही हिस्से लिखी। दर्द इतना ख़ुदा दुश्मनों को न दे आब आँखों का फिर सूख जाए कहीं जिंदगी