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Parasram Arora
ये ऋतू चक्र के अनुशासित बदलाव कुदरत के करिश्मे हैँ तभी तों हर अँधेरे के गर्भ मे उजाला ठाठे मारता रहता हैँ बसंत का आगमन हुआ नही कि पतझड़ी थपड़े भी पीछे से आ धमकते हैँ हर थपेड़ा लू का संभावित फुहार का इंतज़ाम कर जाता हैँ पहाड़ो से बहने वाला हर छोटा बढ़ा झरना नदियों को लबालब कर जाता हैँ जबकि धुंध की अपारदर्शिता कवि को उसकी कविता के लिये नए छंद दे जाती है. बादलो से घिरे खलिहान वर्षा से लहल्हा उठते है और जंगल मे खिले फूल काँटों के बींच भी मुस्कराते हुए देखे जा सकते है Connect with Parasram Arora on Nojoto ❤ https://nojoto.page.link/AHkU Install Nojoto | Free App 😍 बोलो अपने दिल की बात 👇👇👇 5,000,000+ कहानियाँ, कवितायेँ, अनुभव, राय India's Number 1 Ap ©Parasram Arora ऋतु चक्र के अनुशासित रूपांतरण
Parasram Arora
यध्यपी मैंने अपना एक अलग सा ही प्रसन्न संसार विकसित कर लिया है लेकिन मेरी यह प्रसन्नता आदिम संस्कारो से ग्रसित है इसलियेज़ब भी मेरे मस्तिष्क मे तनाव और अवसाद ग्रस्त विचार उठते है तो मेरी प्रसन्नता झल्लाहट और उदासी मे रूपांतरित हो जाती है ©Parasram Arora रूपांतरण
Parasram Arora
ज़ब फूटा भाग्य कली का वो फूल का विकास बन गया अचेतन की कंदराओं मे छिपा था जो ज्वर घृणा का आज चेतनता का वो अनुराग बन गया कोशिकाओं मे छुपा था जो धुंआ क्रोध का वही रूपसन्तरित होकर करुणा का वरदान बन गया आसक्ति की अकुलाहट से था जो मन बोझिल अब कहीं जाकर वो बैरागी बन गया . और जो. मौन व्याप्त था चराचर मे. अब तक वो भी मुखरित होकर आज मृदुभाष बन गया #रूपांतरण
Parasram Arora
मेरी हथेलियों क़ी चिकनाहट मे मेरी लकीरे फिसल रही है शायद इसीलिए अपनी किस्मत का फैसला अपने हक मे नहीः हुआ है नफरत के ज़हरीले बीजो मे पूरी बस्ती.को विषैला बना दिया है इसिलए प्यार क़ी मिठास का भी कड़वाहट मे रूपांतरण हो गया है ©Parasram Arora रूपांतरण
Parasram Arora
ज़ब संवेदनाओं का सुंदर संसार आपके पास हो. और अनुभूतियों का दुःखद संग्रह आपके पास हो या ज़ब विकास और विनाश दोनों एक पथ पर दिखने लगे या फिर बात देश की हो या समाज की हो या बात साहित्य या संस्कार की हो या बात मानव कि हो या मानवीयस्वाभाव की हो अनायास कलम ठहर जाती है और बहुत कुछ जीवन क़े रंगमच पर छुपे हुए रहस्यओं से पर्दा उठने लगता है तब जीवन मे नए अर्थ नए सन्दर्भॉ से सांस लेती हुई एक नई रूपांतरित दुनिया दिखने लगती है ©Parasram Arora रूपांतरण
Anjali Jain
कभी पेड़ की छांह में बैठो पंछियों की उड़ान को देखो बहके बहके से कहां तक पहुंच गए तुम कभी अपनी जड़ों में झांक कर देखो! © Anjali Jain जड़ों में १०.०६.२१ #Trees
Ek villain
उत्पीड़न और निर्यात किसे दुनिया का कोई कोना छूट नहीं है प्रत्येक जाती है पहचान रंग और धार्मिक मान्यताओं में अंतर के नाते दुनिया भर में अनेक प्रकार की तरह सिद्धियां होती रही है परंतु एक विशेष समुदाय से इसलिए आज से सर्वाधिक पीड़ा सही है यह संभव है भले ही बिक रहा है मगर सबसे बड़ा जिनकी पहचान से जुड़ी इतिहास अभी भी कम से है वहीं उनके साथ भेदभाव अभी जारी है समुदाय स्वभाव से मस्त और काल सिर्फ दूध जिप्सी भी है जिसका संदेश पर अवतार समूह है किंतु इन्हें सभी को संदीप नामक हुआ है जिसके अंत में राम के बच्चे का नाम निरंतर औरत के पहचान से जुड़े रखते हैं इसी नाम की महिमा दुनिया भर में बिखरे हुए हैं लोग प्रति आज के दिन यानी अप्रैल के एकत्रित होते हैं दुनिया भर में इन्हें रोमा समुदाय के नाम से जाना ज्यादा रोमन में यह अपने रचनात्मक अभिव्यक्ति का बदलते समय के साथ अपनी संस्कृति विरासत को बचाने की बढ़ाने की बात होती है ऐसे में हर योजना में सर्वाधिक चर्चा थी कि पलायन निवासियों की होती है आखिर एक समुदाय के तौर पर आने का कारण भी यही है हर गम भूल सकते हैं किंतु भारत में अपनों को नहीं ©Ek villain #भारतीय जड़ों से जुड़ने की चाहत #Love