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अदनासा-
एक कुएं में रह रहे मेंढ़क की भांति जीवन जीने में कोई अर्थ नही है, वास्तव में प्रकृति ने हमें हर एक जीव जंतुओं में सबसे अधिक बौद्धिक क्षमता एवं कार्यकुशल बनाया है, वर्तमान में मैं अपने ही देश में, बहुत से ऐसे लोगों को जानता हूं, जो अपने राज्य को देश मानता है एवं अन्य राज्य को देश, कहने का तात्पर्य यह है कि उसके लिए, वह व्यक्ति जिस राज्य में रह रहा है, उसके लिए वह देश है, ठीक उस कुएं की मेंढक की तरह, जिसे लगता है पानी केवल इस कुएं में ही, इसलिए शिक्षा बहुत ज़रूरी है, आज भी हमारे देश के बहुत से ऐसे राज्य है, जहां स्वयं शिक्षक एवं शिक्षिका को भारत के प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री में अंतर नही पता या अंग्रेजी के सोमवार या मंडे का स्पैलिंग तक नही पता, इसलिए शिक्षा, रोज़गार, स्वस्थ्य पर ध्यान दो, इतिहास को ना खोदो, क्योंकि जब देश में अब भी ऐसे लोग है, उन्हें लगता है, हम किसी अन्य देश की बात कर रहे है, जो वास्तव में मैं भारत की बात करता हूं, क्योंकि भारत का रहने वाला हूं। ©अदनासा- #हिंदी #कूप #कुंआ #मेंढक #शिक्षा #शिक्षक #शिक्षिका #Instagram #Facebook #अदनासा
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
माह चैत्र वैशाख का , अति प्रचंड है धूप । सूर्यदेव के कोप से , सूख गये है कूप ।। १ बैठी गागर को लिए , गाँव गाँव की नार । जल बिन अब जीवन नहीं , होती हाहाकार ।। २ बैठ कूप को देखती , करतीं रहीं विचार । बिन पानी संसार का , क्या है अब आधार ।। ३ देख कूप को कह रही , करो भूप संदेश । जल ही जीवन का यहाँ , सबसे बडा कलेश ।। ४ महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR माह चैत्र वैशाख का , अति प्रचंड है धूप । सूर्यदेव के कोप से , सूख गये है कूप ।। १ बैठी गागर को लिए , गाँव गाँव की नार । जल बिन अब जीवन नही
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
माह चैत्र वैशाख का , अति प्रचंड है धूप । सूर्यदेव के कोप से , सूख गये है कूप ।। १ बैठी गागर को लिए , गाँव गाँव की नार । जल बिन अब जीवन नहीं , होती हाहाकार ।। २ बैठ कूप को देखती , करतीं रहीं विचार । बिन पानी संसार का , क्या है अब आधार ।। ३ देख कूप को कह रही , करो भूप संदेश । जल ही जीवन का यहाँ , सबसे बडा कलेश ।। ४ महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR माह चैत्र वैशाख का , अति प्रचंड है धूप । सूर्यदेव के कोप से , सूख गये है कूप ।। १ बैठी गागर को लिए , गाँव गाँव की नार । जल बिन अब जीवन नही
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
माह चैत्र वैशाख का , अति प्रचंड है धूप । सूर्यदेव के कोप से , सूख गये है कूप ।। १ बैठी गागर को लिए , गाँव गाँव की नार । जल बिन अब जीवन नहीं , होती हाहाकार ।। २ बैठ कूप को देखती , करतीं रहीं विचार । बिन पानी संसार का , क्या है अब आधार ।। ३ देख कूप को कह रही , करो भूप संदेश । जल ही जीवन का यहाँ , सबसे बडा कलेश ।। ४ महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR *🙏🌹सादर समीझार्थ🌹🙏* विषय चित्र चिंतन माह चैत्र वैशाख का , उस पर प्रचंड धूप । सूर्यदेव के कोप से , सूख गये है कूप ।। १ बैठी गागर क
Preeti Karn
सूखते सर कूप वापी जलचरी कुंठित विकल है प्राण अवगुंठित हृदय में पीयूष रस छलकाओ तुम झिहिर बरसो मेघ निर्झर अज्ञातवास शेष छोड़ आ जाओ तुम। त्योरियां माथे चढ़ी हैं वेदना अति व्याप्त जीवन बीज नभ के द्वार ताके कृषक मन हर्षाओ अब तुम झिहिर बदरा बूंद बरसो अज्ञातवास शेष छोड़ आ जाओ तुम ! प्रीति #मेघ बरसो (दूसरी किश्त) #yqhindi #yqhindikavtia सर: तालाब , कूप : कुआं, वापी: छोटे जलाशय , जलचरी: मछली , पीयूष: अमृत , अवगुंठित:। चारों ओर
Anuj Ray
प्रकृति के यौवन के, खिलते हैं जैसे उपवन में फूल । ठीक वैसे ही लगते, अधर तुम्हारे, चढ़ते यौवन के शूल। ©Anuj Ray # प्रकृति के यौवन के..
Anuj Ray
ज़िन्दगी के सफ़र के, बिल्कुल आख़री ,कगार के नजदीक पहुंचकर एकदम, छुड़ा के हाथ, अगर तुमसे कोई कहे कि, अब ये रिश्ता हो गया यहीं पे खतम। क्या हुआ, थक गए क्या चलते-चलते, कोशिश करो चलने के और भी दो चार कदम। वैसे तो लाजमी है, बिछड़ ही जाएंगे, लेकिन तुम तो, मेरे गर्दिशों के साथी हो हमदम। बस क्या , ज़िन्दगी भर के कसमें वादे, और प्यार वफा का, तुम्हारा यही इन्तकाम है। शायद मोहब्बत में ,किसी को नहीं मिला होगा, ये पहला मेरी क़िस्मत का इनाम है। ©Anuj Ray # ज़िन्दगी के सफ़र के,