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Pawan k verma
।।नशा छोडिये।। नशा छोड़िये , नशा छोड़िये , नशा छोडिये, जीने की तरफ, रुख मोड़िये , रुख मोड़िये । किसका हुआ भला यहां,नशे ने किसकी जान बचाई है। चरस गांजा अफीम से हुआ कौन कब किसका भाई है ? हमने दुश्मन ही बनते देखे ,नशे में बिखरते रिश्ते देखे , इन बिखरे रिश्तो की लाज बचाने को तो नशा छोड़िये , नशा छोडिये, नशा छोड़िये, जीने की तरफ रुख मोड़िये , रुख मोड़िये । मां-बाप आस लगाए बैठै हैं कि बेटा घर लौट आयेगा , वो नशे में हो धुत तो मां-बाप पर क्या क्या बीत जायेगा ? हमने टूटते देखे मां बाप, इन आंखो में बुनते सपने देखे , इन सपनो को हकीकत बनाने को तो नशा छोड़िये, नशा छोड़िये नशा छोड़ियें, जीने की तरफ रुख मोड़ियें , रुख मोड़ियें । नन्हे बच्चो की आंखो में तुमको सुपर मैन होते देखा है, इतंजार भरी आंखो में पत्नी को क्या कभी तुमने देखा है? हमने वो सब अरमां देखें, परिवार में तुम खुदा होते देखे, इस खुदाई में घर की खुशियां लाने को तो नशा छोड़िये, नशा छोड़िये, नशा छोड़िये, जीने की तरफ रुख मोड़िये, रुख मोड़िये। इंजै्क्शन चिट्टा लेने वालो तुमको मौत बुरी तरह तड़पायेगी , ये नशे की आदत कब तक जुर्म की दुनियां से बचायेगी ? हमने जब भी देखे पांव तुम्हारे, हवालात या शमशान में देखे , शमशान व मौत के इस चंगुल से बचने को तो नशा छोड़िये, नशा छोड़िये, नशा छोड़िये । हाथ जोड़कर विनती है नशा छोड़िये । #पवन कुमार वर्मा । #कविता गीत
RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित'
मेरे जीवन का सूनापन, तुमसे है आबाद प्रिये। जीवन की हर गूढ ऋचा का, हो तुम ही अनुवाद प्रिये।। तुम खुशियों के शीशमहल में, तुम मेरी तन्हाई में । तुम जीवन की धूप-छाँव में, यादों की तरुणाई में। भाग्य-शिला पर भी अंकित है, इतनी सी फरियाद प्रिये।। साँसों के दीपक की लौ में, खुद को मैं पढ़ लेता हूँ। एक कदम में दूर शिखर तक, पल भर में चढ़ लेता हूँ। मेरी ताकत प्यार तुम्हारा, और तुम्हारी याद प्रिये। भूले बिसरे चन्द पलों के, मौन इरादे रखता हूँ। अब भी दिल में सहमे-सहमे, घायल वादे रखता रखता हूँ। बस इतनी सी पूँजी मेरी, एक तुम्हारे बाद प्रिये।। ©RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित' #तुम्हारे_बाद_मैं #कविता #गीत
RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित'
नदी के दोनों तट हैं मौन, सुना पर कानों ने सम्वाद। खुले जब बंद प्रणय के पृष्ठ, जगी तब महकी-महकी याद।। हृदय के टुकड़े हुए अनेक, मिले अपनों से जब आघात। हुई जिस समय भोर से दूर, बिलख कर रोयी थी तब रात। चैन से सोते कैसे प्रश्न, तड़प कर जाग उठी फ़रियाद।। तुम्हें यदि जाना ही था दूर, हुए क्यों अंतर्मन के पास। खिलाए क्यों निष्ठा के फूल, भुगतना था जब यों मधुमास। छलक आता आँखों में नीर, सिसकता फिर अन्तस का नाद।। लिखा विधि ने ये कैसा भाग्य, बताते नहीं, हुए क्यों रुष्ट? नहीं यदि मेरा प्रेम पुनीत, भला फिर किसका पावन पुष्ट? अभी तक चिन्तन में हूँ लीन, करूँ किससे, कैसे प्रतिवाद।। सुना था खोना भी है रीति, न आया कुछ भी मेरे हाथ। किंतु आशा है अब भी शेष, मिलेगा पुनः तुम्हारा साथ। नहीं था कुछ भी तुमसे पूर्व, बचेगा शून्य तुम्हारे बाद।। ©RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित' #बचेगा_शून्य_तुम्हारे_बाद #गीत #कविता
RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित'
जिन आँखों में बंजर दुनिया। उनकी खातिर पत्थर दुनिया।। बैठे सौ सम्वाद अकेले, घूर रहे सागर के जल को। तूफानों के शब्द हृदय में, देख रहे लहरों के छल को। मोती जाने कहाँ छुपा हो, निकले जिसमें सुन्दर दुनिया।। प्रश्न अकेले पड़े वहाँ पर, जहाँ कुतर्कों का रेला था। उत्तर भी हो गये निरुत्तर, खेल कुमति ने यों खेला था। अंदर-अंदर व्याकुलता है, अपनी धुन में बाहर दुनिया।। निष्ठुरता के निर्जन वन में, कौन हृदय की पीड़ा समझे। ढोलों की धमकी के आगे, क्या होती है वीणा समझे। कटु सच है पर भोले मन को, दे देती है ठोकर दुनिया।। भले नहीं है आज द्रोपदी, किन्तु पुनः संवेग दाँव पर । जलती-तपती धूप अड़ी है, अपना दावा लिये छाँव पर । कैसे आज दिखाऊँ सबको, कैसी मेरे अंदर दुनिया।। ©RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित' #पत्थर_दुनिया #गीत #कविता
RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित'
मेरे स्वप्नों के निलय को, तुम नया आकार देना। प्रेम के प्यासे ह्रदय को, ढेर सारा प्यार देना।। मन के' कोमल से पटल पर, चित्र कुछ अंकित किये हैं। थे अचेतन किन्तु तुमने, प्राण उनको दे दिये हैं। हर सहज संकल्पना को, भावना साकार देना।। दुःख के मौसम जब दिखे, तब-तब तुम्हें दिल ने पुकारा। सुख के' नन्दन वन में फैला, है प्रिये चन्दन तुम्हारा। वक़्त के दोनों सिरों को, जन्मों तक आधार देना।। प्रेरणा के स्वर सुकोमल, बन मेरे मानस में आओ। मैं तुम्हें जब भी पुकारूँ, तुम मेरे अन्तस में आओ। गीत बन इस साधना की, चेतना को धार देना।। जब से तुम आये तो गीतों ने नये शृंगार छेड़े। ले हिलोरें मन सरित ने फिर नये उद्गार छेड़े। सर्जना को पंख देकर, नव सृजित संसार देना।। है सवेरा भी अचम्भित, देख मुख की ताजगी को। छंद के शैशव चकित हैं, देख कर इस सादगी को। तुम यों' ही शृंगार सरिता, को सतत विस्तार देना।। ©RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित' #ढेर_सारा_प्यार_देना #कविता #गीत